/ / जानिए कैसे, रीढ़ की हड्डी में लगी चोट को नजरअंदाज करना हो सकता है नुकसानदेह !

जानिए कैसे, रीढ़ की हड्डी में लगी चोट को नजरअंदाज करना हो सकता है नुकसानदेह !

मनुष्य शरीर पूरी गतिविधि रीढ़ की हड्डी ही करता हैं। इसके बिना उसका चलना फिरना सब नामुमकिन हैं। इसलिए अक्सर देखा जाता हैं कि अगर रीढ़ की हड्डी में चोट लग जायं तो हो उसका घाव बहुत बड़ा बनता जाता हैं। उसका ईलाज भी काफी कठीन होता हैं। उससे उभरने में लिए काफी समय लगता हैं। क्यों कि रीढ़ की चोट बहुत अन्दरूनी होती हैं इसका घाव अन्दर ज्यादा बनता हैं।

चोट में कई उतकों की नष्ट होने की मरम्मत की चिकित्सकीय पद्धति के लिए बहुत ही अहम हो सकता है। मनुष्यों के लिए यह चोट जानलेवा साबित हो सकती है और वे लकवाग्रस्त हो सकते हैं। अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिकों ने एक विशेष प्रोटीन का पता लगाया है जो मनुष्यों के उतकों की मरम्मत की प्रक्रिया में अहम साबित हो सकता है।

ड्यूक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर ने कहा, ‘नष्ट हुए उतकों की मरम्मत के लिए आज सीमित मात्रा में सफल चिकित्सा पद्वतियां उपलब्ध हैं, ऐसे में हमें उनकी पुनरू उत्पत्ति प्रोत्साहित करने को लेकर जेब्राफिश जैसे जीवों की ओर देखने की आवश्यकता है।’ जब जेब्राफिश की टूट चुकी रीढ़ की हड्डी की फिर से उत्पत्ति की प्रक्रिया शुरू होती है तो आठ सप्ताह में नए तंत्रिका उतक चोट से पैदा हुए फासले को भर देते हैं और जेब्राफिश गंभीर रूप से लकवाग्रस्त होने से बच जाती है।

मनुष्यों एवं जेब्राफिश में अधिकतर प्रोटीन कोडिंग जीन साझे हैं और सीटीजीएफ अपवाद नहीं है और जब वैज्ञानिकों ने मछली की चोट वाली जगह में सीटीजीएफ का मानवीय संस्करण जोड़ा तो इसने पुनरू उत्पत्ति की प्रक्रिया को बढ़ाया और मछली चोट के दो सप्ताह बाद बेहतर तैरने लगी।

वैज्ञानिकों ने जिस जीन का पता लगाया हैं वह रीढ़ की चोट के लिए वरदान साबित हो सकता हैं। लेकिन इसका प्रयोग चोट की दशा में ही सही साबित हो सकता है। क्यों कि रीढ़ की गम चोट में शरीर के लकवाग्रस्त होने के चांसेज ज्यादा रहते हैं और देखा जायंे तो इससे बचना ही सबसे ज्यादा और सही उपाय हैं।

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