लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता (model code of conduct) लागू की जाती है। इस आचार संहिता में भारत के चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के चुनाव के दौरान मुख्य रूप से भाषण, मतदान के दिन, मतदान केंद्र, चुनाव घोषणापत्र, जुलूस और सामान्य आचरण के संबंध में जारी किए गए दिशा-निर्देश होते हैं।
इस दौरान सभी राजनेताओं और चुनावी उम्मीदवारों को इन सभी नियमों का पालन करना होता है और आचार संहिता लागू होने के बाद अगर कोई नेता इन चुनावी उम्मीदवार या मतदाताओं को रिश्वत देते हुए या किसी तरह के अनैतिक कार्य करते हुए पकड़े जाते हैं तो उनके खिलाफ चुनाव आयोग कार्यवाही कर सकती है ।
संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत निष्पक्ष और निर्विवाद चुनाव सुनिश्चित करना चुनाव आयोग का उद्देश्य होता है। चुनाव आयोग जब चुनाव की तारीखों की घोषणा कर देता है तो उसके बाद तत्काल प्रभाव से अगले आदेश तक आचार संहिता लागू हो जाती है। सामान्यतः चुनाव प्रक्रिया के अंत तक आदर्श आचार संहिता लागू रहती है। इस तरह के कोड की आवश्यकता स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के हित के लिए होती है। हालांकि, कोड का कोई विशिष्ट वैधानिक आधार नहीं है इसका केवल एक प्रेरक प्रभाव होता है। यह चुनावी नैतिकता के नियम के रूप में जाना जाता है, लेकिन वैधानिक समर्थन की कमी आयोग को इसे लागू करने से नहीं रोकती है।
चुनाव आयोग द्वारा 1971 यानी 5 वें चुनाव में पहली बार यह कोड जारी किया गया और समय-समय पर इसे संशोधित किया गया है। इन मानदंडों का यह सेट राजनीतिक दलों की सर्वसम्मति के साथ भी विकसित किया गया और जिन्होंने उक्त कोड में निहित सिद्धांतों का पालन करने के लिए सहमति व्यक्त की है। यह उन्हें इसका सम्मान और निरीक्षण करने के लिए भी बाध्य करता है। आदर्श आचार संहिता की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह वैधानिक समर्थन प्राप्त नहीं है इस कारण चुनाव आयोग आदर्श आचार संहिता का पालन ना करने वाले राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही नहीं कर पाता है।
सामान्य आचार संहिता के अन्तर्गत राजनीतिक पार्टियों को अपने प्रतिद्वंदी पार्टियों की उनके पिछले रिकॉर्ड के आधार पर ही आलोचना करनी होगी । वोटरों को लुभाने के लिए जाति और सांप्रदायिक लाभ उठाने से बचना होगा । झूठी जानकारी के आधार पर उम्मीदवारों की आलोचना नहीं करनी होगी। वोटरों को किसी तरह का लालच नहीं देना होगा। इसके दौरान बड़े स्तर पर प्रदर्शन और अनशन भी प्रतिबंधित होंगे।
राजनीतिक पार्टियों को अगर कोई बैठक या सभा करनी होगी, तो उन्हें उस इलाके के स्थानीय पुलिस को इसकी पूरी जानकारी देनी होगी ताकि वह सुरक्षा व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम कर सकें। अगर दो या दो से अधिक पार्टियां एक ही रूप में चुनाव प्रचार के लिए निकली हैं, तो आयोजनकर्ताओं को आपस में संपर्क करके यह तय करना होगा ताकि वे आपस में टकराव की स्थिति और एक-दूसरे के विरोध में हिंसा का प्रयोग नहीं करें। यह सब पूर्ण रूप से प्रतिबंधित रहेगा।
पोलिंग के दिन सभी पार्टी कार्यकर्ताओं को एक पहचान पत्र रखना होगा जिसमें किसी पार्टी का नाम नहीं होगा ना ही किसी का चुनाव चिन्ह और ना ही किसी चुनाव उम्मीदवार का नाम होगा। पोलिंग बूथ पर केवल मतदाता जिनके लोगों के पास चुनाव आयोग के द्वारा मान्य पास होगा वे ही पोलिंग बूथ के अंदर जा सकते हैं ।
चुनावों के निरीक्षण के लिए चुनाव आयोग हर पोलिंग बूथ के बाहर एक निरीक्षक तैनात करेगा, ताकि अगर आचार संहिता का कोई उल्लंघन कर रहा है तो उसकी शिकायत उनके पास की जा सके। इस दौरान सत्ताधारी पार्टी के मंत्रियों को किसी भी तरह की आधिकारिक दौरे की मनाही होगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अपने आधिकारिक दौरे पर किसी भी प्रकार का चुनावी प्रचार और ना ही किसी तरह के लोक लुभावने वादे कर सकें।
सार्वजनिक स्थानों पर किसी तरह का एकाधिकार नहीं होगा। पिछली 2013 की गाइडलाइन के मुताबिक इस नियम में यह कहा गया है कि चुनावी घोषणा पत्र में बताए गए वादों को राजनीतिक दलों को पूरा करना होगा।
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