इस साल के मध्य तक 289 करोड़ लोग फेसबुक का उपयोग कर रहे थे, लेकिन उसके पास केवल 15 हजार ही कंटेंट मॉडरेटर हैं। यानी हर 1.93 लाख यूजर्स पर केवल एक। बाकी मॉडरेशन आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के भरोसे है, जो क्षेत्रीय संदर्भों को समझने में असक्षम है। यही वजह से उसका प्लेटफॉर्म भारत सहित विश्व के विभिन्न हिस्सों में हिंसा, झूठ, नफरत और कड़वाहट फैलाने का माध्यम बन रहा है। वह इसे नहीं रोक पा रहा।
वह इस पर भी टिप्पणी करने को तैयार नहीं है कि अपने प्लेटफॉर्म को मॉडरेट करने के लिए उसे कितने मॉडरेटर न्यूनतम चाहिए। यह खुलासा फेसबुक के पूर्व अधिकारियों और कंपनी के अंदरुनी दस्तावेजों व अध्ययन के हवाला से हुआ है। अमेरिकी संसद को यहां के पूर्व कर्मचारी फ्रांसेस ह्यूगन द्वारा सौंपे दस्तावेजों में यह जानकारियां दी गई हैं।
फेसबुक पर आज 160 भाषाओं में लोग लेख, फोटो, वीडियो आदि सामग्री पोस्ट कर रहे हैं। लेकिन उसका एआई इनमें से करीब 70 यानी आधी से भी कम भाषाओें की सामग्री पर नजर रख सकता है। फेसबुक के अरबी देशों के नीति प्रमुख रहे अशरफ जेटून के अनुसार कंपनी किसी साम्राज्यवादी शक्ति की तरह पूरी दुनिया में फैलना चाहती है। लेकिन सुरक्षा के उपाय नहीं करना चाहती। हर महीने सक्रिय रहने वाले उसके 90% यूजर्स गैर-अमेरिकी व कनाडाई, यहां उसके प्लेटफॉर्म का कितना भयानक उपयोग हो सकता है।
धमकियां देने का भी माध्यम
भाषा की सही समझ नहीं होने से इथियोपिया जैसे देशों में नस्लीय समूहों को खुलेआम जान से मारने की धमकी दी जाती है। उसका एआई इन पोस्ट तक को अपने प्लेटफॉर्म से नहीं हटा पाता।
वह क्षेत्रीय समझ रखने वाला स्टाफ भी भर्ती नहीं करता
फेसबुक के जरिए म्यांमार, यमन या भारत के पश्चिम बंगाल में हिंसा फैलाने, लोगों के जान गंवाने के आरोप लगते रहे हैं। कंपनी के दस्तावेजों के अनुसार फेसबुक ने ऐसे स्टाफ की वाजिब संख्या में नियुक्ति ही नहीं की जो क्षेत्रीय संदर्भों और भाषा की समझ रखते हों। उसके कर्मचारी कंपनी को आगाह करते हैं कि नफरती सामग्री को रोकने में फेसबुक अयोग्य है। लेकिन उसे ज्यादा परवाह नहीं होती।
विस्तार
इस साल के मध्य तक 289 करोड़ लोग फेसबुक का उपयोग कर रहे थे, लेकिन उसके पास केवल 15 हजार ही कंटेंट मॉडरेटर हैं। यानी हर 1.93 लाख यूजर्स पर केवल एक। बाकी मॉडरेशन आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के भरोसे है, जो क्षेत्रीय संदर्भों को समझने में असक्षम है। यही वजह से उसका प्लेटफॉर्म भारत सहित विश्व के विभिन्न हिस्सों में हिंसा, झूठ, नफरत और कड़वाहट फैलाने का माध्यम बन रहा है। वह इसे नहीं रोक पा रहा।
वह इस पर भी टिप्पणी करने को तैयार नहीं है कि अपने प्लेटफॉर्म को मॉडरेट करने के लिए उसे कितने मॉडरेटर न्यूनतम चाहिए। यह खुलासा फेसबुक के पूर्व अधिकारियों और कंपनी के अंदरुनी दस्तावेजों व अध्ययन के हवाला से हुआ है। अमेरिकी संसद को यहां के पूर्व कर्मचारी फ्रांसेस ह्यूगन द्वारा सौंपे दस्तावेजों में यह जानकारियां दी गई हैं।
फेसबुक पर आज 160 भाषाओं में लोग लेख, फोटो, वीडियो आदि सामग्री पोस्ट कर रहे हैं। लेकिन उसका एआई इनमें से करीब 70 यानी आधी से भी कम भाषाओें की सामग्री पर नजर रख सकता है। फेसबुक के अरबी देशों के नीति प्रमुख रहे अशरफ जेटून के अनुसार कंपनी किसी साम्राज्यवादी शक्ति की तरह पूरी दुनिया में फैलना चाहती है। लेकिन सुरक्षा के उपाय नहीं करना चाहती। हर महीने सक्रिय रहने वाले उसके 90% यूजर्स गैर-अमेरिकी व कनाडाई, यहां उसके प्लेटफॉर्म का कितना भयानक उपयोग हो सकता है।
धमकियां देने का भी माध्यम भाषा की सही समझ नहीं होने से इथियोपिया जैसे देशों में नस्लीय समूहों को खुलेआम जान से मारने की धमकी दी जाती है। उसका एआई इन पोस्ट तक को अपने प्लेटफॉर्म से नहीं हटा पाता।
वह क्षेत्रीय समझ रखने वाला स्टाफ भी भर्ती नहीं करता फेसबुक के जरिए म्यांमार, यमन या भारत के पश्चिम बंगाल में हिंसा फैलाने, लोगों के जान गंवाने के आरोप लगते रहे हैं। कंपनी के दस्तावेजों के अनुसार फेसबुक ने ऐसे स्टाफ की वाजिब संख्या में नियुक्ति ही नहीं की जो क्षेत्रीय संदर्भों और भाषा की समझ रखते हों। उसके कर्मचारी कंपनी को आगाह करते हैं कि नफरती सामग्री को रोकने में फेसबुक अयोग्य है। लेकिन उसे ज्यादा परवाह नहीं होती।