समाज को चलाने के लिए समाज ने जिसको अपने हाथों चुना था। किसी के लिए वो भूल साबित हुई और किसी के लिए कमज़ोरी। युवा वर्ग के लोगों के लिए देश का प्रधानमंत्री चुनने के लिए कोई विकल्प ही नहीं मिला। भारत एक विशाल देश है जिसको संभालने के लिए बहुत सारा अनुभव और मानवता की ज़रूरत पड़ेगी। कई दशकों तक भारत की राजगद्दी पर विराजमान रहने के बाद काँग्रेस ने अपना अनुभव और अपने अस्तित्व को क्षीण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वहीं देश के सामने ऐसी स्तिथि आई कि लोग अपने देश के मंत्री को चुनने के लिए विकल्प तलाशने लगे।
डेढ़ दशक तक राज करने वाली काँग्रेस के नेताओं के ऊपर सत्ता का नशा इस तरह से चढ़ कर बोला कि सबको स्वार्थ ही नज़र आने लगा। इसमें कोई शक नहीं कि काँग्रेस में भी अच्छे और कद्दावर नेताओं की कमी न थी। जैसे स्वर्गीय शीला दीक्षित जी और कपिल सिब्बल, शशि थरूर, जैसे इंटेलेक्चुअल नेताओं की मौजूदगी कहीं न कहीं कोई आस तो दिखाती है मगर ये वही बात होगी कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। नियम कानून, और भी कई बदलाव लाने के लिए एकता की ज़रूरत पड़ती है।
वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद काँग्रेस पार्टी का पतन लगातार जारी है और इसके बाद से पार्टी अपनी वापसी नहीं कर पाई है। वहीं दूर दूर तक अभी कुछ नज़र भी नहीं आ रहा कि 2024 में क्या होने वाला है। लोगों का भरोसा पार्टी में घटा है और युवाओं का भी पार्टी के प्रति भरोसा कम हुआ है जो गंभीर चिंता का विषय है।
2024 में यदि भारत के युवा वर्ग नहीं जागे तो परिणाम घातक सिद्ध हो सकते हैं। हमारे भारत में कुल जनसंख्या का 18% युवा वर्ग ही है। यानी 138 करोड़ में 25 करोड़ युवा हैं। जो कि बेहतर भविष्य की चाह में आस लगाए हुए कई दशकों से बैठे हैं। देश में बेरोजगारी अत्यधिक बढ़ गयी है। अब देश वह देश नहीं रहा जो 2019 तक था। कोविड 19 की बर्बादी का असर शायद हमारा समाज कई पीढ़ियों तक देखे। वहीं बात करें प्रति व्यक्ति आय की तो उसमें भी गिरावट दर्ज की जा रही है। यह 2019-20 में 2064 डॉलर की प्रति व्यक्ति आय थी जबकि ताजा आंकड़ों के मुताबिक भारत की प्रति व्यक्ति आय 1947.41 डॉलर है। यह अंतर किसी भी तरह से सकारात्मक नहीं है।
आकड़ों का निरीक्षण करने के बाद हमको उस आधार की तरफ बढ़ना होगा जो देश को वास्तव में सर्वगुण संपन्न बनाए। देश के हर एक नागरिक को जागना होगा। इसके लिए हमारे देश के युवाओं को आगे आना होगा। देश के युवाओं में समाज को बदलने की ताकत है। देश बदल सकता है। हमको सरकार की तरफ से कुछ भी सकरात्मक नहीं मिला। कुछ लोग नोटबन्दी और राम मंदिर के बनने को अपनी कामयाबी समझ रहे हैं मगर ज़मीनी तौर पर देखा जाए तो पाएंगे क्या इन चीज़ों से किसी भूखे के पेट में रोटी गयी है? फिलहाल हम लगभग एक दशक से समाज में फैली अराजकता, गरीबी, बेरोजगारी, गुंडागर्दी, सांप्रदायिक दंगे आदि ही देख रहे हैं। व्यक्तिगत तौर पर मैंने अपने पूरे जीवन काल में दिल्ली को जलते हुए कभी नहीं देखा था। हां, हम गुजरात, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के लिए तो कई बार ऐसी बातें सुनते हुए आ रहे थे मगर दिल्ली में होने वाले दंगों ने हमको झकझोर कर रख दिया था। यह सब हमको हमारी मौजूदा केंद्र सरकार की लापरवाही से देखने को मिला।
बैंको में लगी लाइन, या फिर किसी धार्मिक स्थल को आग की लपटों और स्टूडेंट्स से छिनती हुई किताबों, के साथ साथ नदियों में तैरती हुई लाशों के अंबार को नहीं देखना तो अभी भी समय है। जाग जाओ। नहीं तो हालात और भी भयानक हो सकते हैं। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में आप किसी धर्म को वोट न देकर कर्म को वोट दें और मानवता को जगाएं। मानवता का सन्देश दें। वरना क्या पता कल हम दंगों के शिकार होंगे और हमारे अपनों की लाश नदियों में तैर रही होगी।
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