बाबासाहेब आंबेडकर की याद में, ‘ग्राइंडमिल सॉन्ग्स प्रोजेक्ट' अपने पाठकों के लिए इस लेख में लव्हार्डे गांव की लीलाबाई शिंदे के गाए दोहे (ओवी) लेकर आया है, जिसमें लीलाबाई डॉ आंबेडकर के प्रति अपना स्नेह, सम्मान और आभार ज़ाहिर करती हैं

जब हमारी टीम साल 2017 के अप्रैल महीने में, पुणे जिले के मुलशी तालुका के लव्हार्डे गांव में लीलाबाई शिंदे से मिलने गई, तब लीलाबाई ने बताया कि "मेरा घर फिर से बनाया जा रहा है, इसलिए हम फ़िलहाल अपनी मां के घर में रहते हैं.” वह कलाकार जाई साखले की इकलौती बेटी हैं, जो 'ग्राइंडमिल सॉन्ग्स' के डेटाबेस में दर्ज़ गायक हैं. जाई लीलाबाई के ठीक बगल के घर में  रहते थे. लीलाबाई अपनी मां की फ़्रेम की हुई तस्वीर हमें दिखाने के बाद, उसे अखबार में बड़े करीने से लपेटती हैं और अनाज रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एक लंबे टिन के बॉक्स में रख देती हैं. इसके बाद, हमारे हैरान चेहरे देखकर, वह बताती हैं: “इस घर की दीवारों में कीलें नहीं लगी हैं.”

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‘ग्राइंडमिल सॉन्ग्स’ के डेटाबेस में लीलाबाई और उनकी मां, दोनों के ही गाए दोहे (ओवी) दर्ज़ हैं

‘ग्राइंडमिल सॉन्ग्स’ के डेटाबेस में दर्ज़ गायकों से मिलने पर, हमें ऐसा मालूम चलता है कि उनमें से कई रिश्तेदार हैं, जो जन्म या विवाह के आधार पर जुड़े हैं. उनमें से कुछ माएं और बेटियां हैं, कुछ बहनें या भाभियां/ननदें हैं, और सास व बहुएं भी हैं. लीलाबाई की मां का साल 2012 में निधन हो गया था. उनके गाए दोहे (ओवी) मई 2017 में, ‘ग्राइंडमिल सॉन्ग्स प्रोजेक्ट' के 'किसान और वर्षा गीत' नामक वीडियो फ़िल्मांकन में शामिल हैं.

‘ग्राइंडमिल सॉन्ग्स’ की मूल टीम ने लीलाबाई के गाए सात दोहे (ओवी) कागज़ और क़लम के सहारे दर्ज़ किए थे. हालांकि, उन्हें ऑडियोटेप पर रिकॉर्ड नहीं किया जा सका था. इसलिए, उनसे मिलने पर हमने अनुरोध किया कि वह हमारे कैमरे के सामने गाएं. पहले लीलाबाई इसके लिए राज़ी नहीं थीं, पर अंततः वह मान गईं. वह हमें अपने घर के बाहर, छत वाले आंगन में चक्की के पास ले गईं, और उसके पास बैठ गईं. उन्होंने बांस वाले हैंडल के सहारे चक्की घुमाना शुरू किया और बाबासाहेब आंबेडकर की की याद में 11 दोहे (ओवी) गाए.

डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महू में हुआ था, जो तब के मध्य प्रांत (आज का मध्य प्रदेश) का छावनी वाला इलाक़ा था. बाबासाहेब एक समाज सुधारक, राजनेता, न्यायविद और भारत के संविधान के निर्माता थे. दिल्ली में 6 दिसंबर, 1956 को 65 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया था.

बाबासाहेब आंबेडकर ने अपनी पूरी उम्र शोषितों के अधिकार के लिए संघर्ष करने में बिताई थी. उनके लिखे निबंध "जाति प्रथा का विनाश" ( द एनिहिलेशन ऑफ कास्ट : 1936) को, दलितों को न्याय दिलाने की  बाबासाहेब की लड़ाई का सबसे अहम लेख माना गया, जिसमें स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की बात करने वाले उसूलों पर ज़ोर दिया गया था. आंबेडकर का रास्ता अपनाने वाले लोगों के लिए आंबेडकर ने संदेश दिया था, 'पढ़ो, संगठित रहो, संघर्ष करो.'

