भारत की SFF: जिससे थर-थर कांपते हैं चीनी सैनिक, यहां हर घर में है सीक्रेट जवान

लद्दाख में 29-30 अगस्त की रात चीनी सेना ने पेंगॉन्ग के दक्षिणी किनारे पर घुसपैठ करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जवानों की बहादुरी से उनके मंसूबे नाकामयाब हो गए।

Published by Shreya Published: September 14, 2020 | 11:32 am
Special frontier force-SFF

भारत की SFF: जिससे थर-थर कांपते हैं चीनी सैनिक, यहां हर घर में है सीक्रेट जवान (फोटो- सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन अपनी गद्दारी से बाज नहीं आ रहा। वो अपनी धूर्त चालों को अंजाम देने की कोशिशों में जुटा हुआ है। लेकिन भारतीय सेना अपनी मुस्तैदी से चीनी सेना को मुंहतोड़ जवाब दे रहा है। अभी हाल ही में चीनी सेना (PLA) ने लद्दाख में 29-30 अगस्त की रात चीनी सेना ने पेंगॉन्ग के दक्षिणी किनारे पर घुसपैठ करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जवानों की बहादुरी से उनके मंसूबे नाकामयाब हो गए।

ड्रैगन को खदेड़ने में फोर्स का बड़ा योगदान

चीनी सेना को खदेड़ निकालने में स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का बड़ा योगदान था और इन दिनों इस फोर्स की खूब चर्चा हो रही है। खासतौर से ये नाम आपने अगस्त महीने के अंत में जरूर सुना होगा। इस फोर्स को विकास बटालियन और एस्टेबिलिसमेंट 22 के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय सेना के लिए यह बटालियन बेहद खास है और मुश्किल मिशन को पूरा करने में पूरी तरह सक्षम है।

यह भी पढ़ें: लिम्का बुक में दर्ज है इस IAS का नाम, जॉब छोड़कर 4 महीने में ही बना ताकतवर मंत्री

Angling
इस गांव के हर गांव में है SFF का जवान (फोटो- सोशल मीडिया)

इस गांव के हर गांव में है फोर्स का जवान

भारतीय सेना की इस बटालियन की शौर्य कहानियां देशभर में सुनने को मिल रही है। दिलचस्प ये है कि लेह में एक ऐसा गांव है, जहां पर हर घर का कम से कम एक सदस्य स्पेशल सीक्रेट फोर्स (SFF) में अपनी सेवाएं दे रहा है या फिर अपनी सेवाएं दे चुका है। जी हां, इस गांव का नाम आंगलिंग है, जहां पर चार सौ के आसपास के घर हैं।

कई सीक्रेट मिलिट्री ऑपरेशन्स में रहे शामिल

आंगलिंग में कई पीढ़ियों से भारतीय सेना की सेवा करने वाले तिब्बती रहते हैं। मीडिया रिपोर्ट में फोर्स के पूर्व सैनिकों के हवाले से लिखा गया है कि वो कई सीक्रेट मिलिट्री ऑपरेशन्स में शामिल रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, SFF के एक पूर्व जवान ने बताया कि हमारा काम भारतीय सेना को लड़ाई में मदद करना है। हम इसके बारे में किसी से जिक्र नहीं कर सकते थे। आजकल तो कुछ चीजें बाहर आ जाती हैं। इन्होंने 1962 में एसएसएफ ज्वाइन किया था।

यह भी पढ़ें: जानलेवा कोरोना: सात दिनों में सबसे ज्यादा मौतें भारत में, अमेरिका-ब्राजील पीछे छूटे

Special frontier force
1962 में हुआ था Special frontier force का गठन (फोटो- सोशल मीडिया)

1962 में हुआ था गठन

भारत और चीन के बीच 1962 में भी युद्ध हुआ था और उस युद्ध के बाद स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का गठन किया गया था। इस फोर्स को पूरी तरह गोपनीय रखा गया था और अभी भी इस फोर्स के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। शुरुआत में इस बटालियन में केवल तिब्बती मूल के लोगों को ही रखा गया था। वैसे अब इसमें तिब्बती मूल के लोगों के साथ ही गोरखा सैनिकों को भी रखा जाता है।

मुश्किल से मुश्किल हालात में मिशन को करते हैं पूरा

इस फोर्स की अगुवाई एक इंस्पेक्टर जनरल करता है। फोर्स का इंस्पेक्टर जनरल भारतीय सेना के मेजर जनरल स्तर का अधिकारी होता है। SFF की ट्रेनिंग इतनी कठिन होती है कि इस फोर्स से जुड़े जवान मुश्किल से मुश्किल हालात में भी अपने मिशन को पूरा करने में कामयाब होते हैं। SFF के जवानों को कठिन ट्रेनिंग के बाद एकदम फौलाद बना दिया जाता है।

यह भी पढ़ें: आयुष्मान खुराना B’Day : ऐसे एक शो से फिल्मों में हिट देने वाले स्टार बने

Special frontier force (SFF)
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (फोटो- सोशल मीडिया)

महिलाएं भी होती हैं फोर्स का हिस्सा

फोर्स में पुरुष जवानों के अलावा महिलाओं को भी शामिल किया जाता है और इन महिलाओं को भी काफी मुश्किल ट्रेनिंग का सामना करना पड़ता है। स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का मुख्यालय उत्तराखंड के चकराता में है और इसमें करीब 5000 कमांडो शामिल हैं। फोर्स से जुड़े जवानों को कठिन हालात से भी जूझना सिखाया जाता है।

फोर्स को लेकर बरती जाती है गोपनीयता

सेना की गतिविधियों के बारे में जानकारी वैसे भी बाहर कम ही आ पाती है मगर इस स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को लेकर काफी गोपनीयता बरती जाती है। स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जवानों ने देश में कई बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया है। दुश्मन देशों को भी इस फोर्स के मूवमेंट के बारे में कभी जानकारी नहीं मिल पाती।

यह भी पढ़ें: मोदी की जासूसी: चीन की निगरानी में 10 हजार भारतीय, बड़ी साजिश की तैयारी

SFF
1971 की लड़ाई में SFF की रही है बड़ी भूमिका (फोटो- सोशल मीडिया)

1971 की लड़ाई में रही है बड़ी भूमिका

एसएफएफ की पहली बड़ी भूमिका 1971 की लड़ाई में रही। एसएफएफ ने उस वक्त के ईस्ट पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के चटगांव हिल्स के करीब भारतीय सेना की बड़ी मदद की थी। ऐसा कहा जाता है कि एक खुफिया ऑपरेशन के तहत करीब तीन हजार एसएफएफ जवानों को मैदान में उतारा गया था। इन्होंने पाकिस्तानी आर्मी के भागने के सभी रास्ते ब्लॉक कर दिए थे।

इसके अलावा स्पेशल फ्रंटियर फोर्स ने ऑपरेशन ब्लू स्टार, करगिल युद्ध में भी अहम भूमिका निभाई है। SFF ने कारगिल में भी करीब 14 हजार फुट की ऊंचाई पर, ज़ीरो से भी कम तापमान में एसएफएफ ने मोर्चा संभाला था।

यह भी पढ़ें: बिहार चुनाव से पहले दिल्ली में दिलचस्प मुकाबला, सूबे के दो दलों में टक्कर

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

न्यूजट्रैक के नए ऐप से खुद को रक्खें लेटेस्ट खबरों से अपडेटेड । हमारा ऐप एंड्राइड प्लेस्टोर से डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें - Newstrack App