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हमारे मोदी जी की दूरदर्शिता का जवाब नहीं है, जब महामारी काबू में थी, तब लाखों की भीड़ वाली चुनावी रैलियां, रोड-शो और कुम्भ का आयोजन करवा रहे थे। हमारे देश को विश्वगुरु बनाने के लिए ऑक्सीजन और वैक्सीन विदेशों में भेज रहे थे।

कोरोना को हराने के लिए थाली, ताली और बत्ती जलवा और बुझवा रहे थे। लंबे-लंबे लच्छेदार भाषण दे रहे थे और कह रहे थे महाभारत की लड़ाई 19 दिन में जीती गई थी और हमें कोरोना से हमारी लड़ाई 21 दिन में जीतनी है और केवल लॉकडाउन लगा के अन्य ज़रूरी उपायों (दवा, अस्पताल, ऑक्सीजन और वैक्सीन) पर ना, तो ध्यान दिया ना ही भविष्य के लिए कुछ व्यवस्था की और कोरोना पर विजय पाने का झूठा डंका बजवाने में लगे हुए थे।

मोदी जी के इसी कोरोना विजय की झूठा डंका बजवाने के कारण कोरोना की दूसरी लहर भयावहता के साथ देश में आई और पूरे भारत में चारों ओर तबाही मचा के रख दी। हर तरफ लोग बीमार थे, चारों तरफ एम्बुलेंस का शोर था, आक्सीजन के लिये लोग हाहाकार-हाहाकार कर रहे थे। पूरे देश में चारों ओर बेड और दवा के लिये मारामारी और कालाबाज़ारी मची हुई थी। 

सही कहें, तो मोदी सरकार ने कोरोना से लड़ाई को कभी प्राथमिकता ही नहीं दी थी, ना ही वैक्सीन और वैक्सिनेशन के लिए  अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए समय रहते कोई ठोस नीति बनाई और ना ही दवा के लिए मची मारामारी और कालाबाज़ारी पर कोई ठोस कदम उठाया। 

आम जनमानस के प्रति हर पहलू पर विफल हुई केंद्र सरकार 

खुद मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार किया था कि वैक्सीन निर्माण के लिये मोदी सरकार ने एक रुपये नहीं खर्च किए हैं, तो मोदी जी TV पर आकर भारत में वैक्सीन आने की तिथियों का ऐलान कैसे कर देते थे? ऐसा लगता था कि मोदी जी ही पूरे देश के लिए वैक्सीन निर्माण का पूरा जिम्मा उठा रहे हैं और एक-एक बात का ध्यान रख रहे हैं।

जब तक कोरोना काबू में रहा तब तक सभी फैसले खुद मोदी जी ले रहे थे,  हर छोटी सी बात के लिये TV पर आ जाते थे और खूब वाहवाही बटोरते थे, लेकिन मोदी जी की झूठी वाहवाही, दिखावे और गलत नेतृत्व के कारण कोरोना की दूसरी लहर ने भारत में विकराल रूप धारण करके भयंकर तबाही मचाई थी। 

जब महामारी नियंत्रण से बाहर हो गई, तो मोदी सरकार ने धीरे-धीरे बड़े चालाकी से कोरोना नियंत्रण की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों पर थोप दी और जब तक दूसरी लहर थोड़ी कम ना हो गई तब तक मोदी जी ने एक लंबी चुप्पी बनाई रखी।

7 जून 2021 के प्रधानमंत्री मोदी जी के संबोधन ने एक सीख दी कि जब समय खराब चल रहा हो, तो चुप्पी साधे रहो। कुछ मत बोलो और जैसे ही हालात सुधरने लगें, झट से सामने आओ और भरपूर फुल कांफिडेंस के साथ झूठ बोलो और कहो की हमने बड़ी मेहनत के साथ युद्ध स्तर पर मेहनत करके इस पर काबू पाया है। 

देश में चारों ओर ऑक्सीजन की कमी से तबाही मची हुई थी और प्रधानसेवक चुनावों में व्यस्त थे 

ऐसे ही बड़बोलेपन पर डॉ. राम मनोहर लोहिया की एक कही बात याद आ रही है कि भड़भड़ बोलने वाले क्रांति नहीं कर सकते, ज़्यादा काम भी नहीं कर सकते। महामारी के समय मे देश को तेजस्विता की ज़रूरत है, बकवास की नहीं, झूठी ब्रांडिंग और मार्केटिंग की नहीं।

यह सही बात है कि पब्लिक की मेमोरी छोटी होती है, ज़ल्दी सब कुछ भूल जाती है, लेकिन क्या वो भी भूल जाएंगे  जिनके घर का चिराग, प्रिय सदस्य और परिजन इस महामारी में आक्सीजन, दवा और अस्पताल की कमी के कारण तड़प तड़प कर मर गए?

