यूपी के गांवों में ड्रोन से फिल्में बनाए जाने से लोग हैरान! यह चल रही है कवायद

गांवों में बसी आबादी के आवासों का लेखाजोखा और नक्शा बनाने के उद्देश्य से डिजिटल मैपिंग के लिए ड्रोन से गांवों की बस्तियों की वीडियो फिल्म बनाई जा रही

यूपी के गांवों में ड्रोन से फिल्में बनाए जाने से लोग हैरान! यह चल रही है कवायद

प्रतीकात्मक फोटो.

लखनऊ:

उत्तर प्रदेश (UP) के गांवों में आजकल ड्रोन (Drone) उड़ रहे हैं. लोग हैरत में हैं कि यह गांवों की फिल्म कौन बना रहा है? लेकिन यह ड्रोन वास्तव में गांवों की बस्तियों के वीडियो बना रहे हैं ताकि उनका नक्शा बनाया जा सके. देश के गांवों में लोगों के खेतों के तो दस्तावेज़ हैं, लेकिन घरों के दस्तावेज़ नहीं हैं. इसकी वजह से बड़े पैमाने पर झगड़े और हिंसा हो रही है. इसलिए अब उनकी डिजिटल मैपिंग शुरू हुई है. यूपी के गांवों में करीब 17 करोड़ लोग रहते हैं. आबादी बढ़ने के साथ गांवों में मकानों की तादाद भी बढ़ रही है. अब उनकी डिजिटल मैपिंग (Digital mapping) के लिए ड्रोन के ज़रिए गांवों की बस्तियों की वीडियो फिल्म बनाई जा रही है. यह काम प्रोफेशनल्स कर रहे हैं. 

सर्वेयर मिथिलेश गुप्ता ने बताया कि 1:500 स्केल पर आबादी क्षेत्र का नक़्शा तैयार होना है जिसके लिए ड्रोन फ्लाई किया जा  रहा है. उसके बाद जो भी आबादी क्षेत्र है गांवों के, उसका प्रॉपर नक़्शा बनाया जाएगा.

इस "स्वामित्त योजना" का ऐलान पीएम ने 24 अप्रैल को पंचयती राज दिवस पर किया था. रेवेन्यू रिकॉर्ड में गांवों में खेत, चरागाह, तालब, गांव समाज की ज़मीन के साथ-साथ आबादी का एरिया तो दर्ज है, लेकिन उस आबादी के घरों, उनके नक्शों का कोई रिकॉर्ड नहीं है. यह भी नहीं पता कि किसका घर कितना बड़ा और कहां तक है. अब जमीन और आसमान दोनों से इसका इंदराज होगा.

सोनभद्र के एडीएम योगेंद्र बहादुर ने बताया कि बड़ा नंबर आबादी का है. उसमें जो-जो जहां-जहां बसा हुआ है, जो-जो उसका एरिया है, चाहे उसका सहन है,आबादी है, घर है बांस कोट है..अगल-बगल जो घर के बीच में है. इसी तरह जो रास्ते हैं..या नेचुरल रास्ते हैं, उसको हम रास्ते के रूप में फिक्स कर देंगे. 

गांवों में घरों के जो नक्शे सरकार बनवा रही है उसे लेकर भी विवाद के तमाम अंदेशे हैं. तमाम जगहों पर पहले से विवाद चल रहा है. इसलिए गांवों के घरों का आखिरी नक्शा जारी करने से पहले पहले सरकार उसे प्रकाशित कर उस पर गांव वालों की राय लेगी. 

योगेंद्र बहादुर ने बताया कि जैसे ही वो कागज़ फाइनल हो..फिर ऑब्जेक्शन मांगे जाते हैं, फिर नक्शा पब्लिश करते हैं. और अगर किसी को ऑब्जेक्शन नहीं है कि हमारा एरिया कम हो रहा है, हमारा एरिया ज़्यादा हो रहा है तो फिर उसको लेकर फाइनलाइज करके प्रपत्र 7 में पब्लिश करके उसे फाइनल कागज़ का रूप दे देते हैं. 

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रियल एस्टेट मार्केट में 2004 में जो उफान आया वो टियर वन शहरों से बाहर पहुंच गया. 2005 में स्पेशल इकॉनामिक ज़ोन एक्ट आने के बाद भी देहाती इलाक़ों में ज़मीनों के भाव बढ़े. बड़े पैमाने पर गांव शहरीकरण के दायरे में आ गए. बड़ी तादाद में बिल्डर वहां प्लॉटिंग करके मंहगी जमीनें बेचने लगे. इससे गांवों में भी ज़मीनों की क़ीमत आसमान छूने लगी और झगड़े बढ़ गए.

हाल के सालों में गावों में घरों की जमीनों को लेकर भी झगड़े कई गुने बढ़ गए हैं, क्योंकि जो ज़मीन कभी मिट्टी के मोल बिकती थी तमाम जगह वह सोना हो गई. कोई गांव ऐसा नहीं है जिसकी बस्तियों में नाली, खड़ंजे और रास्ते का झगड़ा ना हो. इसलिए यह ज़रूरी है कि हर किसी के घर का रिकॉर्ड हो, उसका नक़्शा हो, ताकि इन्हें लेकर होने वाली फ़ौजदारी रोकी जा सके.