एक ओर वसई विरार मनपा के अधिकारी कोरोना से बचाव में व्यस्त हैं, तो दूसरी ओर यहां की जनता मूलभूत सुविधाएं न मिलने से त्रस्त है। गत दिनों बारिश में वसई की सड़कों से सीमेंट, पत्थर, मिट्टी, डामर और किनारों से ईंट, पेबर ब्लॉक बहने के मामले सामने आ चुके हैं, कई इलाक़ों में तो सड़कें ही बह गई हैं। जर्जर सड़कों पर जमा गन्दा पानी, दुर्गन्ध व किनारों पर पड़े कम्पनियों के कचरे की वजह से यहां रहने वालों की जिंदगी बद से बदतर हो गई है।
यहां की मौजूदा स्थिति वसई विरार शहर महानगरपालिका के प्रशासन पर कामकाज व सुविधाओं पर सवाल उठा रही है। ऐसे में सुध लेने पहुँचे पालघर सांसद राजेन्द्र गवित ने महानगरपालिका के कर्मचारियों की आलस्य रवैया को देखते हुए उच्च बैठक शिकायत की गई। प्रशासन के बाद लोगो मे वसई के वाघराल पाडा का नाम आते ही दिमाग में समस्याओं और असुविधाओं की बात घूम जाती है। धीरे-धीरे यहां की आबादी डेढ लाख के करीब पहुंच गई है, पर जनसुविधाएं आज भी जीरो हैं। इसका कारण वसई विरार शहर मनपा की उदासीनता, राजनीतिक पार्टियों में आपसी खींचतान व घरों का अवैध होना है। वाघरालपाडा और भोयदापाडा में ज्यादातर घर सरकारी जमीनों पर ही बने हैं।
ऐसे में बिल्डरों के झांसे में आकर वाघरालपाडा में घर खरीदने वाले एक ओर कचरे से आ रही दुर्गंध से परेशान हैं वहीं दूसरी ओर सुलगते डंपिंग ग्राउंड से उठ रहा जहरीला धुआं दम घोंट रहा है। लेकिन यहां आए उत्तर प्रदेश राज्य से 1700 किलो मीटर से आने वाले प्यारे उत्तर भारतीयों की आबादी अधिक है। यहां की जनता आज भी मूलभूत सुविधाओं का इंतजार कर रही है।लेकिन नाम चिन्ह बिल्डरों ने इनका घर देकर फसा रखा है बतादे की मनपा से मिली भगत और तहसीलदार द्वारा सरकारी खदाने व जमीन हड़प कर 3 बिल्डरों ने अपना हक जमा कर उत्तर भारतीयों का घर देकर नर्क जैसे इलाके में बसा रखा है।स्थानीय पुलिस प्रशासन से आग्रह है कि इन बिल्डरों पर सख्त कारवाई व फर्जी कागजात में इन पर मामला दर्ज कर जाँच की जाए।
स्थानीय लोगों का कहना है कि चुनाव जीतने के बाद हमारी सुध लेने कोई भी जनप्रतिनिधि नहीं आता। वाघरलपाडा से सटा भोयदापाडा डम्पिंग ग्राउंड है। यहां कचरे में लगी आग के धुएं व आसपास फैली गंदगी से लोगों को दम घुट रहा है। वाघरल पाडा में लगभग दो लाख से अधिक आबादी है। जिसमें 80 प्रतिशत उत्तरभारतीय है। जनवरी महीने में भी यहां की टूटी फूटी सड़कों पर गंदा पानी व कीचड़ भरा पड़ा है। अगल बगल में कचरे के अंबार लगे हुए है।मनपा की शिकायत करने के बाद सफाई हो जाती है लेकिन कुछ दिनों बाद स्थिती जस की तस रह जाती है।
घरेलू सामान बस गई, बुनियादी सुविधाएं नहीं :
वाघरलपाडा में सरकारी, आदिवासी व प्राइवेट जमीनों पर दस साल पहले बिल्डरों ने गृहस्थी तो बसा ली। लेकिन लोगों को बुनियादी सुविधाएं नही मिली। स्थानीय निवासी राजीव सिंह ने बताया कि मनपा क्षेत्र में रहने के बावजूद भी यहां अति पिछड़े इलाकों से भी बदत्तर हालात हैं। उबड़ खाबड़ व कीचड़ से भरे रास्तों पर पैदल चलना किसी चुनौती से कम नहीं है। सड़क नहीं होने के चलते एमरजेंसी के अस्पताल लेजाने दौरान लोगों की तकलीफें और बढ़ जाती हैं। एम्बुलेंस या कोई प्राइवेट वाहन नही पहुंच पाता है। 4 किमी पैदल चलकर जाने के बाद तब सड़क दिखाई देती है।
कोड : पिछले दस सालों से यहाँ कोई विकास कार्य नही हुए है। अभी भी कई ऐसी बुनियादी जरूरतें हैं जिन पर काम होना बाकी है। विकास से आस तो जगी लेकिन अभी उम्मीदों का सवेरा होना बाकी है। मनपा सब जान कर भी अनजान बनी हुई है। हम जल्द ही मनपा आयुक्त को लिखित में शिकायत पत्र देंगे और यहाँ के बिल्डरों पर कार्रवाई करने की मांग करेंगे।
यहाँ की जनता के लिए सड़क,पानी, बिजली, अस्पताल, गटर व स्कूल जैसी सुविधाओं की मांग करेंगे।
जयेंद्र पाटील ,मनसे नेता
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