
यूनेस्को ने कुंभ मेले को सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता प्रदान की है (फाइल फोटो)
खास बातें
- कुंभ मेले की शुरुआत से पहले ही हरिद्वार में जुटे हजारों श्रद्धालु
- कल ही आठ से 10 लाख लोग लगाएंगे पवित्र गंगा में डुबकी
- यूनेस्को ने कुंभ मेले को सांस्कृतिक विरासत के रूप में दी है मान्यता
Kumbh Mela: कोरोना वायरस के खतरे (Corona Virus Scare) की अनदेखी कर हजारों की संख्या में हिंदू तीर्थयात्री, कुंभ मेले की शुरुआत के एक दिन पहले गंगा नदी (Ganga River) के किनारे इकट्ठे हुए हैं. धार्मिक फेस्टिवल कुंभ मेले में हर बार लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. भले ही कोरोना संक्रमितों की संख्या के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर हो और यहां कोरोना के कारण डेढ़ लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी हों, लेकिन वायरस भी हिंदू श्रद्धालुओं को कुंभ यात्रा से नहीं रोक पाया है. आयोजन से जुड़े सिद्धार्थ चक्रपाणि कहते हैं, 'कोराना महामारी के कारण कुछ चिंता है लेकिन हम पूरी ऐहतियात बरत रहे हैं.' चक्रपाणि के अनुसार, पहले दिन गुरुवार को ही आठ से 10 लाख लोगों के गंगा में डुबकी लगाने के लिए (Taking a dip in the Ganga River) पहुंचने का अनुमान हैं. गुरुवार को मकर संक्रांति भी है.
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उन्होंने कहा, 'मुझे विश्वास है कि 'मां गंगा' श्रद्धालुओं की रक्षा का ध्यान रखेंगी.' गंगा को हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार पावन नदी माना जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, देवताओं और दानव के बीच अमृत के एक घंड़े को लेकर संघर्ष हुआ था, इस दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें छलककर चार स्थानों पर गिरी थीं जो बारी-बारी से कुंभ मेले के मेजबान होते हैं. यूनेस्को ने इसे सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता प्रदान की है. पिछला कुंभ मेला वर्ष 2019 में इलाहाबाद में आयेाजित हुआ था, 48 दिन से अधिक समय तक चले इस धार्मिक उत्सव में साढ़े पांच करोड़ लोग शामिल हुए थे.
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इस बार, उत्तर हरिद्वार शहर कुंभ का मेजबान है, उत्तराखंड के इस पवित्र शहर में आने वाले सप्ताहों में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है. गंगा नदी में डुबकी लगाने को हिंदुओं में पवित्र संस्कार माना जाता है. गांजा पीते साधु कुंभ मेले का खास आकर्षण होते हैं, ये पवित्र डुबकी के लिए पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को आशीर्वाद प्रदान करते है. बुधवार को ही बड़ी संख्या में गंगा नदी किनारा श्रद्धालु और दुकानदारों से भरा नजर आया. लोग कोरोना के खतरे से बेखबर नजर आए. 50 साल के एक श्रद्धालु संजय शर्मा ने कहा, 'भारत, यूरोप की तरह नहीं है, इम्युनिटी की बात करें तो हम बेहतर स्थिति में हैं.'
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)