किसानों के आंदोलन के लिए पैसा कहां से आ रहा? प्रदर्शनकारियों ने यह दिया जवाब

हर गांव से साल में दो बार चंदा एकत्रित होता है, हर छह महीने पर ढाई लाख रुपये का चंदा इकट्ठा होता है, प्रगतिशील किसान भी मदद कर रहे

किसानों के आंदोलन के लिए पैसा कहां से आ रहा? प्रदर्शनकारियों ने यह दिया जवाब

विरोध प्रदर्शन करते हुए किसान.

नई दिल्ली:

किसानों के आंदोलन (Farmers Movement) के लिए पैसा कहां से आ रहा है? दिल्ली-हरियाणा बार्डर पर जमे किसानों की फंडिंग पर तमाम सवाल उठ रहे हैं. हमने पता करने की कोशिश की तो जानकारी मिली कि किसान आंदोलन का बहीखाता है. हर गांव से साल में दो बार चंदा एकत्रित होता है. हर छह महीने पर ढाई लाख रुपये का चंदा इकट्ठा होता है. इसमें प्रगतिशील किसान भी मदद कर रहे हैं. 

टिकरी बार्डर पर सभा में हजारों किसान बैठे थे. इसी सभा में सुखविंदर कौर मंच के बगल में बैठीं पैसा इकट्ठा करती दिखीं. टिकरी बार्डर पर धरने पर बैठे किसानों के मंच और चंदे का लेखा-जोखा रखने वालीं मानसा की सुखविंदर कौर हैं. वे भारतीय किसान यूनियन की उपाध्यक्ष हैं. वे पंजाब, हरियाणा से आए तमाम लोगों से चंदा ले रही हैं और उसे नोट कर रही हैं.

फिलहाल इस आंदोलन को सबसे बड़ी दस लाख रुपये की मदद पंजाब के डेमोक्रेटिक टीचर्स फेडरेशन यानी DTF से मिली है. भारतीय किसान यूनियन उग्राहां से जुड़े आठ हजार किसान अपनी गाड़ियों समेत रोहतक बहादुरगढ़ राजमार्ग पर बैठे हैं. यहां किसानों के आंदोलन का बहीखाता है. कितने लोग किस गांव से कौन सी गाड़ी से आए, इसका रिकार्ड रखा जाता है. कितना पैसा इकट्ठा हुआ है कितना खर्चा हुआ है ये भी लिखा जाता है.

भारतीय किसान यूनियन उग्राहा से जुड़े 1400 गांव हैं जो साल में दो बार चंदा जुटाते हैं. एक गेहूं की फसल के बाद और फिर धान की फसल के बाद. यूनियन के उपाध्यक्ष झंडा सिंह बताते हैं कि पंजाब के गांवों में हर छह महीने में औसतन ढाई लाख रुपये इकट्ठे होते हैं. 

किसान यूनियन उग्राहा के उपाध्यक्ष झंडा सिंह ने कहा कि ''लोग कहते हैं कि आपका फंड खालिस्तान के नाम पर आता है. अगर कोई ये साबित कर दे कि खालिस्तानियों से पैसा आ रहा है तो हम ये छोड़कर वापस चले जाएंगे. हम किसानों से चंदा लेते हैं. उसका एक-एक हिसाब है हमारे पास.''

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पंजाब ही नहीं हरियाणा के प्रगतिशील किसानों का यह ग्रुप टिकरी बार्डर पर किसानों के लिए जलेबी तैयार करवा रहा था. हरियाणा के हिसार से आए पशुपालक सुखविंदर ढांडा अपनी भैसों की वजह से दुनिया भर में मशहूर हैं. उनकी विकसित की गई नस्ल की भैंस 51 लाख रुपये में बिकी थी. जो एक रिकार्ड है. वे कहते हैं कि खेती के अलावा पशुपालन करके वे पैसा कमाते हैं. सुखविंदर ढांडा से जब पूछा कि मंहगी गाड़ियां, मोबाइल... आपकी फंडिंग कहां से होती है, तो उन्होंने कहा कि ''हम खेती भी करते हैं और पशुपलन भी. मेहनत से करते हैं. मेहनत से कमाए पैसे पर गाड़ियों में घूमते हैं. किसी को लूटते तो नहीं हैं, हक तो नहीं मारते हैं.''

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इन सबके बीच पंजाब हरियाणा से लगातार किसानों का जत्थे आ रहे हैं. दो महीने तक पंजाब में प्रदर्शन करने के बाद अब ये किसान दिल्ली की सीमा पर डटे हैं. किसानों के अलावा अब मजदूरों, कलाकारों और खिलाड़ियों से आर्थिक और सामाजिक मदद मिलने से आंदोलनकारियों के हौसले बुलंद हो चले हैं.