लिखना और पढ़ना करीब तीन साल की उम्र से ही शुरू हो जाता है। अकादमिक रूप से नर्सरी से शुरू होकर ये सफर जहां तक चाहें बढ़ाया जा सकता है। मगर असली पढ़ना-लिखना तब शुरू होता है, जब हम खुद से अपने लिए कुछ पढ़ने का विषय चुनते हैं कि हमें क्या पढ़ना है और किस बारे में लिखना है?
मुझे लगता है कि ये समय हर मनुष्य के जीवन में उसकी चेतना के हिसाब से आता है। साथ ही मनुष्य के आस-पास के माहौल में घट रही घटनाओं में उसकी भागीदारी से आता है।
पढ़ना और लिखना दोनों ही ज़रूरी काम है। इससे ही व्यक्तित्व व देश-दुनिया का विकास संभव है। पढ़ने और लिखने से कुछ और नहीं होता है, बल्कि हमारे अंदर का अंधकार रूपी अज्ञान खत्म होता है और हम रोशनी रूपी ज्ञान की ओर बढ़ते हैं।
मौजूदा समय में खुद के लिए पढ़ने और लिखने का समय सीमित होता जा रहा है। हम पढ़ने और लिखने की बजाय फॉरवर्ड और शेयर करने में ज़्यादा ज़ोर देने लगे हैं।
इस माहौल से बाहर निकल ज़रूरी है कि पढ़ने, पढ़ाने और लिखने के कुछ आयाम बनाए जाएं। ताकि हम अपने आस-पास की घटनाओं के बारे में जान सकें और उनका सही-सही विश्लेषण कर सकें। एक-दूसरे के अनुभवों से कुछ नया सीख सकें और इस दुनिया को और बेहतर बना सकें।
पढ़ने और लिखने के लिए हज़ारों विषय हैं, किसी को भी चुना जा सकता है। हम बहुत कुछ ऐसा महसूस करते हैं जिसके बारे में लिखना चाहते हैं और फिर रूक जाते हैं। हमें इसे रूके कदम से आगे बढ़ना होगा और जो महसूस कर रहे हैं, उसे शब्दों में पिरोना होगा। इससे ही हम नई राह को खोज सकते हैं।
मेरी ज़िन्दगी में भी पढ़ना, लिखना और सीखना जारी है ताकि अपने अंदर के डर, भेदभाव और बुराई को को खत्म किया जा सके। सही को सही और गलत को गलत कहा जा सके। इसलिए मैं लिखता हूं कि अपने अंदर के डर को खत्म किया जा सके। इसलिए लड़ें, पढ़ें और लिखें।
अपने 13 साल का सफर पूरा करने के लिए यूथ की आवाज़ को शुभकामनाएं भेंट करता हूं और आशा करता हूं कि ये सफर और दोगुनी गति से आगे बढ़े। लिखने व पढ़ने का और बेहतर माहौल विकसित हो सके। ये साइट नए लेखक को विकसित करने में अहम रोल अदा कर रही है। अपने रीडर व नए लेखक के साथ मेल के ज़रिये जुड़ी रहती है। आशा है कि आगे भी नई जानकारियां इस साइट से मिलती रहेंगी।
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