सार
साइंस इम्युनोलॉजी जर्नल में मंगलवार को प्रकाशित शोध में बताया गया है कि बच्चों के लिए टीका कोरोना वायरस के खिलाफ हथियार साबित हो सकता है।
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विस्तार
अध्ययन के मुताबिक, रीसस मैकाक प्रजाति के 16 छोटे बंदरों में टीके की वजह से वायरस से लड़ने की क्षमता 22 हफ्तों तक बनी रही। अमेरिका स्थित न्यूयॉर्क-प्रेस्बिटेरियन कॉमन स्काई चिल्ड्रन हॉस्पिटल की सेली पर्मर ने कहा, कम उम्र के बच्चों के लिए सुरक्षित और प्रभावी टीके से कोरोना के प्रसार को सीमित करने में मदद मिलेगी, क्योंकि हम जानते हैं कि भले ही बच्चे सार्स-कोव-2 के संक्रमण से बीमार हों या बिना लक्षण वाले हों, वे इस वायरस का दूसरों में प्रसार कर सकते हैं।
उन्होंने कहा, कई बच्चे बीमार हुए और यहां तक कि संक्रमण की वजह से कई की मौत तक हो गई। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थ कैरोलिन की प्रोफेसर क्रिस्टिना डि पेरिस के मुताबिक, मैकाक के बच्चों में भी एंटीबॉडी का स्तर व्यस्क बंदरों जैसा ही दिखाई दिया है। हालांकि व्यस्कों की 100 माइक्रोग्राम खुराक के मुकाबले बच्चों को महज 30 माइक्रोग्राम ही खुराक दी गई थी।
तीसरी लहर का खतरा
वहीं, तीसरी लहर में बच्चों को ज्यादा खतरे की आशंका के बीच रूस ने 8 से 12 साल तक के बच्चों के लिए अपनी कोरोना रोधी वैक्सीन स्पूतनिक-वी के नैजल स्प्रे का परीक्षण शुरू कर दिया है। इससे बच्चों की नाक में दवा का स्प्रे कर उन्हें डोज दिया जाएगा।
रूस के गमलेया रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी के प्रमुख अलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग ने कहा कि बच्चों के लिए वह अपनी कोविड-19 रोधी वैक्सीन का नैजल स्प्रे तैयार कर रहा है। यह 15 सितंबर तक तैयार हो जाएगा। टीएएसएस समाचार एजेंसी ने बताया कि गिंट्सबर्ग ने कहा कि बच्चों के लिए स्प्रे में एक ही वैक्सीन का इस्तेमाल किया जाता है ‘केवल सुई के बजाय, एक नोजल लगाया जाता है’।
ये लक्षण होंगे, घबराएं नहीं डॉक्टर की सलाह मानें
एक अनुमान के मुताबिक, कोरोना की तीसरी लहर बच्चों को निशाना बनाएगी। जबकि दूसरे अनुमान के मुताबिक, तीसरी लहर का बच्चों पर अधिक असर नहीं होगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना संक्रमण होने पर अधिकतर बच्चों में बुखार, जुकाम या डायरिया के लक्षण जैसे पेट में दर्द, उलटी के लक्षण देखने को मिलेंगे। ऐसे मामलों में बिना घबराये डॉक्टरों की सलाह मानें तो बच्चे जल्द ही घर में ही स्वस्थ हो जाएंगे। इसमें भी 10 से कम उम्र वाले बच्चों में संक्रमण का खतरा अधिक उम्र वालों की तुलना में कम ही होगा।