मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा घोटाला माने जाने वाला व्यापम घोटाले की गूंज आज एक बार फिर से मध्यप्रदेश में सुनाई देने को मिल रही है। जिसके पीछे की वजह एक बार फिर से बेकाबू राजशाही को ठहराया जा रहा है। यानी कि कुल मिलाकर राजशाही का शह पाकर मध्यप्रदेश में आयोजित होने वाली सबसे बड़ी सरकारी परीक्षा व्यापम में एक बार फिर से घोटाला किया गया। इस बार घोटाले के लिए एक नई ही नीति अपनाई गई। जहां अभ्यर्थी की जगह किसी दूसरे को ना बिठा कर पूरा का पूरा प्रश्नपत्र को लीक कर दिया गया।
पिछले बार उठी आवाज़ की तरह इस बार मीडिया पटल पर आपको ये आवाज़ उस कदर सुनने को नहीं मिलेगी। जिसके परिणामस्वरूप अपने हक की लड़ाई लड़ते हुए, इस परीक्षा के अभ्यर्थी जो कि सालों से इसकी तैयारी कर रहे थे। आज 34 दिनों से अपने-अपने 12 कॉलेज कैम्पस के बाहर अर्ध-नग्न अवस्था में प्रदर्शन करने को मजबूर है। परंतु, 34 दिन बीत जाने के बाद भी कोई भी सरकारी अधिकारी या तंत्र से जुड़ा कोई व्यक्ति इनकी बात तक सुनने को तैयार नहीं है।
एग्रीकल्चर की पढ़ाई कर रहे एम.ए अंतिम वर्ष के एक विद्यार्थी का इसपर कहना है कि परीक्षा के दिन को पेपर लीक होने की बात उठी थी। लेकिन, हमनें उस समय उसे एक अफवाह मात्र मानकर उस पर ध्यान नहीं दिया। परंतु, हमें असली झटका उस समय लगा जब परीक्षा के परिणाम आए। जिन विद्यार्थियों को हम खुद पढ़ाया करते थे।
उस परीक्षा में उनके पूरे के पूरे नंबर थे। सबसे बड़ी आश्चर्य की बात तो ये थी कि उन्हें उस विषय मे भी पूरे नंबर मिले थे, जिनमें मैं दावे के साथ कहता हूं कि वो 1 भी सवाल अब भी बैठ कर वो हल नहीं कर सकते। ऐसे में हम विद्यार्थी अपने हक के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं।
एक विद्यार्थी से इस तरह प्रदर्शन करने की वजह पूछने पर उसका जवाब आया, सरकार जिस भाषा में समझेगी तो हम भी उसी भाषा में उन्हें समझाने का प्रयास करेंगे। अगर सरकार ने ऐसे हमारी बात ना सुनी तो कल हम सड़को पर उतर कर भी प्रदर्शन करेंगे। हम सरकार के जांच के झूठे जाल में नहीं फंसने वाले हैं।
इसी जांच की आड़ में पिछले बार हुए व्यापम घोटाले के राज से पर्दा नहीं उठ सका है। अब इस पर कोई बात करने वाला भी नहीं है। यह हमारे भविष्य का सवाल है। हम इस मामले को सरकार के ठंडे बस्ते में जाने नहीं देंगे।
वहीं, एक विद्यार्थी का कहना था कि हो ना हो, यह सरकार की मिली भगत का परिणाम है। क्योंकि, बिना सरकारी शह के यह सम्भव है ही नहीं और मजेदार बात तो यह है कि प्रदर्शन के 34 दिनों बाद तक कोई भी सरकारी तंत्र या उससे जुड़ा कोई व्यक्ति हमारे इस प्रदर्शन पर किसी भी प्रकार की कोई वार्ता करने नहीं आया है। ना ही आपको इतना बड़ा मुद्दा किसी भी राष्ट्रीय स्तर की मीडिया में देखने को मिला होगा। सच्चाई तो यह है कि कोई भी इस मामले की गंभीरता को समझने का प्रयास ही नहीं कर रहा है।
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