
‘हमारी समस्या है नागरिक आज्ञाकारिता…’!
विख्यात अमेरिकी इतिहासकार, नाटककार, दार्शनिक और समाजवादी विचारक हॉवर्ड जिन- जिनकी लिखी किताब ‘ए पीपुल्स हिस्ट्री ऑफ युनाइटेड स्टेट्स’ की लाखों प्रतियां बिक चुकी हैं- के ये शब्द आज भी दुनिया के मुल्कों में दोहराए जाते हैं जब-जब वहां की जनता हुक्मरानों के हर फरमान को सिर आंखों पर लेती है।
बहुत कम लोग इस वक्तव्य के इतिहास से वाकिफ हैं, जिसे उन्होंने अमेरिका के युद्ध-विरोधी आंदोलन के दौरान बाल्टिमोर विश्वविद्यालय के परिसर में रैडिकल छात्रों और परिवर्तनकामी अध्यापकों के विशाल जनसमूह के सामने दिया था। यह वह दौर था जब अमेरिकी सरकार की वियतनाम युद्ध में संलिप्तता को लेकर- जिसमें तमाम अमेरिकी सैनिकों की महज लाशें ही अमेरिका लौट पाई थीं- जनाक्रोश बढ़ता गया था और अमेरिकी सरकार पर इस बात का जोर बढ़ने लगा था कि उसे अपनी सेनाओं को वहां से वापस बुलाना चाहिए।
याद किया जा सकता है कि इस ऐतिहासिक साबित हो चुके व्याख्यान के एक दिन पहले क्या हुआ था। एक युद्ध विरोधी प्रदर्शन में शामिल होने के चलते उन्हें संघीय पुलिस ने गिरफ्तार किया था और हॉवर्ड जिन को कहा गया था कि वह अगले दिन अदालत में हाजिर हों। सवाल यह था कि क्या वह दूसरे ही दिन अदालत के सामने हाजिर हों, जहां उन्हें चेतावनी मिलेगी और फिर घर जाने के लिए कहा जाएगा या वह बाल्टिमोर जाने के अपने निर्णय पर कायम रहें? यानी, रैडिकल छात्रों ने उनके लिए जो निमंत्रण भेजा था पहले उसका सम्मान करें और उसके अगले दिन अदालत के सामने हाजिर हों? जाहिर था कि इस हुक्मउदूली के लिए उन्हें कम से कम कुछ दिन या महीने तो सलाखों के पीछे जाना ही होता।

हावर्ड जिन ने बाल्टिमोर जाना ही तय किया। यहां उन्होंने अपना भाषण दिया। छात्रों एवं अध्यापकों में उसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई। वे लौट आए और अगले ही दिन अदालत के सामने हाजिर हुए। जैसा कि स्पष्ट था, उन्हें कुछ सप्ताह के लिए जेल भेज दिया गया। ( Read the full text here : https://junputh.com/open-space/remembering-howard-zinn-in-the-times-of-bulldozer-justice/)