
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो).
बिहार (Bihar) में अपराधी (Crimnals) अब पुलिस से नहीं डरते. आप यह भी कह सकते हैं कि अपराधियों में पुलिस का ख़ौफ़ नहीं रहा. इसके उदाहरण दो ताज़ा घटनाएं से सामने आए जब एक ओर राजधानी पटना में इंडिगो एयरलाइंस के स्टेशन मैनेजर रूपेश कुमार की उनके अपार्टमेंट के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई और दूसरी ओर मधुबनी में एक मूक बधिर युवती के साथ बलात्कार करके अपराधियों ने उसकी आंख फोड़ दी. दोनों घटनाओं के बाद खासकर पटना की घटना से पूरे राज्य में सनसनी फैल गई है. ख़ुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को अपने सत्ता में सहयोगी भाजपा (BJP) के नेताओं के ट्वीट कष्ट देने वाले हैं. भाजपा नेताओं के बयान हैं कि अगर राज्य पुलिस इस मामले का उद्दभेदन करने में सक्षम नहीं हो तो इस मामले की सीबीआई जांच कराई जानी चाहिए. पुलिस दावा कर रही है कि वह अपराधियों के क़रीब है. लेकिन सच्चाई, नीतीश के समर्थक हों या विरोधी, सब मान रहे हैं कि अब आपकी जान बची है तो इसलिए नहीं कि बिहार में पुलिस मुस्तेद है, बल्कि आप उनके निशाने पर नहीं हैं.
लेकिन सवाल है कि अपराधी पुलिस वालों पर हावी क्यों और कैसे हैं. इसका एक कारण है कि हाल के वर्षों में ख़ासकर नीतीश कुमार के शराबबंदी के फ़ैसले के बाद अब सरकार का इक़बाल कम हुआ है क्योंकि इस पाबंदी के बाद समानांतर आर्थिक व्यवस्था का संचालन अपराधी पुलिस वालों के संरक्षण में होता है. दूसरा नीतीश कुमार इस बार सत्ता में वापस आने के बाद भले विधि व्यवस्था पर समीक्षा बैठक एक के बाद एक पांच बार कर चुके हों लेकिन ऊपर से नीचे तक जिन अधिकारियों को उन्होंने पदस्थापित किया है उनके अंदर इन बैठकों में हुए फ़ैसले को लागू कराने की इच्छाशक्ति नहीं है. इसका उदाहरण है नीतीश कुमार का पहली बैठक में पट्रोलिंग करने का आदेश. अगर राजधानी पटना में चुस्त दुरुस्त पट्रोलिंग होती तो हथियार लेकर अपराधी अपार्टमेंट के सामने इंतज़ार नहीं करते और हत्या करने के बाद आराम से निकल नहीं जाते.
नीतीश कुमार जब पंद्रह वर्षों पूर्व सत्ता में आए थे तब उन्होंने अपराधियों को सजा दिलाने पर फ़ोकस रखा था जिसके कारण आपराधिक घटनाओं की जांच पूरी करके चार्जशीट दायर करने को प्राथमिकता दी जाती थी. लेकिन नीतीश कुमार, जो गृह विभाग के मुखिया हैं, बार-बार दावा करते रहे कि उन्होंने जांच के काम के लिए हर थाने में अलग से टीम बनाई है, लेकिन इसका असर नहीं दिखता. इसके अलावा नीतीश जो आदेश करते हैं, वह लागू हुआ या नहीं, उसकी मॉनिटरिंग नहीं करते.
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सबसे अधिक राज्य में शराबबंदी कर उन्होंने पुलिस बल को उसकी रोकथाम में भी लगाया है. लेकिन पुलिस के आला अधिकारी ख़ुद मानते हैं कि शराबबंदी ने बिहार पुलिस को कमाने का एक ऐसा कुबेर का ख़ज़ाना दिया है जिसके बाद अपराधियों की पकड़ धकड़ अब किसी की प्राथमिकता नहीं रही. हालांकि नीतीश कुमार को मालूम है कि विपक्ष की आलोचना के जवाब में वे एनसीआरबी के आंकड़ों को दिखाकर अब तक निकल जाते हैं लेकिन अब सत्ता में उनका सहयोगी जैसे इस मुद्दे पर मुखर है वैसे में केवल बैठकों से काम नहीं चलेगा.