पितृसत्तात्मक हिंसा के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति अपना कर अपने संघर्षों को मज़बूत करें! – नारीवादी व महिला संगठनों के बयान

टिकरी बॉर्डर पर युवा महिला कार्यकर्त्ता के साथ यौन हिंसा और अपहरण पर सार्वजनिक बयान, 9 मई, 2021

बंगाल से आयी असोसियेशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ डेमोक्रेटिक राइट्स (एपीडीआर), श्रीरामपुर की 26 वर्षीय कार्यकर्त्ता के 30 अप्रैल 2021 को बहादुरगढ़, हरियाणा में हुए निधन पर हमें गहरा अफ़सोस है। यह युवती किसान आंदोलन से बेहद प्रेरित हुई और 2 से 11 अप्रैल को बंगाल में आन्दोलन का प्रचार कर रहे किसान सोशल आर्मी के साथ टिकरी बॉर्डर पर आंदोलन के प्रति अपना समर्थन दर्ज कराने आयी थी। उसे खोने का शोक मनाते हुए, हम टिकरी बॉर्डर पर उसके द्वारा बिताये चंद दिनों के दौरान उसके साथ हुए घटनाक्रम के बारे में सुन कर भी बेहद चिंतित और परेशान हैं।

उसके परिवारवालों और उसके साथ संपर्क में रहे कुछ दोस्तों से हमें पता चला है कि दिल्ली आने के सफ़र में ही उसे किसान सोशल आर्मी के अनिल मलिक द्वारा यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। आंदोलन में अन्य कोई संपर्क ना होने के कारण 11 से 16 अप्रैल तक उसे किसान सोशल आर्मी के कैंप में ही रुकना पड़ा जहाँ वह अनिल मलिक द्वारा यौन शोषण का सामना कर रही थी। 16 अप्रैल 2021 को उसने कुछ लोगों को इस शोषण के बारे में बताया। इसके बाद उसके रहने की व्यवस्था एक अन्य टेंट में की गयी जहाँ महिलाओं की संख्या ज्यादा थी। 21 अप्रैल 2021 से उसे हल्का बुखार आने लगा और उसे टिकरी के स्वास्थ्य शिविर में ले जाया गया। वहाँ पर उसने सांस फूलने की शिकायत की और उसकी लगातार चिकित्सा हो रही थी। उसे वापस बंगाल ले जाने के बहाने से 25 अप्रैल 2021 को अनिल मलिक और अनूप सिंह चिनौत ने उसे अपने साथ एक गाड़ी में बैठा लिया। गाड़ी की लोकेशन ट्रैक करने पर पता चला की उसे हरियाणा में हांसी ले जाया जा रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेताओं के हस्तक्षेप के बाद उसे टिकरी बॉर्डर पर भगत सिंह लाइब्रेरी कैंप पर वापस लाया गया। तबियत और भी ख़राब होने पर उसे बहादुरगढ़ में एक अस्पताल में भर्ती किया गया जहाँ 30 अप्रैल 2021 को कोविड के कारण उसका निधन हो गया।

कल शाम, 8 मई 2021 को संयुक्त किसान मोर्चा के कुछ नेताओं के सहयोग से महिला के पिता ने अनिल मलिक और अनूप सिंह चिनौत के खिलाफ यौन शोषण और अपहरण के मामले में एफआईआर दर्ज करायी है। शिकायत पहले एसडीएम के पास दाखिल की गयी, जिन्होंने एफआईआर दर्ज किये जाने का आदेश दिया। इसके बाद थानाध्यक्ष, बहादुरगढ़ सिटी, थाना ने शिकायत को स्वीकार किया।

संयुक्त किसान मोर्चा युवती के परिवार और दोस्तों के साथ खड़ा रहा है। उन्होंने 5 मई को अपनी बैठक से घोषणा की है कि किसान संयुक्त मोर्चा आरोपी और उसके संगठन किसान सोशल आर्मी के साथ सभी संपर्क विच्छेद कर रहा है। साथ ही उनके बैनर और टेंट भी प्रदर्शन स्थल से हटाए जा चुके हैं। संयुक्त किसान मोर्चा ने यह भी कहा किकिसान सोशल आर्मी ना ही उनका औपचारिक सदस्य है और ना ही सोशल मीडिया पर उनका प्रतिनिधित्व करता है।

दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि यह इस प्रकार की पहली घटना नहीं है। आंदोलन में और भी ऐसी महिला उत्तरजीवी रही हैं जिन्होंने ट्राली टाइम्स, स्टूडेंट्स फॉर सोसाइटी और स्वराज अभियान के अन्दर अपने अनुभवों को बयान किया है। जहाँ हम उम्मीद करते हैं कि कानूनी मुकद्दमा दर्ज किया जाना महिला के परिवार वालों को एक प्रकार का न्याय दिलाने की ओर एक कदम होगा, हमारा यह मानना हैं कि आन्दोलन के दायरे में आने वाली यौन हिंसा की सभी शिकायतों को संबोधित करना और इनके निवारण की पद्धति बनाना ज़रूरी हैक्योंकि यहसमस्या मात्र विशेष मामलों में प्रक्रियात्मक उपचारों से नहीं खत्म की जा सकती है।सतत रूप से जेंडर सेंसिटाईज़ेशन बनाने के लिए व आन्दोलन में यौन उत्पीड़न को ख़त्म करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की ज़रुरत है।

