लिंक्डइन प्रोफाइल और सीवी बनाने की दौड़ती-भागती ज़िंदगी में किसी के पास ना तो देखने का समय है और ना ही रुकने का। आपकी प्रोफेशनल लाइफ का हर कदम सावधानीपूर्वक नियोजित किया जाना और सफल होना ज़रूरी हो गया है, जहां गलतियों की कोई गुंज़ाइश नहीं है। लोग लगातार अपने साथियों से बेहतर करने की होड़ में लगे हुए हैं।

ये तथ्य युवाओं को काम करने में ना खत्म होने वाले घंटे, थकी हुई भावनाओं और काम के बोझ तले दबे होने की ओर ले जाता है।

यह कोई अलग तरह की घटना नहीं, बल्कि भीड़भाड़ से भरी हुई हमारी संस्कृति की प्रशंसा के रूप में मिली काम की असंभव समय सीमा हमारे मानसिक स्वास्थ्य के संकट को और अधिक बढ़ा रही है। हालांकि प्रोजेक्ट और ईमेल की दमघोंटू दुनिया में कुछ लोग दूसरों की तुलना भी अधिक पीड़ित समझे जाते हैं और वास्तव में होते भी हैं। जब हमारे कॉलेज और ऑफिस के कठिन काम के बीच हमारी ज़िंदगी का भूगोल बिगड़ता है, तो इसका सीधा मतलब यही है कि हमने किसी आपदा को न्यौता दिया है।

ऐसे सैकड़ों छात्र हैं, जो उन अवसरों को वहन करने में असमर्थ हैं, जो उन्हें बेहतर जीवन के लिए प्रेरित करते हैं। कॉम्पिटेटिव एग्ज़ाम के लिए कोचिंग संस्थानों की कमी, संसाधनों तक पहुंचने में असमर्थता, अपने स्थानीय क्षेत्रों में उत्तम संस्कृति की गैर मौजूदगी आदि। कुछ ऐसे कारण हैं, जो युवाओं को शहरों में जाने से रोकते हैं।

कुछ चुनींदा लोग जो शहर आ भी जाते हैं तो उनके लिए भी ये कोई आसान काम नहीं होता। कल्चरल शॉक वास्तव में एक कड़वा अनुभव है। हजारों छात्रों और युवा पेशेवरों अपने लिए एक अलग पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वे खुद को दुनिया के दायरे से बाहर महसूस करते हैं। उनको ऐसा महसूस होता है कि ये दायरा उनकी पहुंच से दूर है और उनके लिए कहीं से भी फिट नहीं बैठता। वे खुद को उच्च समाज में बैठने के लिए तैयार करते हैं जो एक बहुत ही बड़े संघर्ष को जन्म देता है।

NIT राउरकेला में बी.टेक के तीसरे वर्ष के छात्र सिद्धार्थ बस्तिया बताते हैं।, “मेरे दोस्त की बातें अकसर हॉलीवुड फिल्मों और ड्रामों के इर्दगिर्द ही घूमती थीं और वे सभी ऐसे पात्रों के नाम लेते थे जिनका मेरे से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं ना मैंने वो नाम कभी सुने थे। उनके साथ उठना बैठना और खुद को उनके साथ फिट बैठाने के लिए मेरी कोशिशें काफी मुश्किलों से भरी हुई थीं।”

इसके अलावा, छात्रों और पेशेवरों के पास जीवित रहने के लिए अक्सर उनके लिए उच्च मानक निर्धारित होते हैं।  तेजी से आगे बढ़ रहे दृश्य में अपना नाम बनाने के लिए उनकी आवाज बुलंद करना महत्वपूर्ण हो जाता है।  हालाँकि, यह मुश्किल हो जाता है जब आप छोटे शहरों और उपनगरों से आते हैं।

गौराप्रसाद दास, राज्य महिला आयोग में एक पूर्व कानूनी इंटर्न बारीपदा ओडिशा के मूल निवासी बताते हैं।, “जब आप एक छोटे से शहर से आते हैं, तो आपको उस दायरे तक पहुंचने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। आपको अपनी खुद की जगह बनानी होगी और मेहनत करनी होगी।”

लैंगिक भेदभाव और उसकी पहचान को भी कम करके नहीं आंका जा सकता है। कई बार, छोटे शहरों में माता-पिता अपनी बेटियों को दूसरे शहर में पढ़ने देने से कतराते हैं। लैंगिक हिंसा की आशंका और महिलाओं को घरेलू स्थानों तक सीमित रखने की पितृसत्तात्मक संरचना एक बेहतर करियर हासिल करने की किसी भी संभावना को बाधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

