कर्नाटक में बढ़ते ही जा रहे COVID-19 केस, इन बातों को क्यों किया जा रहा नजरअंदाज?

कर्नाटक (Karnataka) देश के उन 5 राज्यो में है, जहां कोरोनावायरस (COVID-19) की वजह से सबसे ज्यादा मौते हुई है.

कर्नाटक में बढ़ते ही जा रहे COVID-19 केस, इन बातों को क्यों किया जा रहा नजरअंदाज?

प्रतीकात्मक तस्वीर

बेंगलुरू:

कर्नाटक (Karnataka) देश के उन 5 राज्यो में है, जहां कोरोनावायरस (COVID-19) की वजह से सबसे ज्यादा मौते हुई है. इस वायरस की वजह से देश में पहली मौत भी कर्नाटक  (Karnataka) के गुलबर्गा में हुई थी. इसके बावजूद क्वारंटीन की व्यवस्था पूरी तरह हटा दिया है. पार्क यहां काफी पहले खोल दिए गए थे, अब मेट्रो के साथ-साथ क्लब्स भी खोलने की तैयारी चल रही है.

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कर्नाटक  (Karnataka) में कोरोना वायरस (Coronavirus) की वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. सिर्फ राज्य में ही नहीं, बल्कि बेंगलुरु के आंकड़ों पर नजर डाले तो पिछले एक हफ्ते के दौरान सिर्फ इस शहर में हर रोज करीब 25 से 61 लोगों की मौत हुई है, लेकिन सरकार को लगता है कि हालात नियंत्रण में है.

कर्नाटक के स्वास्थ्य शिक्षा मंत्री डॉ. के सुधाकर ने कहा, ''अब मृत्यु दर 1.5 फीसदी से 1.6 फीसदी के बीच है, जबकि पिछले हफ्ते में 2.44 फीसदी रिकवरी रेट बढ़ा है. कर्नाटक ने मृत्यु दर को कम रखने में कामयाब रहा है.''

कोरोना वायरस की वजह से 30 अगस्त तक सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में 24,399, लोगों की मौत हुई, जबकि तमिलनाडु में 7,231, कर्नाटक में 5,589, दिल्ली में 4,426 और आंध्र प्रदेश में 3,884 लोगों की जानें गईं.

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हर दिन मामले तकरीबन 8 से 10 हजार के बीच आ रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद एक तरफ सरकार ढील दे रही है तो दूसरी तरफ आम लोग भी धीरे-धीरे बेफिक्र होते जा रहे हैं. पार्क में बड़े छोटे सभी आपको दिख जाएंगे. इन सबके बीच दुविधा की स्थिति तब पैदा हो जाती है जब किसी का रैपिड एंटीजन टेस्ट पॉजिटिव रिपोर्ट देता है और कुछ ही घंटों बाद आरटी-पीसीआर टेस्ट में रिपोर्ट निगेटिव आती है.

इस मामले में डॉ. के सुधाकर ने कहा, ''देखिए अगर कोई सिम्टोमैटिक है तो रैपिड एंटीजन टेस्ट की रिपोर्ट बिल्कुल सही आएगी, लेकिन सिम्प्टोमैटिक न होने पर रिपोर्ट में गड़बड़ हो सकती है, वैसे भी हम पीसीआर टेस्ट को ही सही मानते हैं.''

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हालांकि कर्नाटक में सबसे ज्यादा रैपिड एंटीजन टेस्ट ही किए जा रहे हैं. रैपिड एंटीजन टेस्ट पर एक बार फिर से सवाल उठने लगे हैं, हालांकि अच्छी बात यह है कि यहां मरीजों के ठीक होने की दर पहले से बेहतर हुई है. जहां पहले 42 फीसदी के आसपास थी, अब वो बढ़कर 72 फीसदी के आसपास पहुंच गई है.

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