यौन उत्पीड़न का सामना करके उभरी सभी उत्तरजीवियों (सरवाईवर्स) के साथ समर्थन में, व किसान आन्दोलन के सहयोगीहोने के नाते, हम उनकी आवाज़ में आवाज़ मिलाते हुए संयुक्त किसान मोर्चा से मांग करते हैं कि वे इन सभी मामलों को संज्ञान में लेते हुएस्त्री-द्वेष, यौन हिंसा और पितृसत्तात्मक दमन के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति बनाने के लिए सकारत्म कदम उठाएं।किसानों के संघर्ष और तीन कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ उनके अथक संघर्ष के समर्थन में खड़े होने के साथ हम संयुक्त किसान मोर्चा से उम्मीद करते हैं कि वे न्याय हासिल होने तक पुलिसिया कार्यवाही और तहकीकात के दौरान इस युवती के परिवार और दोस्तों को समर्थन देते हुए उनके साथ खड़े रहें।

महिलाएं किसान आन्दोलन की अग्रिम पंक्ति में रही हैं और संघर्ष में बराबर की भागिदार रही हैं।महिलाओं ने अपने प्रतिरोध के अधिकार को स्थापित करने और कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ अपने विरोध को दर्ज कराने के लिए राजकीय दमन, मीडिया की मानहानि और अनेक पितृसत्तात्मक बाधाओं का सामना किया है। इसलिए आन्दोलन के क्षेत्र को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने की ज़िम्मेदारी हम सबकी है।इस युवा कार्यकर्त्ता की मृत्यु के शोक और रोष का एहसास करते हुए हम यह भी समझते हैं कि उन दिनों वह जिन अनुभवों से गुजरी वो हम सबकी सामूहिक विफलता का परिणाम हैं। नारीवादी होने के नाते जहाँ हम संघर्ष में बिताए गए इस युवा जीवन को, आंदोलन के प्रति उसके अडिग समर्थन और उसके आदर्शवाद को याद करते हैं और उसे खोने का दुःख मानते हैं वहीं हम यह मांग भी करते हैं कि:

  • संयुक्त किसान मोर्चाइसकी ज़िम्मेदारी ले कर यौन हिंसा के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति विकसित करने का अपना संकल्प व्यक्त करते हुए एक सार्वजनिक बयान जारी करे 
  • आन्दोलन के दायरे को महिलाओं की भागीदारी के लिए अनुकूल बनाने के लिए और ऐसी घटनाओं को दुबारा होने से रोकने के लिए आन्दोलन में एक हेल्पलाइन और कमेटी की स्थापना की जाए 
  • तीनों कृषि कानून वापस लिए जाने के लिए संघर्ष करने के साथ ही हम सामूहिक रूप से पितृसत्तात्मक हिंसा और दमन के ख़िलाफ़ संघर्ष करने और महिलाओं की सक्रीय भागीदारी को बढ़ाने के लिए अपनी राजनैतिक इच्छाशक्ति और एकजुटता को और गहरा करने का भी संकल्प लें।

एकजुटता और रोष में

  1. फेमिनिस्ट इन रेजिस्टेंस, कोलकाता
  2. उत्तरजीवियों का एक समूह, हरियाणा और पंजाब
  3. विमेन अगेंस्ट सेक्शुअल वायलेंस एंड स्टेट रिप्रेशन (डब्ल्यूएसएस)
  4. फोरम अगेंस्ट ऑप्प्रेशन ऑफ़ वीमेन, मुंबई
  5. पिंजरा तोड़
  6. सहेली, नई दिल्ली
  7. श्रमजीवी महिला समिति, वेस्ट बंगाल
  8. बेखौफ़ आज़ादी
  9. अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संगठन (AIPWA);
  10. वजूद, पंजाब
  11. बेबाक कलेक्टिव
  12. जन संघर्ष मंच, हरियाणा
  13. पस्चिम बंग खेत मज़दूर समिति
  14. प्रगतिशील महिला एकता केंद्र
  15. नारी चेतना, कोलकाता
  16. मजदूर अधिक्कार संगठन, हरियाणा
  17. स्त्री अधिकर संगठन, उत्तर प्रदेश
  18. फ्री स्पीच कलेक्टिव
  19. आवाज़-ए-निसवां, मुंबई
  20. वेश्या अन्याय मुक्ति परिषद्, महाराष्ट्र
  21. नेशनल नेटवर्क ऑफ़ सेक्स वर्कर्स
  22. विरोधी महिला मंच, महाराष्ट्र
  23. मध्यप्रदेश महिला मंच
  24. स्त्री मुक्ति संगठन, महाराष्ट्र

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