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सबके साथ से कोरोना को हराने की तोता पट्टी अलापने वाले अभिजात वर्गीय, मध्यम वर्गीय एवं सत्ता में बैठे उसके हुक्मरान मौका मिलते ही मौकापरस्ती पर उतर आए हैं।

वैक्सीन के चाहे जो भी परिणाम रहे हों, कोरोना से बचाव में चाहे इसकी कितनी भी भूमिका रही हो। सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि इलाज केे जितने विकल्प इस समाज में उपलब्ध हैं? उसमें प्राथमिकता पाने वाले लोग कौन हैं? क्या हम सब एक बराबर हैं? क्या सच में हमारे समाज में अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं?

 

 

 

 

बिल्कुल भेद है! हाशिए पर मौजूद शोषित मेहनतकशों के साथ महाराष्ट्र सरकार ने ऐसी ही एक जानलेवा चाल चली है। जिस पर अभिजात और मध्यम वर्गीय लोग अपनी चुप्पी साधे हुए हैं। सरकार द्वारा मुंबई में बड़े जोर-शोर से “ड्राइव इन वैक्सीनेशन” योजना चलाई जा रही है, जहां लोग अपनी मोटर कार से वैक्सीन लगवाने जा रहे हैं। इसके पीछे सरकारी तर्क है कि पहले सरकारी वैक्सीनेशन केंद्रों पर भारी भीड़ होती थी, जो लोगों के लिए ठीक नहीं है। इस योजना के शुरू होने से लोग अपनी गाड़ियों में रहेंगे और भीड़ नहीं होगी।

ड्राइव इन वैक्सीनेशन योजना अमीरी और गरीबी की खाई को गहरा कर रही है  

यहां भीड़ से किसको बचानेे की बात हो रही है? क्या मुंबई में सबके पास गाड़ियां हैं? जिस पर बैठ कर वे इन केंद्रों तक पहुंचेंगे? महाराष्ट्र का बड़ा हिस्सा आज भी भयंकर गरीबी में जीता है। मुंबई में दुनिया की सबसे बड़ी गंदी झुग्गी बस्ती है। मुंबई की 60% आबादी इसी तरह की भीड़ भरी, गंदी बस्तियों में रहती है। इस गरीबी में मज़दूरों से कार की उम्मीद करना बेवकूफी होगी। इससे यह साफ देखा जा सकता है कि सरकार द्वारा कितनी चालाकी से अभिजातों को प्राथमिकता देते हुए सर्वहारा को वैक्सीन योजना से छांट दिया गया हैं।

सरकार की मंशा साफ तौर पर ऊपरी तबके को हर हालत में तुरंत से तुरंत राहत पहुंचाना है। जिससे उन्हें ऊपरी तबके का समर्थन पुनः प्राप्त हो सके। आपको याद होगा, पिछले साल प्रथम लॉकडाउन में जब मज़दूर वर्ग दाने-दाने को मोहताज था, अपने घरों को लौटने के लिये परेशान था। जिसे लेकर मज़दूरों ने सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किए थे। उस समय यही अभिजात वर्ग और मध्यम वर्ग सरकार के पक्ष में थे। लॉकडाउन का पालन सख्ती से कराने के लिए सरकार के हर नाजायज़ तरीकों को इसी वर्ग का समर्थन प्राप्त था।

ड्राइव इन वैक्सीनेशन योजना क्या समाज के अन्य पहलुओं की अनदेखी है?

इस कोरोना महामारी के समय जब इसी सरकारी कुव्यवस्था की मार इन वर्गों (अभिजात और मध्य)पर भी पड़ी और इलाज के अभाव में अपनी जान पर बन आने, अपनें प्रियजनों को खोने के कारण या खोने के डर से, इन कुलीनों ने अपने पक्ष में सभी माध्यमो जैसे समाचार पत्रों, न्यूज़ चैनलों, सोशल मीडिया, अदालत आदि का इस्तेमाल करते हुए सरकार की मुखर आलोचना शुरू कर दी। जिसे पूरी दुनिया के अभिजातों का समर्थन मिला और विश्व स्तर पर सरकारें बदनाम हुईं।

इस अभिजात वर्ग के विरोध को खत्म करने एवं उन्हें वापस अपने समर्थन में लाने के लिए सरकार ‘ड्राइव इन’ जैसी योजना को अमल में लेकर आई है। जिससे वैक्सीनेशन में अभिजात वर्ग को प्राथमिकता मिले। यही हुआ भी, राहत मिलते ही बुर्जुआ मीडिया और अभिजात लोगो ने महाराष्ट्र सरकार की सराहना शुरू कर दी है।

ऐसे में सर्वहारा वर्ग के साथ क्या होगा? क्या गरीब आबादी, जो पहले भी अन्य बीमारियों से मरती रही है, कोरोना से भी मरती रहेगी? कोरोना के समय मे इस तरह का वाक्य सुना जाना आम हैं कि अब तो पैसे वाले भी इस देश में नहीं बच रहे हैं। यह वाक्य इस सच को बयां करता है कि देश के मेहनतकश आबादी का पैसे के अभाव में बिन इलाज मर जाना, कितनी सामान्य परिघटना है,  जिसे सहजतापूर्वक बुर्जुआ समाज द्वारा स्वीकार किया जाता रहा है।

यही कारण है कि आज महाराष्ट्र की बुर्जुआ सरकार मेहनतकश आबादी के जीवन से खिलवाड़ करने में कोई परहेज़ नहीं कर रही है। वह केवल और केवल मध्यम वर्ग और अभिजात वर्ग को खुश करने के लिए और सरकारी नाकामियों से बिगड़ी अपनी छवि सुधारने के लिये ‘ड्राइव इन’ जैसी बुर्जुआ हितकरी योजनाओं को विस्तार दे रही है। साथियों इस समय हमें तीन चीज़ो से लड़ना है बीमारी, बुर्जुआ सरकार और बुर्जुआ लोग।

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