दिल्ली के शक्ति नगर निवासी 71 वर्षीय विजय कुमार शर्मा कुछ दिन से बीमार हैं। उन्हें बुखार और जुकाम की शिकायत थी। कोरोना संक्रमण के चलते उन्होंने दीप चंद बंधु अस्पताल में आरटीपीसीआर जांच कराई, लेकिन उनकी रिपोर्ट आने में तीन दिन का वक्त लग गया। 10 अप्रैल को उन्होंने जांच कराई थी, 14 अप्रैल को उन्हें पता चला कि रिपोर्ट निगेटिव है। इससे पहले भी उन्होंने आरटीपीसीआर जांच कराई थी, जिसकी रिपोर्ट का अब तक उन्हें पता नहीं चला है। शर्मा की तरह ऐसे कई मामले राजधानी में हैं जिन्हें 72 घंटे बाद भी रिपोर्ट नहीं मिल रही है।
लक्ष्मी नगर निवासी 65 वर्षीय आशा देवी ने बताया कि उन्होंने बीते सोमवार को कोरोना की जांच कराई थी, लेकिन रिपोर्ट अब तक नहीं मिली है। उन्होंने शकरपुर स्थित एक प्राइवेट लैब में जांच कराई थी। इसे लेकर जब ‘अमर उजाला’ ने पड़ताल शुरू की तो पता चला कि राजधानी की ज्यादातर लैब अतिरिक्त भार पड़ने की वजह से समय पर रिपोर्ट नहीं दे पा रही हैं। एक लैब के मुताबिक, उनके यहां रोजाना करीब 2 हजार सैंपल जांच के लिए आ रहे हैं। स्टाफ कम होने के कारण दो शिफ्ट में काम हो रहा है। एक दूसरी लैब का कहना है कि पहले के मुकाबले कई गुना सैंपल बढ़ने से उनके यहां वेटिंग भी बढ़ने लगी है। उन्होंने होम सैंपल की सुविधा बंद कर दी है। कम से कम 48 से 72 घंटे का समय लग रहा है।
उधर, दिल्ली स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उनके यहां से सबसे अधिक सैंपल स्पाइस हेल्थ कंपनी को भेजे जा रहे हैं, लेकिन वहां से रिपोर्ट आने में 72 घंटे से भी अधिक वक्त लग रहा है। शुरूआत में उन्होंने छह घंटे में रिपोर्ट देने का वादा किया था। इसलिए रविवार को दिल्ली सरकार ने स्पाइस हेल्थ को सैंपल भेजना बंद कर दिया। बीते शुक्रवार को 27400 सैंपल भेजे गए थे, जिनमें से कुछ की रिपोर्ट ही अब तक मिल पाई हैं।
स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि राजधानी की प्रत्येक लैब को जल्द से जल्द जांच रिपोर्ट देने का आदेश दिया जा चुका है। इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं की जा सकती। दिल्ली में 101 लैब में कोरोना की जांच हो रही है, जिनमें 29 सरकारी और 72 प्राइवेट लैब में शामिल हैं। बीते 10 अप्रैल से ही रोजाना 90 हजार से भी अधिक सैंपल की जांच हो रही है, जिनमें 70 फीसदी सैंपल की जांच आरटीपीसीआर के जरिए की जा रही है। आमतौर पर आरटीपीसीआर जांच में कम से कम तीन से चार घंटे का वक्त लगता है, लेकिन यह स्थिति तब है जब सैंपल से अधिक संख्या में संसाधन हों।
क्षमता से अधिक जांच
दीप चंद बंधु अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि उनकी लैब के पास सीमित संसाधन हैं, जिन्हें घंटे या दिन में नहीं बांधा जा सकता है। उनकी पूरी कोशिश है कि एक दिन में ही रिपोर्ट उपलब्ध कराई जा सके। सफदरजंग अस्पताल के अनुसार, उनके यहां एक दिन में करीब दो से ढाई हजार तक सैंपल की जांच हो रही है। क्षमता एक से डेढ़ हजार सैंपल की है। तीन शिफ्ट में उनके यहां जांच चल रही है।
मरीज के उपचार में हो सकती है देरी
लोकनायक, दिल्ली एम्स, सफदरजंग, जीटीबी और आरएमएल अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार उनके यहां मरीज के भर्ती होने के 72 घंटे में सबसे अधिक मौतें हो रही हैं। इसके पीछे वजह यह है कि मरीज गंभीर हालत में उनके यहां पहुंच रहे हैं। एम्स के डॉ. अंजन त्रिखा का कहना है कि जांच रिपोर्ट में देरी होने से काफी नुकसान हो सकता है। इस समय हालात ऐसे हैं कि जब तक जांच रिपोर्ट मिलती है तब तक मरीज ऐसी स्थिति में पहुंच चुका होता है कि उसे सांस लेने में तकलीफ, ऑक्सीजन 92 से भी कम आदि दिक्कतें हो रही हैं। ऐसा इसलिए भी कि दिल्ली में संक्रमण की चौथी लहर में एक नहीं, बल्कि वायरस के और भी वैरिएंट काम कर रहे हैं, जो पहले से ज्यादा ताकतवर हैं।
कंटेनमेंट जोन की योजना पर पड़ेगा असर
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, अगर कोई मरीज कोरोना संक्रमित मिलता है तो 72 घंटे के अंदर उसके संपर्क में आने वाले कम से कम 30 लोगों की स्क्रीनिंग करके जांच प्रक्रिया को पूरा कर लेना चाहिए। यदि रिपोर्ट आने में ही तीन से चार दिन का वक्त लगेगा तो आगे की कंटेनमेंट जोन बनाने की प्रक्रिया पर भी असर पड़ता है, जो सुपर स्प्रेडर या फिर संक्रमण स्रोत का पता लगाने में असफल करता है।