
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार.
बिहार में तीन प्रमुख राजनीतिक दल जनता दल यूनाइटेड (RJD), राष्ट्रीय जनता दल (JDU) और भाजपा (BJP) अपने हर दिन की राजनीति में दिवंगत पूर्व मुख्य मंत्री और प्रख्यात समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर के सिद्धांतों पर चलने की बात कहती हैं. लेकिन दो महीने पूर्व बिहार में जब से एनडीए की सरकार बनी हैं और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर तीसरे नम्बर की पार्टी होने के बाबजूद नीतीश कुमार बैठे हैं .उसके बाद एक बार फिर दलों में ये होड़ लगी हैं कि कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक विरासत असल मायने में किसे मिली है?
निश्चित रूप से कर्पूरी ठाकुर जिन्होंने राज्य की राजनीति में पिछड़ों ख़ासकर पिछड़ों में ग़रीब जिन्हें अति पिछड़ा की वर्गीकरण से उनके शासनकाल में सरकारी नौकरियों में आरक्षण सुविधाएँ दी गई .उसके क़रीब नीतीश कुमार अपने आपको सबसे अधिक मानते हैं क्योंकि उन्होंने बिहार में नवम्बर 2005 में सत्ता में आने के साथ ही पंचायतों में पहली बार अति पिछड़ा समुदाय को 18 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया. जिसके बाद उन्होंने महादलित और अति पिछड़ा को एक साथ लाकर एक नया वोट बैंक बनाया.
लेकिन रविवार को कर्पूरी जयंती के अवसर पर अपनी पार्टी कार्यालय में आयोजित समारोह में नीतीश कुमार ने कुछ बातें ऐसी कह दी जिससे लगता है कि राजनीतिक अस्थिरता के माहौल में वो कर्पूरी ठाकुर का नाम और उनकी विरासत को अब अपने सता में बने रहने के लिए कवच के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. नीतीश कुमार ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर को मात्र ढाई साल ही सता में रहने का अवसर मिला क्योंकि सभी वर्गों के लिए काम किया लेकिन कुछ निर्णय लिए जो उस समय के लोगों को रास नहीं आया. निश्चित रूप से नीतीश कुमार का इशारा उस समय राज्य में आरक्षण की व्यवस्था से था जिसके कारण सत्ता में सहयोगी जनसंघ के लोग नाराज़ हो गये थे. नीतीश ने अपने भाषण में ये भी कहा कि कभी कभी सबके हित में काम करने से कुछ लोग नाराज़ हो जाते हैं. फिर उन्होंने अपने विरोधियों पर तंज कसते हुए कहा कि कुछ लोग सिर्फ़ सता का सुख लेना चाहते हैं हम लोगों के लिए सता का मतलब हैं लोगों की सेवा करना.
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इसके अगले दिन जब बात कर्पूरीठाकुर को भारत रत्न देने की माँग आयी तो नीतीश कुमार ने एक ट्वीट कर गिना दिया कि उन्होंने बिहार की सता संभालने के बाद कितनी बार प्रस्ताव वो चाहे मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री हो या नरेंद्र मोदी ये प्रस्ताव भेजा हैं.
हमने जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने के लिए अपनी अनुशंसा केन्द्र सरकार को पहले ही भेज दी है। इससे पहले भी वर्ष 2007, 2017, 2018 एवं 2019 में भारत रत्न के लिए इनके नाम की अनुशंसा की गई थी। हमारी ख्वाईश है कि जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से विभूषित किया जाय। pic.twitter.com/dshDkS9D4l
— Nitish Kumar (@NitishKumar) January 25, 2021
लेकिन जानकारों का कहना हैं कि नीतीश को भले भाजपा ने मुख्यमंत्री के कुर्सी पर बिठा कर अपने वादे को पूरा किया हो लेकिन उनके साथ संबंध सामान्य नहीं रहे. जिसका प्रमाण हैं वो चाहे मंत्रिमंडल का विस्तार हो या राज्यपाल द्वारा मनोनीत बारह विधान पार्षदों का मामला अधर में लटका हुआ हैं. नीतीश कुमार के समर्थकों को लगता हैं कि भाजपा कभी भी कुर्सी खींच भी सकती हैं. ऐसे में नीतीश का कर्पूरीठाकुर के समय से अपनी तुलना दरअसल उनका नया राजनीतिक पैंतरा हैं . वो भाजपा के ऊपर एक दबाव बनाए रखना चाहते हैं कि वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावा ना करें क्योंकि तब वो ये राग छेड़ देंगे कि उन्हीं लोगों ने उन्हें हटाया जिन्होंने स्वर्गीय ठाकुर को हटाया था .
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