बाबासाहेब आंबेडकर ने बौद्ध धर्म और शिक्षा का रास्ता दिखाकर दलितों के बीच उम्मीद को ज़िंदा किया. यह हिंदू समाज की जाति-आधारित उत्पीड़न वाली उस व्यवस्था से बाहर निकलने एक ज़रिया बना जिसने दलितों को 'अछूत' और 'अपवित्र' कहा था.

लीलाबाई शिंदे के गाए 'ग्राइंडमिल सॉन्ग्स'

वीडियो देखें: लीलाबाई शिंदे और उनकी पड़ोसी गा रही हैं. गीत के बोल कहते हैं कि भीम स्वर्ग में इंद्र की सभा के राजा बन गए हैं

इन दोहों (ओवी) में, डॉ आंबेडकर को प्यार से भीम, भीम बाबा, भीमराया या बाबासाहेब पुकारा गया है. कलाकार बाबासाहेब की उपलब्धियों पर गर्व करती हैं, और सम्मान के साथ व्यवहार किए जाने की उम्मीद करती हैं

इन दोहों (ओवी) से पता चलता है कि ज़्यादातर दलित डॉ आंबेडकर के प्रति कितना आदर और सम्मान का भाव रखते हैं. ख़ास तौर पर महिलाओं में यह भावना देखने को मिलती है. और वे सभी बेहद निजी तरीक़े से इन भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं - जैसे, डॉ आंबेडकर को स्नेह के साथ भीम, भीम बाबा, भीमराया या बाबासाहेब कहकर पुकारा जाता है. उन सभी को डॉ आंबेडकर की उपलब्धियों पर गर्व होता है, और साथ ही वे सम्मान के साथ व्यवहार किए जाने और बराबर समझे जाने की उम्मीद रखते हैं.

डॉ आंबेडकर के बारे में गीत गाते हुए लीलाबाई कहती हैं, "भीम मेरे गुरुभाई [शिक्षक और भाई] हैं." उनके लिए, बाबासाहेब रास्ता दिखाने वाले, भरोसेमंद, और उनके भाई हैं. (दूसरे जेंडर (लिंग) या जातियों के लोग सामाजिक विरोध से डरे बिना इस तरह के रिश्ते जोड़ते हैं. अगर पुरुष एक गुरुभाई है, तो महिला एक गुरुबहन है, मतलब कि शिक्षक और बहन.)

चौथे दोहे (ओवी) में लीलाबाई कहती हैं कि बुद्ध के मंदिर में सोने का दरवाज़ा है, और उनका बेटा बुद्ध का पक्का भक्त है. हमें यह भी पता चला कि गायिका की मां बाबासाहेब से दीक्षा लेने और बौद्ध धर्म अपनाने के लिए, जल्दबाज़ी में सफेद साड़ी पहन लेती थी.

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लीलाबाई अपने घर के ठीक बाहर मौजूद चक्की के पास बैठी हैं

पांचवें दोहे में, वह पूछती हैं: "हमें बाहरी कौन कहता है?" उनके कहने के मायने हैं: हमें "अछूत" कौन कहता है? वह हमें याद दिलाती हैं कि भीम ने तो सभी ब्राह्मणों से रिश्ता जोड़ लिया है. उनकी यह बात इस तथ्य के संदर्भ में निकलकर आती है कि डॉ आंबेडकर की दूसरी पत्नी सविता ब्राह्मण थीं.

छठें दोहे (ओवी) में दृश्य आता है कि लीलाबाई, भीम की पगड़ी को सजाने के लिए चमेली के फूल ख़रीदना चाहती हैं, और एक महिला बाग़बान से पूछती हैं, "आपकी टोकरी में क्या है?" सातवें दोहे में वह कहती हैं कि आने वाली ट्रेन में (प्रगति का प्रतीक) अरहर (फली) के डांठ हैं, जो सम्मान और समृद्धि का प्रतीक है, जबकि "मराठी लोग" जानवरों की लाशों के निपटारे में लगे हैं. इस दोहे (ओवी) में उनका वह गुस्सा ज़ाहिर होता है जो ज़्यादातर दलितों के भीतर सवर्ण जातियों को लेकर है. वह कहती हैं - कई पीढ़ियों को जानवरों के शवों को साफ़ करने और उनका निपटान करने के लिए मजबूर किया गया था, और बहुतों को आज भी ऐसा करने के लिए मजबूर किया जाता है. अरहर के डांठ वाली ट्रेन प्रगति और दलितों के सम्मान भरे भविष्य की ओर इशारा करती है, जबकि यहां "मराठी लोग" उन सवर्ण जातियों के लिए इस्तेमाल किया गया है जिन्होंने दलितों को अपना नौकर बनाकर, अपमानजनक काम करने के लिए मजबूर किया है.

