2018 में जनजाति कार्य मंत्रालय, केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री वनधन विकास योजना (PMVDY) आदिवासी और अन्य इलाकों में जंगल का धन जिस पर आदिवासियों की आजीविका निर्भर है, उनके लिए कारगर मानी जा रही है। इस योजना में गाँव और छोटे कस्बों में वनधन विकास केंद्र और उनमें वनधन विकास समूह स्थापित कर के वन उपज संकलन, मूल्य संवर्धन और विपणन का प्रावधान है। आदिवासी विकास विभाग नोडल विभाग तथा महाराष्ट्र राज्य का शबरी आदिवासी वित्त और विकास महामंडल राज्य अभिकर्ता संस्था (State Implementing Agency) के रूप में हैं।

इसी प्रधानमंत्री वनधन विकास योजना को लेकर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली और चंद्रपुर ज़िलों में भारी मात्रा में जंगल होने के कारण यहां पर इस योजना का लाभ अच्छी तरह देखने को मिल सकता है। ‘आम्ही आमच्या आरोग्यासाठी’ नामक संस्था पिछले 35 वर्षों से इस ज़िले में काम कर रही है, जिसमें आदिवासियों की आजीविका, स्वास्थ्य, शिक्षा और हक इन विषयों का समावेश है।

आदिवासियों को सामाजिक एवं आर्थिक तौर पर समृद्ध करने वाली वनधन योजना  

इन दो ज़िलों में कुल 7 वनधन विकास केंद्र इस संस्था द्वारा 2019 में स्थापित किए गए थे, जिनसे 2100 आदिवासी और अन्य पारंपरिक निवासी लोग और साथ में महिला और पुरुष बराबरी से जुड़े हुए हैं। गढ़चिरौली ज़िले के कोरची तालुका में जल, जंगल और ज़मीन के मुद्दों को लेकर काम करने वाली तालुका की महाग्रामसभा संस्था का भी बहुत हद तक इन वनधन केंद्रों की स्थापन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। संस्था मेंटरिंग आर्गेनाइजेशन के रूप में सहयोग कर रही है।

हाल ही में पिछले साल कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था कमज़ोर पड गई थी। इस हालात में ग्रामीण रोज़गार के ऊपर उतना असर देखने को नहीं मिला क्योंकि जल, जंगल, ज़मीन और जानवरों के ऊपर निर्भर रहने वाली आजीविका ने ग्रामीण समुदाय को बचाया। हर एक वनधन केंद्र में कई गाँवों का समावेश है, उनमें से बहुत से गाँवों को पैसा और वनहक कानून के ज़रिये स्वतंत्र ग्रामसभा का दर्ज़ा मिला हुआ है।

तकरीबन पिछले कुछ सालों से इन ग्रामसभाओं को तेंदू पत्ता (बीडी पत्ता), बांस आदि सामूहिक बेचने का अनुभव भी है। स्वतंत्र ग्रामसभा होने के कारण ग्राम के लोग इकट्ठा बैठने और ग्राम विकास निर्णय लेने में कहीं ना कहीं आगे बढ़ते हुए दिख रहे हैं। यह अनुभव वनधन केंद्र स्थापित करने और उसको चलाने, जिसमे बैंक अकाउंट खोलने से लेकर हिसाब किताब रख-रखाव तक में बहुत हद तक काम आया है, ऐसा यहां देखने को मिल सकता है। सामूहिक निर्णय लेकर व्यक्तिगत आजीविका बढ़ाने के साथ-साथ लोग स्वयं पूर्ण बन रहे हैं।

ऐसे ही स्वयंपूर्ण बनने की दिशा में बढ़ते हुए पिछले साल यानी 2020 को ट्राईफेड, मुंबई के द्वारा इस लॉकडाउन की परिस्थिति को देखते हुए 5 लाख परिक्रामी निधि वन उपज खरीदारी करने के तौर पर हर वनधन विकास केंद्र को दिए गए थे, जिससे केंद्र के सदस्यों को खरीददारी और बेचने के बाद जो मुनाफा हुआ उससे उन्हें काफी राहत मिली है।