कुछ मामलों में जहां लड़कियां वास्तव में बाहर जाने के अवसर का लाभ उठाती हैं, उनकी गतिशीलता पर प्रतिबंध लगाया जाता है जो अक्सर तर्कहीन ही होता है। बिना पर्यवेक्षण के डिजिटल संचार का उपयोग करने से रोक दिया जाता है और निरंतर निगरानी की स्थिति में रखा जाता है। उनकी स्वायत्तता की लगातार अवहेलना और काम के अतिरिक्त दबाव से छोटे शहरों से आने वाली लड़कियों और महिलाओं पर दोहरे खतरे का प्रभाव पड़ता है।

कार्यक्षेत्र के जटिल काम और खुद को अलग साबित करने का प्रयास अक्सर उन युवाओं पर भारी पड़ता है जो अभी अपने जीवन की शुरुआत कर रहे हैं। काम के दबाव, बाधाओं को दूर करने और विशेषाधिकार प्राप्त स्थानों तक पहुंच खोने के डर निरंतर क्रिया एक ऐसा माहौल उत्पन्न करता है जो मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

विशेषाधिकार प्राप्त शहरी पेशेवर जीवन की उथल-पुथल से निपटने के लिए एक रिस्क लेने का जोखिम उठा सकते हैं लेकिन यह छोटे शहरों के लोगों के लिए एक विकल्प नहीं है जो शहरी क्षेत्रों के पेशेवर और यूथ की तरह जोखिम उठा सकें।

अवसरों के अभाव में अक्सर युवा घर वापसी करने लगते हैं ऐसे में एक सकरात्मक वातावरण का विकास खुद ब खुद रुक जाता है और पेशेवर युवा के लिए यह बहुत विषाक्त साबित होता है जो कल्चरल शॉक का एक हिस्सा है।

बस्तिया, जो क्वालकॉम इंडिया में  इंटर्न भी हैं और पुरी के मूल निवासी हैं। बताते हैं “मैं एक बड़े शहर में बस इस तथ्य के कारण चला गया कि मेरे शहर में अच्छे कॉलेज की कमी थी, यहां तक कि मेरी इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए भी मेरे छोटे से गाँव में मुश्किल थी। मेरे स्नातक स्तर की पढ़ाई के लिए संस्थान बदतर थे और यही एक प्राथमिक कारण था जिसने मुझे कड़ी मेहनत करने और एक अच्छे कॉलेज में सीट सुरक्षित करने के लिए प्रेरित किया।”

जीवन में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होता है कि सीखना एक अनिवार्य प्रक्रिया हो जाता है कि काम के दबाव वाले और मुश्किल समय की चिंता से कैसे निपटा जाए? कुछ लोगों के लिए इसमें साथियों का एक सहायता समूह बनाना शामिल है जो अपनी समस्याओं का निबटान करने के लिए एक सुरक्षित स्थान है। अक्सर समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के साथ बातचीत करने से तनाव कम करने और उथल-पुथल से बाहर निकलने का रास्ता निकालने में मदद मिलती है।

बस्तिया आगे बताते हैं “मैं भाग्यशाली था कि मेरे साथ मेरे कुछ स्कूल मित्र थे जब मैंने बदलाव का जीवन शुरू किया और इससे मुझे वास्तव में नए वातावरण के आदी होने में मदद मिली।  मेरा सुझाव है कि यदि आप कर सकते हैं तो अपने स्कूल के दोस्तों से बात करें, जैसा कि आप बिना किसी निर्णय के स्वयं उनके साथ हो सकते हैं।”

इस भागती दौड़ती हुई ज़िंदगी में हमारे पास और भी विकल्प हैं। जैसे चिकित्सक कॉउंसलिंग थेरेपी जो पेशेवर युवाओं की मदद करने में कारगर सिद्ध होगी। हालांकि मौजूदा हालातों से हर युवा वाकिफ़ है कि चिकिस्ता के क्षेत्र में कई मुद्दे अभी भी विचारशील हैं जो युवाओं को वहां जाने से रोकते हैं।

दास जो केआईआईटी स्कूल ऑफ लॉ में कानून के तीसरे वर्ष के छात्र हैं बताते हैं “चूंकि हर कोई एक चिकित्सक को देखने में सक्षम होने के लिए भाग्यशाली नहीं है, मैं काम करके, स्वस्थ नींद बनाए रखने और अपने दोस्तों से बात करके बढ़ते तनाव का सामना करता हूं और उससे बाहर निकलने का रास्ता ढूंढता हूं। आप जिस स्तिथि से आए हैं, उस पर लौटने का डर अक्सर तनावपूर्ण हो सकता है, इसलिए इससे निपटने के लिए उचित तंत्र की आवश्यकता होती है।”

छोटे शहर के युवाओं को अक्सर संसाधनों का लाभ उठाने और स्थान तक पहुंचने में एक कठिन कार्य का सामना करना पड़ता है जो उन्हें नुकसान में डालता है। अधिक से अधिक युवा पेशेवरों के बोलने और स्वीकार करने के साथ कि एक समस्या है, शायद अभी भी पारिस्थितिकी तंत्र में प्रणालीगत और निरंतर परिवर्तन की उम्मीद है।

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