हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा लाये गए कृषि कानूनों पर चारों ओर विरोध हो रहा है। कुछ राजनैतिक पार्टियां, संस्थाएं इसका भरपूर विरोध कर रही हैं तो कुछ समर्थन भी कर रही हैं। इन सबमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि इन कानूनों को लाने वाली सत्ताधारी पार्टी भी कांग्रेस शासन में इन कानूनों का विरोध कर चुकी हैं, जबकि कांग्रेस पार्टी जो अपने शासन में ये कानून लागू करना चाहती थी।
वह आज इनके विरोध में है, कुल मिलाकर यह राजनीति का गन्दा खेल है। जिसमें हमेशा से ही आम आदमी ठगा जाता रहा है। इसकी एक मुख्य वजह यह भी है कि आमजन उतना ही सोचता है, जितना राजनैतिक पार्टियां चाहती हैं। वैसे, नियम से तो यह होना चाहिए कि किसी भी विषय पर प्रतिक्रिया देने से पहले उसके पक्ष और विपक्ष के बारे में जान लेना आवश्यक है।
यह सही है की कृषि सुधारों को लागू करने के लिए इन कानूनों की लम्बे समय से आवश्यकता थी, परन्तु इन कानूनों की कुछ कमियों को दुरस्त करना भी एक महत्वपूर्ण पहलू है।
इन कानूनों के बारे में यह कहा जा रहा है कि ये असंवैधानिक हैं। यदि हम कानूनों को इस दृष्टिकोण से देखें तो इनकी असंवैधानिकता केवल दो पहलुओं के आधार पर हो सकती है या तो कानूनों की विषय वस्तु का संविधान में टकराव हो या फिर संसद में कानून पास करने की निर्धारित प्रक्रिया का पालन ना किया गया हो या फिर संसद को इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार ही ना हो।
इन कानूनों के सम्बन्ध में ये तीनो ही आधार मजबूत नहीं हैं। हां, संसद में कानून पास करने की इस निर्धारित प्रक्रिया के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, क्योंकि ये कानून राज्यसभा में ध्वनि मत से पास करवाए गए हैं, जिसका कोई रिकॉर्ड नहीं होता है। परन्तु, आर्टिकल 122 के अनुसार कोई भी कोर्ट संसद की आंतरिक प्रक्रिया पर कार्यवाही नहीं कर सकती है।
जहां तक सवाल संसद का कृषि पर कानून बनाने का है तो 7वी अनुसूची की समवर्ती सूची की एंट्री नंबर 33 के अनुसार कृषि के उत्पादन, बिक्री, वितरण, व्यापार एवं वाणिज्य पर कानून बना सकती है। इसलिए असंवैधानिकता का सवाल खारिज हो जाता है।
हालांकि, विपक्ष ने संसद में यह भी मांग की थी की इन कानूनों को पास करने से पहले संसद की विशेष समिति को जांच के लिए भेजा जाए, परन्तु सत्तापक्ष के पास इतना समय नहीं बचा था कि विपक्ष की यह मांग पूरी कर सकें।क्योंकि, ये कानून अध्याधेश के माध्यम से लाए गए थे और इस मानसून सत्र में पास नहीं करवाने की स्थिति में अध्यादेश/कानून स्वतः समाप्त हो जाते। इसलिए ये कानून इसी सत्र में पास करवाना सत्तापक्ष के लिए आवश्यक था।
इन तीन कानूनों में पहला कानून है कृषि व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण ) एक्ट, 2020 । जिसके मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं।
1. किसानों के लिए मंडी के अलावा एक नया व्यापार क्षेत्र होगा जो प्रतिस्पर्धा पैदा करेगा, मंडियों के अतिरिक्त व्यापार क्षेत्र में फॉर्मगेट, कोल्ड स्टोरेज, वेयर हाउस, प्रसंस्करण यूनिटों पर भी व्यापार की स्वतंत्रता होगी।
2. किसान अपने कृषि उत्पाद अन्य राज्यों में भी बेच सकता है।
3. किसान ऑनलाइन ट्रेडिंग भी कर सकता है।
4. राज्य सरकार इन नए व्यापार क्षेत्रों पर कोई टैक्स ,सेस या कर नहीं लगाएगी, इसके साथ ही राज्य सरकारें इसके लिए कोई नया कानून नहीं बनाएंगी।
5. डिस्प्यूट सेटलमेंट मैकेनिज़्म( वाद की सुनवाई हेतु ) होगा, जिसमें SDM मुख्य सुनवाई अधिकारी होगा। जिसे किसी विवाद की स्थिति में 30 दिन में मामला सुलझाना होगा एवं DM (जिलाधिकारी) अपीलीय अधिकारी होगा। जिसे भी 30 दिन में फैसला देना होगा यानी कुल मिलाकर कोई विवाद होने पर 60 दिन में सम्बन्धित अधिकारी को उसका फैसला करना होगा।
इसके साथ ही किसानों से सम्बन्धित मामले सिविल कोर्ट में नहीं जाएंगे। इस कानून में अच्छे प्रावधानों के साथ ही विवादों को सुलझाने हेतु कोई ट्रिब्यूनल का ना होना और किसानों को सिविल कोर्ट में जाने का अधिकार ना होना एक बहुत बड़ी कमी है। क्योंकि, डीएम/SDM सरकार के ही नुमाइंदे हैं और सरकार के खिलाफ फैसला करना असंभव सा है एवं APMC पर टैक्स और नए ट्रेड एरिया को टैक्स फ्री रखना भी एक कमी है जो APMC मंडियों को कमजोर बना देगा इसलिए यह त्रुटिसुधार आवश्यक प्रतीत होता है।
