2020 ने पूरी दुनिया की काया ही पलट दी। कोरोना रूपी ग्रहण की छाया ने सबकी ज़िन्दगी में उथल-पुथल मचा दी। दफ्तर से लेकर स्कूल और शॉपिंग मॉल से लेकर सिनेमा घर तक सब कुछ अचानक से बंद हो गया। ज़िन्दगी हो या अर्थव्यवस्था, ऐसा लगता है कि दोनों की रफ्तार अचानक से थम सी गई।

कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि कभी ना रूकने वाला समय भी ठहर सा गया है। मगर इस मुश्किल का भी एक हाल निकाल लिया गया और उसको नाम दिया गया “वर्क फ्रॉम होम“।

ऑफिस वाली उत्पादक क्षमता बनाए रखना काफी मुश्किल

दरअसल “वर्क फ्रॉम होम” का विकल्प शुरुआत में IT सेक्टर के कर्मचारियों के लिए इस्तेमाल किया गया था। बहुत से लोग ये भी सोच रहे थे कि शायद निकट भविष्य में इस नए विकल्प का ही बोल-बाला रहेगा। यही नहीं, लोगों ने भी इसे काफी पसंद किया। आखिरकार हर इंसान एक ऐसी ही नौकरी की तलाश में रहता है, जहां वह घर बैठे सारा काम कर ले और अच्छे पैसे भी कमा सके।

मगर इस नए विकल्प की अपनी कुछ कमियां हैं और जब आज हम इस वर्क फ्रॉम होम कल्चर को जी रहे हैं, तब जाकर हमें इसकी असल सच्चाई पता चली है।

चाहे जो हो, वर्क फ्रॉम होम का अनुभव बिल्कुल अच्छा नहीं रहा। पूरे दिन घर के एक कोने में सिमट कर रहना और वो भी ऐसे समय में जब कोरोना महामारी का डर हर पल सता रहा हो। ऐसे समय में ऑफिस वाली उत्पादक क्षमता बनाए रखना और सारा काम तय समय-सीमा के अंदर रहकर करना मज़ाक नहीं है।

कोरोना के दौरान काम के दबाव ने लोगों में डिप्रेशन और एंग्जायटी का स्तर एकदम से बढ़ा दिया।

नए वर्क कल्चर का नकारात्मक प्रभाव घर के बच्चों पर भी

जहां लोग पहले अपनी मर्जी से घर पर रहकर काम करते थे और अपने परिवार के साथ समय बिताते थे, उस समय से ये समय एकदम विपरीत है। यहां घर में होते हुए भी अपने परिवार से दूर होने को मजबूर हैं, क्योंकि उन पर काम का काफी दबाव है।

इस नए वर्क कल्चर का विपरीत प्रभाव सिर्फ काम करने वाले लोगों पर ही नहीं, बल्कि बच्चों पर भी पड़ा। जिन बच्चों के माता-पिता दोनों कामकाजी हैं, उन्होंने खुद को इस समय में काफी अकेला पाया।

इस नए वर्क कल्चर का नकारात्मक प्रभाव हमारे शरीर पर भी पड़ा। घंटों एक जगह बैठे रहने के कारण गर्दन और कंधों में दर्द के साथ-साथ आंखें भी खराब होने लगी। काम के दबाव के कारण स्लीप साइकिल या नींद का चक्र बिगड़ गया। इन दिक्कतों के अलावा कमज़ोर नेटवर्क और देश के एक बड़े वर्ग में डिजिटल गैप ने भी लोगों को बेहद परेशान किया।

करीब एक साल इस नए वर्क कल्चर को जीने के बाद अब हम सब जल्द से जल्द अपने ऑफिस वाले वातावरण में वापस लौटना चाहते हैं। एक बार फिर हम अपने दोस्तों से मिलना और टी ब्रेक लेकर चाय की टपरी पर गप्पे लड़ाना चाहते हैं। दुआ करते हैं कि जल्दी ही इस वर्क फ्रॉम होम से छुटकारा मिले और ऑफिस का 9 से 5 वाला दौर फिर से शुरू हो।

This post is a part of COVID Diaries, a special series under the #ReimagineTogether campaign. Tell us how this lockdown and pandemic has affected you! Join the conversation by adding a post here. here.

Youth Ki Awaaz के बेहतरीन लेख हर हफ्ते ईमेल के ज़रिए पाने के लिए रजिस्टर करें

You must be logged in to comment.