गढ़चिरौली के आदिवासी समुदायों के जीवन स्तर में इस योजना से बदलाव आया है 

गढ़चिरौली के कोरची तालुका का रावपाट गंगाराम घाट वनधन विकास केंद्र के सदस्य इजामसाय हमें बताते हैं  कि हमारे वनधन केंद्र को पिछले साल 33 हज़ार का मुनाफा हुआ है, जिसमें महुआ, टोरी (महुआ का फल), हिरडा आदि गौण वन उपज का समावेश था।

पहला साल होने के बावजूद यह हमारे लिए बहुत ही बड़ी उपलब्धि  है। यह केंद्र यही नहीं रुका, बल्कि आगे इन्होंने प्रक्रिया उद्योग में अपना पैर जमाकर रखते हुए जंगल का जो नैसर्गिक शुद्ध शहद उन पर भी प्रक्रिया यानी उसका शुद्धिकरण करते हुए उसको एक फिनिश्ड प्रोडक्ट के रूप में सामने लेकर आए। 

महाराष्ट्र में गढ़चिरौली और चंद्रपुर ज़िलों में आदिवासी आबादी का क्रमशः 38.7% और 17.7% है।  ज़िले को जनजातीय और अविकसित ज़िले के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जहां 75.96% वन हैं। यह ज़िला तेंदू पत्ते और बांस के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र के फसल के पैटर्न से एकल फसल का पता चलता है, चावल अर्थव्यवस्था पर हावी है।

लोगों का मुख्य पेशा खेती है। देसाईगंज में पेपर पल्प फैक्ट्री और चामोर्शी तालुका के आष्टी में पेपर मिल को छोड़कर पूरे ज़िले में बड़े पैमाने पर कोई उद्योग इकाई नहीं है। पेसा कानून 1996 (PESA Act) और अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकार की मान्यता) अधिनियम, 2006 इन दो बड़े कानून का इन ज़िलों में बड़ा महत्व और योगदान रहा है। इसके चलते ग्रामसभा और उसके अन्दर आने वाली वन हक समिति सक्षम बनने में मदद हो रही है।

वनधन केंद्र को सामूहिक विपणन के दायरे में देखते हुए अपने आप में स्वशासन का बुनियादी ढांचा बना हुआ है। पहले के मुताबिक यह खरीदी-बिक्री गाँव में ही होकर गाँव के ही लोगों के ज़रिये होती है। गढ़चिरौली मे जंगल ज़्यादा पैमाने पर होने के कारण यहां पर महुआ और बीड़ी पत्ता वनउपज लोगों के लिए अप्रैल और मई महीने के दिनों में एक बहुत बड़ा आय का स्त्रोत है।

एक तरफ इस तरह की मदद और दूसरी तरफ कोरोना महामारी और कड़े लॉकडाउन एक प्रकार से ग्रामीण विकास क्षेत्र में रूकावटे पैदा कर रहे हैं। गढ़चिरौली ज़िले की सीमा छत्तीसगढ़ राज्य को लगी हुई है। यह छत्तीसगढ़ राज्य नज़दीक आने के कारण व्यापारी को हो या फिर व्यक्तिगत बेचना हो, वनउपज को ज़्यादातर वही बेचते हैं और दाम भी अच्छा खासा मिल जाता है। 

पर, इस लॉकडाउन की वजह से उसका सही मायने पर उपयोग नहीं हो रहा है। कुल सात वनधन केंद्रों को फरवरी 2021 में जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘उद्योगकता और कौशल विकास कार्यक्रम (ESDP)’ के तहत दो दिन का प्रशिक्षण मिला है।

आगे भी आने वाले दिनों में वनउपज के ऊपर प्रक्रिया हेतु प्रशिक्षण और मशीनरी के ज़रिये आदिवासी लोगों को मदद मिल सकती है। इन सब बातों का आदिवासी समुदाय में एक अलग प्रकार का प्रयास और जानकारी का भण्डारण को देखने में आ रहा है। यही जब गाँव के लोगों को लगे कि यह काम हमने किया है, तभी इसको शाश्वत विकास के रूप में देखा जा सकता है।

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