आख़िरी तीन दोहों में, वह डॉ आंबेडकर के इस दुनिया में न होने को याद करती हैं. वह कहती हैं कि बाबासाहेब भले इस दुनिया में नहीं होंगे,  लेकिन वह अब भी इंद्र की उस सभा के राजा हैं जो हिंदू पौराणिक कथाओं के हिसाब से, स्वर्ग में इंद्र द्वारा शासित देवताओं की परिषद है. वह भगवान को चावल भेंट करती हैं, और आभार महसूस करती हैं कि दलितों के लिए सोने से भी ज़्यादा क़ीमती भीमराव अब स्वर्ग में हैं.

अंतिम दोहे (ओवी) में बताया गया है कि मृत्यु के बाद, भीम बाबा के शरीर को एक कार में ले जाया गया था. जैसे ही कार आगे बढ़ने लगी थी, लोग भी उसके पीछे-पीछे चलने लगे थे. यह इस बात का प्रतीक भी है कि डॉ आंबेडकर के रास्ते को बहुत से दलितों ने अपनाया. बाबासाहेब की तरह उन्होंने भी हिंदू धर्म छोड़ दिया और बौद्ध धर्म अपना लिया. बाबासाहेब के नक़्श-ए-क़दम पर चलते हुए, उन्होंने ख़ुद को शिक्षित करने की ठानी, ताकि ज़ुल्म से आज़ादी पा सकें.

भीम, ओ, भीम! मैं कहती हूं, भीम मेरा गुरुभाई है
अब चावल को सोने की मूसल से मैं कूटती हूं

भीम, ओ, भीम! मैं कहती हूं, भीम तो डली हैं मिसरी की
मेरे दांत मीठे हो जाते हैं, जैसे उनको मैं सोचती हूं

भीम, ओ, भीम! मैं कहती हूं, भीम तो पोटली चीनी की
मेरा तन शुद्ध हो जाता है, जब उनका नाम मैं लेती हूं

बुद्ध के मंदिर का दरवाज़ा, है वह सोने की दरख़्त सा
बुद्ध के रस्ते चलता है, मेरा बेटा सबसे बड़े भक्त सा

सफ़ेद साड़ी पहन के वह जल्दी से आई -
बाबासाहेब से दीक्षा लेती है मेरी माई

किसने किया पराया! कौन है हमें बाहरी कहने वाला
भीम ने तो सब ब्राह्मणों को, बना लिया अपना साला

ओ बाग़ लगाने वाली औरत! तुम्हारी टोकरी में है क्या?
भीमा की पगड़ी की ख़ातिर, चमेली चाहिए, है क्या?

अब आई है ट्रेन कि वह, जिसमें अरहर के डंठल रहते हैं
भीमा के राज में मराठी लोग, लाशों का ठिकाना करते हैं

भीम बाबा नहीं रहे - पर कौन कहेगा नहीं रहे?
वह तो स्वर्ग की इंद्रसभा में बैठे, हर कोई उनको राजा कहे

हे, स्वर्ग-देवता, चावल की ये भेंट तुम स्वीकार करना
भीमा बाबा रहे नहीं, अब स्वर्ग गया हमारा सोने का गहना

भीम बाबा रहे नहीं, और कार में उनका तन जाता है
कार के बढ़ने पर पीछे, रस्ता लोगों से सन जाता है

PHOTO • Samyukta Shastri

परफ़ॉर्मर/कलाकार : लीलाबाई शिंदे

गांव : लव्हार्डे

तालुका : मुलशी

जिला : पुणे

जाति : नवबौद्ध

उम्र : ६०

बच्चे : तीन बेटे और एक बेटी

व्यवसाय (काम) : चावल की खेती

ये गीत 30 अप्रैल, 2017 के दिन रिकॉर्ड किए गए थे

पोस्टर: सिंचिता माजी

अनुवाद - देवेश

Devesh is a poet-writer, freelance journalist, filmmaker and translator. He is writing a book based on agrarian distress and farmer suicides. He is also active in the farmer’s movements across the country. Contact: [email protected]

PARI GSP Team

PARI Grindmill Songs Project Team: Asha Ogale (translation); Bernard Bel (digitisation, database design, development and maintenance); Jitendra Maid (transcription, translation assistance); Namita Waikar (project lead and curation); Rajani Khaladkar (data entry).

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Namita Waikar is a writer, translator and Managing Editor at PARI. She is the author of the novel 'The Long March', published in 2018.

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