
बुलंदशहर में गिरफ्तार किए गए जूता दुकानदार को छोड़ दिया गया है.
बुलंदशहर (Bulandshahr) में फुटपाथ पर जूता बेचने वाले दुकानदार पर से पुलिस ने धार्मिक उन्माद भड़काने का मामला वापस ले लिया है और उसे थाने से छोड़ दिया है. पुलिस ने उसे बजरंग दल की इस शिकायत पर पकड़ा था कि वह कुछ ऐसे जूते बेच रहा है…जिसके सोल पर ठाकुर लिखा है. दरअसल जूता बनाना वाली कई फर्मों के नाम में “ठाकुर” शब्द लगा है…जिसकी वे अपने प्रोडक्ट पर ब्रान्डिंग करते हैं. गरीब पटरी दुकानदार को दो दिन बाद थाने से छोड़ा गया. उसका क़ुसूर सिर्फ़ यह था कि वह जो जूते बेच रहा था उनमें से कुछ पर उनकी फर्म का नाम “ठाकुर” लिखा था. उसका कहना है कि उसने संगठन के नेता को बताया कि वह तो गरीब पटरी वाला है. उसे क्या पता कि जूते के सोल पर कंपनी ने क्या लिखा है, लेकिन फिर भी उन्होंने उसे पुलिस को दे दिया.
पटरी दुकानदार नसीर ने कहा कि ''मैंने कहा कि भाई मुझे ऐसा मालूम होता कि नाम से बिक रहा है जूता यह या इस पर विवाद हो जाएगा तो मैं बेचता ही क्यों? तो इन्होंने पुलिस को फोन करा और मुझे उठवा दिया.''
उसने पुलिस को बताया कि वह गाजियाबाद से जूते खरीदता है. इसकी तस्दीक़ करने पुलिस उसे लेकर गाज़ियाबाद गई. गाज़ियाबाद के दुकानदार ने बताया कि वह तो खुद दिल्ली से जूते खरीदकर लाता है. अब बुलंदशहर पुलिस इसकी जांच करने दिल्ली जाएगी. हालांकि अब उसने पटरी वाले पर धार्मिक उन्माद फैलाने का केस ख़त्म कर दिया है.
बुलंदशहर के एसपी सिटी अतुल कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि थाना गुलवती पर 153ए, 323,504 का एक अभियोग पंजीकृत किया गया था जिसकी विवेचना में अब तक यह तथ्य प्रकाश में आया कि 153ए की बात गलत थी. बाक़ी सामान्य धाराओं में 323,504 में इसकी विवेचना की जा रही है. विवेचना में जो भी तथ्य प्रकाश में आएंगे उनके आधार पर अग्रिम कार्रवाई की जाएगी.
आगरा में क़रीब 70 साल पुरानी एक जूता फर्म का नाम ठाकुर फुटवेयर है. अब परिवार में बंटवारा होने पर ठाकुर शूज भी फर्म बन गई है. ज़ाहिर है कि उनके ट्रेडमार्क और उनकी फर्म का रजिस्ट्रेशन सरकार ने किया है. उनका कहना है कि कुछ लोग उनके ब्रांड की लोकप्रियता से उनके नाम से नक़ली जूते भी बनाते हैं. उनके ब्रांड नेम की वजह से पकड़े गए नसीर की पत्नी दहशत में है. वह चाहती है कि मामला जल्दी ख़त्म हो.
नसीर की पत्नी तौफ़ीक़ा कहती हैं कि ''मुक़दमा ख़त्म करवाना चाहते हैं. कोई परेशानी ना हो. हम तो मज़दूर आदमी हैं. जूतों को बेचते हैं, उसी से आता है खाना बनाना के लिए. कुछ भी नहीं है. हमारा तो घर भी ऐसा है छप्पर का.''