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बच्चा बार-बार पेट तो नहीं पकड़ रहा
लखनऊ के डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. दीप्ति अग्रवाल बताती हैं कि कोरोना संक्रमण के कारण बच्चों में पेट संबंधी तकलीफ अधिक देखने को मिल रही है। संभव है कि बच्चा तकलीफ न बताए पाए।
अभिभावक ध्यान रखें कि अगर बच्चा बार बार पेट पकड़ रहा है। खाना नहीं खा रहा है। उसका स्वभाव अचानक बदल रहा है, चिड़चिड़ा हो रहा है तो बिना देर किए डॉक्टरी सलाह लें।
बच्चे लक्षण नहीं बता पाएंगे लेकिन जांच से उनमें वायरस का पता चल सकता है। वे बताती हैं कि अच्छी बात ये है कि बच्चों में अभी तक संक्रमण बहुत अधिक हावी नहीं हो रहा है और सामान्य इलाज से वे आसानी से ठीक भी हो रहे हैं।
तीन दिन से ज्यादा बुखार तो सतर्क
- लखनऊ के सिविल अस्पताल के इमरजेंसी मेडिकल अधिकारी डॉ. अनिल कुमार बताते हैं कि संक्रमण से बच्चों को 102 डिग्री बुखार के साथ ठंड, कमजोरी और शरीर में दर्द की तकलीफ हो सकती है।
- बच्चों का बुखार दो से तीन दिन में उतर जाता है। अगर लक्षण पांच दिन तक रहता है तो बिना देरी के विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए। अस्पताल में भर्ती कर इलाज की जरूरत पड़ सकती है।
एक फीसदी से कम बच्चों को निमोनिया
मुंबई के कोकिला बेन अस्पताल की पीडियाट्रिक क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ. प्रीथा जोशी बताती हैं कि कोरोना की दूसरी लहर में पूरा परिवार संक्रमित हो रहा है। इस कारण बच्चों में संक्रमण बढ़ा है।
अच्छी बात ये है कि बच्चों में गंभीर मामले नहीं दिखे हैं। संक्रमित बच्चों में निमोनिया की तकलीफ भी एक फीसदी से कम बच्चों में मिली है और वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत भी एक फीसदी से कम बच्चों को पड़ी है।
अब हाई रिस्क बच्चों को लेकर सावधान
डॉ. प्रीथा बताती हैं कि तीसरी लहर में बच्चों पर वायरस के हमले का अनुमान लगाया जा रहा है। अभिभावकों को हाई रिस्क वाले बच्चों जैसे अस्थमा, हृदयरोग, कैंसर, मधुमेह समेत अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रसित बच्चों को लेकर अधिक सावधानी बरतनी होगी। ऐसे बच्चों को बदले हुए स्ट्रेन से संक्रमण हुआ तो इनकी स्थिति बिगड़ सकती है। जिन बच्चों की कीमोथैरेपी चल रही है उनको लेकर बहुत अधिक सतर्क रहना होगा।
तीन सप्ताह डॉ. प्रीथा के अनुसार , बच्चों में दुर्लभ मल्टी सिस्टम इन्फलैमेट्री सिंड्रोम (एमआईएस-सी) के मामले भी मिले हैं । बच्चे को संक्रमण के तीन सप्ताह बाद फेफड़ों ,हृदय संबंधी तकलीफ के साथ बुखार, आंखों में लालिमा और चकत्ते पड़ सकते हैं।
मस्तिष्क संबंधी तकलीफ भी संभव है । इसकी चपेट में आने वाले दस फीसदी बच्चों को पांच से छह दिन के लिए आईसीयू की जरूरत पड़ सकती है । बीपी की दवा भी चल सकती है ।