एक तरफ जहां सरकार को ईंधन पर लगने वाले उत्पाद शुल्क को कम कर आम जनमानस के लिए मंहगाई कम करने की कोशिश करनी चाहिए, इसके विपरीत केंद्र सरकार इसकी कीमतों में इजाफा कर आम जनता को मंहगाई के मुंह में ढकेलने का काम कर रही है।
पेट्रोल-डीजल के कीमतों में वृद्धि से बाज़ार में लगभग सभी वस्तुओं के दामों में तेज़ी से बढोतरी हो रही है। इस वजह से बाज़ार में मांग की कमी दिख रही है। पेट्रोल-डीजल पर केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क लगाती है। वहीं राज्य सरकारें इस पर वैट चार्ज करती हैं। केंद्र एवं राज्य सरकार का टैक्स मिलकर पेट्रोल पर लगभग 39 प्रतिशत है, वहीं डीजल पर यह 42.5 प्रतिशत तक चला जाता है।
पिछले साल मार्च और मई के दौरान उत्पाद शुल्क में बढोतरी हुई थी। केंद्र सरकार ने 2020 में पेट्रोल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में 13 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 16 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की थी। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा टैक्स में बढ़ोतरी ही पेट्रोल और डीजल की कीमतों के रिकॉर्ड ऊंचाई पर होने का प्रमुख कारण है।
वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा आम जनमानस से पेट्रोल पर 32.98 रुपये और डीजल पर 31.83 रुपये उत्पाद शुल्क वसूला जाता है, लेकिन 2014 में जब एनडीए ने सत्ता का कार्यभार संभाला था, तब पेट्रोल पर लगने वाला उत्पाद शुल्क 9.48 रुपये और डीजल पर लगने वाली उत्पाद शुल्क 3.56 रुपये था।
कंट्रोलर जनरल ऑफ अकांउट्स के अनुसार साल 2019 के अप्रैल-नवंबर में उत्पाद शुल्क से केंद्र सरकार ने कुल 1,32899 करोड़ की कमाई की है जबकि 2020 में यह कमाई बढ़कर 1,96432 करोड़ हो गई थी। 2014 से ही केंद्र एवं राज्य सरकारों की पेट्रोल-डीजल से होने वाली कमाई लगातार बढी है।
यदि तेल उत्पाद एवं प्राकृतिक गैस को जीएसटी में शामिल किया जाता है, तो तेल की कीमतों में काफी गिरावट आ सकती है। जीएसटी लागू करने से इस पर लगने वाला टैक्स अधिकतम 28 प्रतिशत होगा, जबकि अभी यह 42 प्रतिशत तक चला जाता है।
यदि महंगाई को कम करना है, तो केंद्र एवं राज्य सरकारों को तेल पर लगने वाले टैक्स को कम कर अपना राजस्व कम करना होगा, लेकिन इस वक्त कोई भी सरकार इसे अमल में लाती नहीं दिख रही है।
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