हालात गंभीर: देश में 6.9 लाख मरीजों को ऑक्सीजन की हो सकती है जरूरत

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Jeet Kumar
Updated Wed, 05 May 2021 12:50 AM IST

अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी।
– फोटो : amar ujala

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आज देश में कोरोना की इस लहर में सबसे ज्यादा मौत ऑक्सीजन की कमी से हो रही हैं। वहीं एक रिपोर्ट के मुताबिक ऑक्सीजन की कमी देश के बड़े शहरों  में ही नहीं बल्कि शहरों, कस्बों और यहां तक कि जिलों के अस्पतालों में भी जारी है।

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केंद्र की योजना के आधार पर अगर अनुमान लगाया जाए तो पूरे देश में लगभग 6.9 लाख मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत हो सकती है, वहीं एक लाख से अधिक ऑक्सीजन बेड और आईसीयू की आवश्यकता हो सकती है। हालांकि इन सभी को एक समय में एक साथ ऑक्सीजन बेड की जरूरत नहीं होगी। 

केंद्र के अनुसार, आवश्यक ऑक्सीजन की आपूर्ति के आकलन के लिए रोगियों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया है, पहले, 80 फीसदी मामले जो हल्के होते हैं और उन्हें ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है। दूसरे, 17 फीसदी मामले जो मध्यम हैं और जिन्हें गैर-आईसीयू बेड पर प्रबंधित किया जा सकता है और तीसरे, 3 फीसदी ऐसे मामले हैं जो गंभीर आईसीयू मामले हैं।

वहीं ऑक्सीजन की बात करें तो कुछ के लिए आवश्यक ऑक्सीजन 10 लीटर प्रति मिनट (एलपीएम) से कम हो सकती है, जबकि अन्य के लिए यह 20 LPM या उससे अधिक तक जा सकती है, लेकिन सभी 20 फीसदी सक्रिय मामलों में ऑक्सीजन की आवश्यकता होगी।

ऑक्सीजन की आवश्यकता वाले मरीजों की वास्तविक संख्या थोड़ी कम या अधिक हो सकती है, क्योंकि आज स्थिति चरम पर है तो ज्यादा जरूरत है, वहीं कई शहरों में स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढांचे की कमी है। इसलिए ज्यादातर गंभीर मामलों में हालात बिगड़ रही है। इसक अन्य कारक भी हो सकते हैं।

बात राजधानी दिल्ली की करें तो यहां सोमवार को ऑक्सीजन की मांग 976 मीट्रिक टन थी, लेकिन केंद्र सरकार से उसे केवल 433 मीट्रिक टन ऑक्सीजन ही मिल पाई। यह मांग की आधी से भी कम यानी केवल 44 फीसदी थी। ऑक्सीजन की यह सप्लाई उस 490 मीट्रिक टन की मात्रा से भी कम है जितनी कि स्वयं केंद्र ने दिल्ली के लिए तय कर रखी है। 

बीते एक सप्ताह में दिल्ली को कुल मांग के मुकाबले औसतन 40 फीसद ही ऑक्सीजन मिली है। अभी भी मांग व आपूर्ति में 56 फीसद का अंतर है। अगर ऑक्सीजन की सप्लाई की स्थिति यह है तो यहां के मरीजों की जान कैसे बचाई जा सकेगी? यही सवाल हाईकोर्ट ने भी केंद्र से पूछा। कोर्ट ने इसे भयंकर लापरवाही करार दिया।

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