मुक्ति का प्रवेशद्वार महीनों से बंद पड़ा है, बाहर दरवाजे पर लिखा है “सिस्टम इज आउट ऑफ आर्डर”। स्वर्ग अब भारत की प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की नकल कर रहा है। भारतीय नागरिकों के साथ सिस्टम का चक्कर मरणोपरांत भी जारी रहता है। यानी धरती की तरह स्वर्ग में भी उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं? मरने वाले के भी, तो कुछ फंडामेंटल राइट्स(मूलाधिकार) होते होंगे ना।

सिस्टम की तरह फंडामेंटल राइट्स को भी मुख्यधारा की मीडिया का ग्रहण लग चुका है। यह क्या कह रहे हो? मीडिया का काम, तो भ्रम के परतों को हटाना है। काम हटाना नहीं, आकड़ो को घटाना है, इसे इमेज मैनेजमेंट कहते हैं। टीवी के स्क्रीन ने भ्रम को बनाने के लिए आदमी को आकड़ा बनाया और आकड़ों में लाशों को छुपाया है। वर्तमान में मीडिया का औचित्य महज़ लाशों पर रेत फेरना है।

पर आखिर क्यों? सिस्टम को बचाने के लिए नहीं, सिस्टम तो खुद ही नंगा है। सारी कवायद सिस्टम के जरिये सिस्टम के मालिक को बचाने की है। इमेज मैनेजमेंट? हां, वही।

परंतु, कौन है सिस्टम का मालिक? वही जिसका हिन्दू बनाम मुस्लिम मॉडल भारत ने पिछले चुनाव में खरीदा था। क्या इस मॉडल में अस्पताल का जिक्र कहीं नहीं है? क्या कहते हो इसमें, तो राम राज्य का जिक्र है।

राम राज्य में ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है, मुक्ति के कपाट लोगों के लिए चारों पहर खुले होते हैं। गंगा की कछारों पर अब राम राज्य स्थापित हो गया है। जल में तैरती अनगिनत लाशें, रेतों के परत के नीचे मृत शरीर को नोचते श्वान और आसमान पर गिद्धों की आवाजाही। सुनो तो जरा, धरती पर अभी कौन सी आवाज़ गूंज रही है?

“राम नाम सत्य है”

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