मस्जिद की दीवारों पर कुरान की आयतें लिखने वाले अनिल चौहान

जिब्रानउद्दीन।Twocircles.net 

हैदराबाद के अनिल चौहान पिछले 25 सालों से मस्जिदों में कुरान की आयतों की खूबसूरत कैलीग्राफी उकेरते हुए अपने हुनर का प्रदर्शन कर रहे हैं। वो खुद को काफी खुशनसीब बताते हैं कि ऊपर वाले ने उन्हें इस काम के लायक़ समझा है। 


Support TwoCircles

अनिल कुमार चौहान अब देश के लिए सांप्रदायिक सौहार्द की एक मिसाल बन चुके हैं। अनिल चौहान यह पिछले 25 सालों से कर रहे हैं। वो मस्जिदों में कुरान की आयतों की खूबसूरत कैलीग्राफी उकेरते है। अनिल खुद को काफी खुशनसीब बताते हैं कि ऊपर वाले ने उन्हें इस हुनर के लायक़ समझा।

हैदराबाद की तंग बस्तियों में रहने वाले अनिल चौहान को उर्दू भाषा में महारत हासिल है। वो अपने शुरुआती दौर में चौहान साइनबोर्ड पेंटिंग का काम किया करते थे। उस समय निजामी शहर में दुकानों के बोर्ड पर उर्दू में लिखने का चलन था। चौहान हमेशा से सुंदर कलात्मक की लिखाई में माहिर थे, लेकिन उनकी उर्दू भाषा पर बिल्कुल पकड़ नही थी। ग्राहक के ज़रूरत अनुसार उन्हें जैसा लिखकर दिया जाता था, वैसा ही हू-ब-हू उतार दिया करते थे।

समय के साथ-साथ उनके अंदर उर्दू को जानने और समझने की चाह जागने लगी। उन्होंने लगातार मेहनत कर उर्दू पढ़ना और लिखना सीख लिया। चौहान में एक स्थानीय अख़बार से बताया कि “मैं उर्दू नहीं समझ सकता था और न ही मैं इसे बोल पा रहा था। मैं अपने ग्राहकों को इसे लिखने के लिए कहता था ताकि मैं साइनबोर्ड पर ठीक वैसा ही चित्रित कर सकूं। तभी मैंने उर्दू सीखने का फैसला किया और धीरे-धीरे इसे समझना, बोलना और लिखना शुरू कर दिया।”

कुरआन की आयतों से मस्जिद की शोभा बढ़ाने का उन्हें मौका नूर मस्जिद से मिला। अनिल चौहान अपने पहले अवसर के बारे में बताते हैं कि उनकी लिखावट से खुश होकर एक मुस्लिम व्यक्ति ने उन्हें सबसे पहले मस्जिद-ए-नूर की दीवारों पर कुरान की आयतों को लिखने का मौका दिया था। उसके बाद वो रुके नहीं और आज 25 सालों से अनिल कुमार चौहान ने हैदराबाद और उसके आस-पास की सैकड़ों मस्जिदों में कुरान की आयतें, हदीस के पाठ और कलमात लिख रखा हैं।

कई सालों तक इस काम के लिए उन्होंने कोई रकम नही ली । बिना मेहनताने के ही वो मस्जिदों और दरगाहों की दीवारों को खूबसूरत बनाते आएं हैं। हालांकि उन्होंने अब इसके लिए एक रकम लेना शुरू किया है, लेकिन वो काफी मामूली सी है।

शुरुआती दौर में कुछ लोगों द्वारा चौहान का विरोध भी किया गया था। विरोध करने वाले लोगों का कहना था की मुस्लिम धर्म के मान्यताओं के अनुसार कुरान की आयतों को पढ़ने या लिखने के लिए पाक-साफ होना ज़रूरी होता है चाहे वो कोई मुस्लिम ही क्यों न हो।

इस बात पर अनिल चौहान ने अपने काम को जारी रखने के लिए हैदराबाद में जामिया निज़ामिया यूनिवर्सिटी से इजाज़त मांगी। ये यूनिवर्सिटी दक्षिण भारत में इस्लामिक शिक्षा का सबसे पुराना और बड़ा केंद्र है। यूनिवर्सिटी ने अनुमति इस बात के साथ देदी गई कि चौहान भी खास तरह से पाक-साफ रहकर कुरान की आयत लिख सकते हैं, जिसपर चौहान को कोई आपत्ति नहीं हुई। आज उनके काम की सराहना हिंदू और मुसलमान दोनोें करते हैं।

उसी जामिया निज़ामिया यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में भी चौहान की कला का एक बेहतरीन नमूना देखने को मिल जायेगा। वो कहते हैं “मेरे काम को जामिया निज़ामिया यूनिवर्सिटी के पुस्तकालय में प्रदर्शित किया गया है, जहाँ मैंने कुरान के ‘सूरह यासीन’ के आयतों को चित्रित किया है,”

अनिल ने सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देते हुए संदेश दिया है कि देश के दोनो मुख्य धर्म के लोगों (हिंदुओ और मुस्लिमों) को शांति और एकता के साथ रहना चाहिए। उन्होंने बताया “मैं हिंदू होने के बावजूद मस्जिदों की दीवारों पर कुरान की आयतें बनाते हुए बहुत खुश हूं। मैं लगभग तीन दशकों से ये काम कर रहा हूं और मैंने एक भी समस्या का सामना नहीं किया है, वो कहते हैं कि दशकों पहले एक कविता में कहा गया था -“मज़हब नही सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन हैं हिंदोस्तां हमारा”।

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE