हमें फाड़ देनी चाहिंए

संविधान की वो सारी प्रतियां

जिन्हें लिपिबद्ध किया था

हमारे पूर्वजों ने

 

जिस पर लिखा है हम भारत के लोग

लेकिन, हम भारत के लोग

लोग नहीं

हिन्दू-मुसलमान हो रहे हैं।

 

गूंगी-बहरी हो गई हैं संसद की दीवारें

सड़कों पे उतरे हैं भूमिधर

बंजर- लावारिस से

खेत-खलिहान हो रहे हैं।

 

धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को तोड़ लिया है हमने

ठीक है धर्म रख लो

निरपेक्षता भी हमारी ज़रूरत नहीं

 

लेकिन, मैं पैदाइश हूं इस मिट्टी की

चाहे कोई इल्ज़ाम दे दो

खुद को साबित करूंगी नहीं।

 

गांधी को पढ़ने वाले जिन्ना की मान रहे हैं

मूर्छित पड़ा है भारत

सावरकर की नीति को हम

अब बेहतर पहचान रहे हैं।

 

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