राज्यों और अस्पतालों को ऑक्सीजन और अन्य स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों के लिये कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता था और कोर्ट के आदेश और फटकार के बाद मोदी सरकार उस समस्या पर ध्यान देती थी। जैसे ही कोरोना की दूसरी लहर थोड़ी धीमी पड़ी वैसे ही मोदी, अमित शाह से लेकर पूरी बीजेपी ने आम जनमानस को कोरोना पर काबू पाने के अपने झूठे किस्से सुना कर, अपनी पीठ थपथपाना शुरू कर दिया। अब डर इस बात का है कि ऐसे ही पहली लहर के बाद अपनी ब्रांडिंग, मार्केटिंग और चुनावों के चक्कर मे दूसरी लहर लाए थे, फिर कहीं ऐसे ही तीसरी लहर ना ले आएं।

बीजेपी की राज्य सरकारों और मोदी जी का कमाल देखिए, जब अप्रैल महीने में देश में टीका उपलब्ध नहीं था और वैक्सीन की पूर्ति हेतु ग्लोबल टेंडर निकलने की बातें हो रही थी। उसी दौरान टीकोत्सव भी मना लिया था। वैसे, मोदी जी की पुरानी आदत है कि वे निर्णय लेने से पहले उसके निष्कर्ष और परिणाम के बारे में एक बार भी नहीं सोचते हैं।

अगर निर्णय लेने से पहले निष्कर्ष और परिणाम के बारे में सोचते, तो नोटबन्दी, GST और अपरिपक्व लॉकडाउन जैसे त्रासदी उत्पन्न करने वाले फैसले नहीं लेते।

देश की सत्तारूढ़ सरकार बस अपने स्वार्थ और सत्ता लोलुपता में लगी रही  

जैसे पूरे देश में बिना वैक्सीन के टीकोत्सव मनाया गया था, वैसे बिना कुछ किए और बिना एक रुपये खर्च किये चरणचाटु मीडिया के द्वारा वैक्सीन गुरु का खिताब ले लिया गया था। जब महामारी ने विकराल रूप ले लिया, तो मोदी जी विदेशों से राहत सामग्री, ऑक्सीजन, चिकित्सा उपकरण ले रहे हैं और वैक्सीन के लिए ग्लोबल Tender निकाले जा रहे हैं। जब समय था, तो बस झूठे भाषण और ऐलान होते थे और उनके क्रियान्वयन पर ध्यान नहीं दिया जाता था।

मोदी सरकार की बेसिर-पैर की वैक्सीन पॉलिसी पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़े सवाल खड़े करते हुए पूछा कि वैक्सीन की दोहरी-तिहरी कीमत, कुछ को मुफ्त और कुछ को भुगतान के साथ देने का क्या तुक है? वैक्सीन के लिये राज्यों को अधर में कैसे छोड़ सकते हैं? मोदी सरकार से वैक्सीन का खरीद का पूरा ब्योरा देने को भी कहा और पूछा था जिनके पास डिजिटल पहुंच नहीं, उन्हें कैसे मिलेगी वैक्सीन?

भारत मे कोरोना महामारी की पहली लहर कब आई? पहला लॉकडाउन कब लगा? लॉकडाउन से संक्रमण क्यों नही रुका? इतने लम्बे लॉकडाउन के बाद भी सरकार उचित तैयारी क्यों नहीं कर पाई? वैक्सीन कब आई? दूसरी  लहर (कोरोना बेकाबू) कब आई? दूसरी लहर आने तक कितने लोगों को वैक्सीन लगी? आक्सीजन, दवा और बेड की आपूर्ति क्यों नहीं हो पाई थी? कोरोना से बचने के लिये विशेषज्ञों की सलाह और चेतावनी को नजरअंदाज किसने और क्यों किया? भारत की आबादी को ध्यान में ना रखते हुए वैक्सीन और ऑक्सीजन विदेशों में कौन भेजा?

अगर आप इन सवालों के उत्तर सिलसिलेवार जानने की कोशिश करेंगें, तो आपको मोदी जी की दूरदर्शिता का अंदाजा और उन्हें करीब से जान पाएंगे।

वैसे, तो मोदी जी कोरोना महामारी के अलावा कई ऐसे दूरदर्शी फैसले ले चुके हैं, जो भारत को दशकों पीछे ले गया और अर्थव्यवस्था को पूर्ण रूप से तबाह कर दिया है। जैसे कि नोटबन्दी के मास्टर स्ट्रोक को मोदी जी का दूरदर्शी फैसला कहा गया था, लेकिन नोटबन्दी ने ही भारत की अच्छी खासी अर्थव्यवस्था को गर्त में ले जाने का मुख्य काम किया। 

इसके बाद मोदी जी ने देशहित में एक और दूरदर्शी फैसला लिया और वो था, वन नेशन वन टैक्स के नाम पर लिया गया फैसला GST, जिसने नोटबन्दी के बाद लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था को और धराशाई कर दिया।

नोट- ऐसी दूरदर्शिता हॉवर्ड में पढ़ने से नहीं, बल्कि हार्डवर्क और 56 इंच के निर्मम और कठोर हृदय से आती है। जिसे वट्सएप्प विश्वविद्यालय के द्वारा मास्टर स्ट्रोक बता कर प्रचारित किया जाता है।

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