भारत बायोटेक (Bharat Biotech) की कोरोना वायरस वैक्सीन - कोवैक्सीन (Covaxin) को केन्द्र सरकार ने इमरजेंसी की स्थिति (Restricted use in emergency conditions) में करने की इजाजत "सार्वजनिक हित में आपातकालीन स्थिति में प्रतिबंधित उपयोग" के लिए दे दी है, लेकिन मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 1984 भोपाल गैस पीड़ितों ने वैक्सीन के ट्रायल को लेकर बड़ा आरोप लगाया है. कई प्रतिभागियों का कहना है कि उन्हें सूचित सहमति यानी इंफोर्मेंड कंसेंट की प्रति नहीं दी गई जो ऐसे ट्रायल में अनिवार्य होती है.
NDTV यूनियन कार्बाइड के आसपास टिंबर फैक्ट्री, शंकर नगर, ओडिया नगर जैसे इलाकों में कई लोगों से बात की जो वैक्सीन के मानव परीक्षणों का हिस्सा थे. वे कहते हैं कि वो इस बात से अनभिज्ञ थे कि उन्हें ट्रायल में शामिल किया जा रहा है,
उन्हें केवल यह बताया गया था कि इंजेक्शन (वैक्सीन) कोरोनावायरस से संक्रमित होने से बचाएगा. भोपाल के ओडिया नगर की रहने वाली रेखा ने कहा, "मैं गैस पीड़ित हूं. किसी ने भी मुझे किसी साइड इफेक्ट के बारे में नहीं बताया और किसी ने भी मुझे सूचित सहमति फॉर्म की कॉपी नहीं दी. मैंने कभी अस्पताल से कॉल रिसीव नहीं की. अस्पताल ने कहा (यदि मैं यह इंजेक्शन लेता हूं तो) मुझे कोरोना नहीं होगा."

शंकर नगर में रहने वाली सावित्री ने कहा, " उन्होंने कहा, 'हम आपको कोरोना वैक्सीन दे रहे हैं. किसी ने हमें यह नहीं बताया कि यह वैक्सीन का परीक्षण है. उन्होंने कहा,' अगर आपको कोई दिक्कत होती है तो आप हमें फोन करके बताना." रेखा की तरह, वह भी दावा करती है कि उसे कभी सहमतिपत्र की प्रति नहीं मिली. "उन्होंने कहा कि आप दैनिक रिपोर्ट भर सकते हैं ... लेकिन मैं लिख नहीं सकती, इसलिए मैं फॉर्म कैसे भर सकती हूं?"
इस बीच, कुछ अन्य लोग इंजेक्शन लगाने के लिए सहमत हो गए, क्योंकि उन्हें बताया गया था कि टीका मुफ़्त था और वे चिंतित थे कि बाद में उन्हें इसके लिए भुगतान करना पड़ सकता है. पूर्व यूनियन कार्बाइड कारखाने के पास रहने वाले लोगों का कहना है कि चिकित्सा कर्मचारियों की टीमों ने प्रभावित क्षेत्रों - गरीब नगर, शंकर नगर, उड़िया बस्ती और जेपी नगर का दौरा किया और 750 रुपये की बात कही, यहां रहने वाले कई लोगों के लिये ये एक अच्छी रकम थी.
स्थानीय लोगों के मुताबिक करीब 250 लोगों ने वैक्सीन ट्रायल के लिये सहमति दी थी...कुछ लोगों को इससे जुड़े जोखिम की भी सूचना दी गई थी. कर्मचारियों ने कथित तौर पर पेशाब और नाक के स्वाब के नमूने एकत्र किए, जिसके बाद प्रतिभागियों को चार पृष्ठ की पुस्तिका सौंपी गई जिसमें उन्हें साइड इफेक्ट्स पर ध्यान देना था. हालांकि, इनमें से कई फॉर्म खाली हैं क्योंकि कई प्रतिभागी लिखना पढ़ना नहीं जानते.

37 साल के जितेंद्र नरवरिया, जो आरा मशीन में बतौर दिहाड़ी मजदूर काम करते हैं, 5 लोगों के परिवार में अकेले कमाने वाले हैं ... उन्हें 10 दिसंबर को टीका लगाया गया था. कुछ दिनों बाद, उन्होंनें उल्टी करना शुरू कर दिया और बेचैन हो गए, सर्दी-खांसी भी है कहते हैं काम पर जाने की ताकत नहीं
"डॉक्टरों ने मुझे बताया, 'अगर आपके खून के साथ कोई समस्या है तो यह टीका उसे साफ कर देगा.' मैंने पूछा कि क्या बाद में सब कुछ ठीक हो जाएगा और उन्होंने कहा कि हाँ, लेकिन मैं उस दिन से अस्वस्थ हूं जब मुझे टीका लगाया गया था. "मैं 14 दिसंबर को चेक-अप के लिए गया था, लेकिन उन्होंने मुझे यहां से वहां खूब दौड़ाया, मैं एक गरीब आदमी हूं ... 450 रुपये का भुगतान नहीं कर सकता...जो रकम टेस्ट के लिये चाहिये थी. मैंने अपनी जेब से दवाइयां खरीदी हैं. मुझे बहुत बुरा लगता है क्योंकि मेरे बच्चे भूखे हैं ... मुझे लगता है मैंने टीका क्यों लगवा लिया.
भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के परिवारों के साथ काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा का कहना है कि इस तरह की घटनाओं ने "टीके के प्रभाव को लेकर कई सवाल खड़े कर दिये हैं".
"... उन्होंने 750 रुपये के वादे के साथ इन इलाकों में लोगों को भेड़-बकरियों की तरह हांक दिया ... ज्यादातर प्रतिभागी इस बात से अंजान हैं कि वो तीसरे चरण के परीक्षण का हिस्सा हैं ... उन्होंने बताया कि उन्हें COVID-19 को रोकने के लिए एक टीका दिया जा रहा है, और मामले में प्रतिकूल प्रतिक्रिया आने पर उन्हें दवाओं के बिल को खुद भरने को कहा जा रहा है. इससे बुरा और क्या हो सकता है ? "
"इसका न केवल गैस पीड़ितों पर प्रभाव पड़ता है, बल्कि टीके के प्रभाव पर भी एक सवाल खड़ा होता है ... जब आप सभी प्रकार के उल्लंघन करते हैं, जब आप प्रतिकूल प्रभाव रिकॉर्ड नहीं करते हैं और जब आप प्रतिभागियों की निगरानी नहीं करते हैं, तो कैसे टीके पर भरोसा किया जा सकता है? "
उधर परीक्षण से जुड़े पीपुल्स अस्पताल ने सभी आरोपों से इनकार किया है. पीपुल्स अस्पताल के डीन ग्रुप कैप्टेन डॉ एके दीक्षित ने कहा कि परीक्षण आईसीएमआर दिशानिर्देशों के अनुसार किए गए थे, और इसमें आधार संख्या की रिकॉर्डिंग शामिल थी, संभावित प्रतिभागियों के लिए न्यूनतम आधे घंटे की काउंसलिंग (जिसमें उन्हें खुराक और संभावित दुष्प्रभावों के बारे में सूचित किया गया है). "यह जानकारी (आरोपों का उल्लेख करते हुए प्रतिभागियों ने एक सूचित सहमति प्रपत्र प्राप्त नहीं किया था) ... मुझे नहीं लगता कि यह सही है. हमने उन्हें यह भी बताया है कि यह डबल-ब्लाइंड ट्रायल है (जिसका मतलब है कि केवल दो में से एक खुराक होगी." वैक्सीन, और अन्य एक प्लेसबो), उन्होंने कहा, "यह (उनकी सहमति) का रिकॉर्ड हमारे पास मौजूद है ... जो कोई भी रिपोर्ट मांगता है, हम उन्हें देते हैं. सूचित सहमति हमेशा ली जाती है,.
जितेंद्र नरवरिया के बारे में सवाल पर उन्होंने कहा - जिनकी आप बात कर रहे हैं, क्योंकि अभी आप आये हैं मुझे इनके बारे में मालूम नहीं क्योंकि हर व्यक्ति जो यहां आता है उनका रिकॉर्ड हम रखते हैं इनका भी होगा अभी मैं पता करता हूं क्या क्या इनको हुआ है कब हमने इनको संपर्क किया है. मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि मामले की जांच की जाएगी, लेकिन "हमें गैर-जिम्मेदाराना बात नहीं करनी चाहिए" और कहा "हमारी सरकार ने सभी दिशानिर्देशों का पालन किया है".
जहां का आप मामला बता रहा हैं वो एक मेडिकल कॉलेज है उसे हम दिखवा लेंगे लेकिन हम गैर जिम्मेदाराना बात करेंगे तो एक बड़ी वैश्विक महामारी के खिलाफ हमारे देश के वैज्ञानिकों ने जो काम किया है उसपर हम सवालिया निशान लगाएंगे. बिना किसी तकनीकी जांच के हमें किसी फैसले पर नहीं पहुंचना चाहिये. जहां तक वैक्सीन को लेकर सवाल है इस देश की एक बड़ी जनसंख्या जो कोविड के भय में जी रही है उसको और डराना चाहते हैं मेरा स्पष्ट आरोप है वैक्सीन को लेकर राजनीति कर रहे हैं वो अपने लिये भी ठीक नहीं कर रहे हैं देश और समाज के लिये भी नहीं. हम केवल इसलिये कह दी क्योंकि चंद लोग इसका विरोध कर रहे हैं, कौन कर रहे हैं जो टुकड़े टुकड़े गैंग के सदस्य हैं वो विरोध कर रहे हैं जो कन्हैया का समर्थन करते हैं, पाकिस्तान का समर्थन करते हैं. आपने कोई खास मामला बताया है तो निश्चित तौर पर हम उसकी जांच करेंगे.