एक दिवाली ऐसी भी !
मैं जिस महिला की बात कर रहा हूं, वो हनुमानगडी मंदिर पर रोज़ कुछ खाने की तलाश में आती हैं और ये पीली साड़ी पहनती हैं, क्योंकि इनके परिवार ने इन्हें निकाल दिया है। इनको यह लगता है कि इनके पति अब इस दुनिया में नहीं हैं और संस्कारों के हिसाब से इन्हें अब श्वेत या पीली साड़ी ही पहननी चाहिए।
वो कुछ दिनों से सड़क पर ही सोती हैं और उनको हर रोज़ ठंडी लगती है। ठंडी से बचने के लिए वो अक्सर सड़क पर सोने वाली गाय से लगकर सो जाती हैं।
एक तरफ फैज़ाबाद-अयोध्या में दीपोत्सव की धूमधाम से तैयारी चल रही है। वहीं, दूसरी तरफ सड़कों पर सोने वाले लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। पिछले सालों में ठंडी बढ़ी है और लोगों ने कोरोना महामारी के कारण अपना घर और कमाई का ज़रिया खो दिया है। अब सड़क पर बोरा ओढ़कर सोते हैं। रात में ठंड इतनी गिरने लगी है कि किसी को भी बीमार कर दे। कचड़ा बीनने वाले परिवारों के छोटे बच्चे ठेलों के नीचे सो रहे हैं, जिससे वे ठंड से बच सकें।
पटाखों की आवाज़ें हर साल इन गरीबों की आवाज़ को दबा देती हैं। चिथड़िया इलाके में बसे 80 परिवारों के लिए ठंडी के कपड़े लोगों के कूड़ेदान से निकालकर आते हैं। बच्चे सुबह से ही गरम कपड़े बटोरने निकाल जाते हैं। कभी नालियों में तो कभी कूड़ेदान में पड़े गरम स्वेटर और पुरानी साड़ियों या गद्दों को लाकर अपने लिए सोने की जगह बनाते हैं।
वजीरगंज में रहने वाले 60 परिवारों के झोंपड़ों से ओस का पानी टपकता है। इनकी समस्या कम हो सकती थी यही इन्हें प्लास्टिक की पन्नियां या तिरपाल मिल जाएं। ऐसे ही कुछ और 1500 परिवार हैं, जिनके घर में ठंड के कारण छोटे बच्चों की जान को खतरा है।
जी.जी.आई.सी. में लगे मेले का आयोजन फैज़ाबाद की सरकार ने की है। इस मैदान का इलाका इतना है कि 50000 लोग हर साल पटाखे खरीदने यहां एक साथ आ जाते हैं। ठंडी के मौसम में गरीब-बेघर लोगों को यहां बड़े आराम से रखा जा सकता है। उनके स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक तौर पर भी उनकी मदद की जा सकती है। एक भव्य दीपोत्सव के साथ एक भव्य जन शिविर लगाने की ज़रूरत फै़ज़ाबाद को है।
तीन नवंबर को होने वाले दीपोत्सव में इस बार 9 लाख दीप जलाए जाएंगे। इनमें 7 लाख 51 हज़ार दीप राम की पैड़ी पर और डेढ़ लाख दीप अयोध्या के रामलला के प्रांगण समेत प्राचीन मठ-मंदिर और कुंडों पर जलाए जाएंगे।
2 करोड़ की लागत से मनाया जा रहा है 2021 का दीपोत्सव। ये लागत सरकार लगा रही है, अगर इसको छोड़ दिया जाए तो फ़ैज़ाबाद-अयोध्या में हर साल दिवाली पर 1.5 करोड़ के कपड़ों की खरीदारी होती है और लाखों पुराने कपड़े लोग कूदेदान में फेंक देते हैं।
फैज़ाबाद-अयोध्या में ज़रूरत है सड़कों पर जलने वाले अलाव की, गरम कपड़ों की, ठंड से बचाने वाले छत की, शेल्टर होम्स की, साफ पीने के पानी की और इन सब से ज़्यादा ज़रूरत है इंसानियत से प्रेम की। दिवाली का अर्थ सार्थक भी तभी होगा जब एक दिवाली ऐसी भी मनाई जाएगी।
Youth Ki Awaaz के बेहतरीन लेख हर हफ्ते ईमेल के ज़रिए पाने के लिए रजिस्टर करें