मुख्य रूप से यह कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को प्रमोट करने के सम्बन्ध में है। इसका मुख्य प्रावधान है, कृषकों को व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यातकों से सीधे तौर से जोड़ना। कृषि करार के माध्यम से बुवाई से पूर्व ही किसान को उसकी उपज के दाम निर्धारित करना। बुवाई से पूर्व किसान को मूल्य का आश्वासन प्राप्त होना। फसल के दाम बढ़ने पर न्यूनतम मूल्य के साथ अतिरिक्त लाभ देना।
इस विधेयक की मदद से बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों से हटकर प्रायोजकों पर चला जाएगा। मूल्य पूर्व में ही तय हो जाने से बाजार में कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव का प्रतिकूल प्रभाव किसान पर नहीं पड़ेगा।
इससे किसानों की पहुंच अत्याधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी, कृषि उपकरण एवं उन्नत खाद, बीज तक होगी। इससे विपणन की लागत कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित होगी।
किसी भी विवाद की स्थिति में उसका निपटारा 30 दिवस में स्थानीय स्तर पर करने की व्यवस्था की गई है। कृषि क्षेत्र में शोध एवं नई तकनीकी को बढ़ावा दिया जाएगा। इसमें विवाद यह है कि अनुबंधित कृषि समझौते में किसानों का पक्ष कमजोर होगा और वे कीमतों का निर्धारण नहीं कर पाएंगे।
छोटे किसान संविदा खेती (कांट्रेक्ट फार्मिंग) कैसे कर पाएंगे? क्योंकि, प्रायोजक उनसे परहेज कर सकते हैं। किसानों के साथ किसी विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियों को लाभ होगा। बडे पूंजीपतियों के आने से छोटे व फुटकर व्यापारी, दुकानदार समाप्त हो जाएंगे, जो कि विपरीत प्रभावकारी साबित होगा।
कृषि कानून में कहीं भी न्यूनतम समर्थन मूल्य शब्द का उल्लेख नहीं है। मॉडल कॉन्ट्रैक्ट का कोई फॉर्मेट या गाइडलाइन का प्रावधान नहीं है. परन्तु ये लिखा है की सरकार चाहे तो जारी कर सकती है। परन्तु, सरकार ने कहा है की किसान को अनुंबध करने में पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी कि वह अपनी इच्छा के अनुरूप दाम तय कर उपज बेच सकेगा।
उन्हें अधिक से अधिक 3 दिन के भीतर भुगतान प्राप्त होगा। देश में 10 हजार कृषक उत्पादक समूह निर्मित किए जा रहे हैं। यह समूह (एफपीओ) छोटे किसानों को जोड़कर उनकी फसल को बाजार में उचित लाभ दिलाने की दिशा में कार्य करेंगे। अनुबंध के बाद किसान को व्यापारियों के चक्कर काटने की आवश्यकता नहीं होगी। खरीदार उपभोक्ता उसके खेत से ही उपज लेकर जा सकेगा।
किसी भी विवाद की स्थिति में कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने की आवश्यक्ता नहीं होगी। विवाद का स्थानीय स्तर पर ही निपटाने की व्यवस्था रहेगी। इस कानून में प्रावधान किया गया है कि कोई भी स्पांसर किसान की भूमि पर ना तो कोई स्थायी ढांचा बना सकता है और ना ही उसे गिरवी रख सकता है। इसमें प्रावधान किया गया है की किसान और स्पांसर के मध्य विवाद की स्थिति में यदि स्पांसर की त्रुटि पायी जाती है तो डेड गुना पेनल्टी लगाई जा सकती है।
यह प्रावधान केंद्र सरकार को कुछ खाद्य पदार्थों की आपूर्ति को केवल असाधारण परिस्थितियों (जैसे युद्ध और अकाल) के तहत विनियमित करने की अनुमति देता है। कृषि उपज पर स्टॉक सीमाएं तभी लगाई जा सकती हैं, जब कोई स्थिर मूल्य वृद्धि हो।
इसके तहत अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तु की सूची से हटा दिया गया है। यह अधिनियम केंद्र सरकार को कुछ वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण, व्यापार और वाणिज्य को नियंत्रित करने का अधिकार देता है।
विश्लेषणात्मक रूप से गौर करने पर ये कानून कुछ त्रुटि सुधार के बाद कृषि सुधारों के लिए महत्वपूर्ण कहे जा सकते हैं, परन्तु पूर्ण रूप से इन्हें खारिज करना सही नहीं कहा जा सकता, क्योंकि लम्बे समय के लिए किसान उत्थान के लिए ये कानून वरदान माने जा सकते हैं।
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