कागज़ पे बिखरा हर लफ्ज़ जो चीखता है

हां, वो चीख कविता है।

 

प्रेम पीड़ा हो जाता है, जिस छोर पर

कलम दौड़ पड़ती है, दर्द ओढ़ के

हां, वो दर्द कविता है।

 

चांद चढ़ रहा है, एक सूने आंगन में वैसे

मिलने को ठहरा हो, चकोर से जैसे

हां, वो ठहराव कविता है।

 

मृग मरीचिका बन गई, मन की पहेली

पूछे हैं घटाएं, कहीं ले चलूं क्या सहेली

हां, वो घटाएं कविता है।

 

आकाश से धरा का संवाद है वैसा

शिशु के रुदन पर, माँ का ह्रदय उमठा हो जैसा

हां, वो रुदन कविता है।

 

गर कोई वेदना याद आ गई हो तुम को अभी

फिर खुद को समझूंगी मैं भी कवि

कागज़ पे बिखरा हर लफ्ज़ जो चीखता है

हां, वो चीख कविता है।

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