भूमि पेडनेकर ने की सिनेमा में जेंडर चित्रण बदलने की मांग, बोलीं- मर्द को दर्द नहीं होता या...

भूमि पेडनेकर (Bhumi Pednekar) ने सबसे पहले इंडस्ट्री में जेंडर के चित्रण को बदलने की बात कही.

भूमि पेडनेकर ने की सिनेमा में जेंडर चित्रण बदलने की मांग, बोलीं- मर्द को दर्द नहीं होता या...

भूमि पेडनेकर (Bhumi Pednekar) ने की सिनेमा में जेंडर चित्रण बदलने की बात

खास बातें

  • भूमि पेडनेकर ने की सिनेमा में जेंडर चित्रण बदलने की मांग
  • एक्ट्रेस ने कहा कि 'मर्द को दर्द नहीं होता' या...
  • एक्ट्रेस ने इंटरव्यू में सिनेमा के लिए कई बदलावों को गिनाए
नई दिल्ली:

भूमि पेडनेकर (Bhumi Pednekar) एक ऐसी मुखर एक्ट्रेस हैं, जिन्होंने अपनी आश्चर्यजनक और दमदार एक्टिंग के बल पर खुद के लिए बॉलीवुड में एक जगह बनाई है. यह युवा अभिनेत्री पहले ही अनगिनत अवार्ड और प्रसिद्धियां हासिल कर चुकी है और वह इस पीढ़ी की सबसे चहेती अभिनेत्रियों में शामिल है. अपनी शानदार, पॉजिटिव, जेंडर-डिफाइनिंग भूमिकाओं के माध्यम से सिनेमा में महिलाओं का चित्रण बदल कर रख देने वाली आर्टिस्ट होने के नाते भूमि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में उन बदलावों को गिना रही हैं, जिनकी वह तमन्ना रखती हैं. भूमि पेडनेकर ने सबसे पहले इंडस्ट्री में जेंडर के चित्रण को बदलने की बात कही. 

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भूमि पेडनेकर (Bhumi Pednekar) ने कहा, "शुरुआती कदमों के तहत हमें जेंडर का चित्रण बदलने की जरूरत है. हम जिस तरह से महिलाओं और पुरुषों को सिनेमा में दिखाते हैं, उसे चेंज करना होगा. महिलाएं सफाया करने के लिए नहीं बनी हैं, हमारी भी इच्छाएं हैं, हमारी भी महत्वाकांक्षा है, हमारी दैहिक जरूरतें और भावनाएं हैं. मुझे लगता है कि अपने सिनेमा के अंदर हमें यह सब बड़े पैमाने पर नजर आना चाहिए." भूमि पेडनेकर ने आगे बताया, "हम मेल जेंडर पर बहुत ज्यादा बोझ डाल देते हैं, उनको बताते हैं कि उन्हें स्ट्रॉन्ग होना चाहिए. वे आंसू नहीं बहा सकते, भावनाओं का इजहार नहीं कर सकते और यह बहुत गलत बात है. 'मर्द को दर्द नहीं होता' या 'पुरुष आहत नहीं होता'- इस नैरेटिव को बदलने की सख्त जरूरत है."


भूमि पेडनेकर (Bhumi Pednekar) का मानना है कि ऑडियंस पर सिनेमा का गहरा असर पड़ता है और सबसे सकारात्मक ढंग से लोगों का माइंडसेट बदलने में इस असर का इस्तेमाल किया जा सकता है. वह कहती हैं, "मैं यह भी मानती हूं कि हमें महिलाओं को किसी वस्तु की तरह पेश करना बंद करना चाहिए. फिल्मों में समावेशीपन बढ़ाना चाहिए, जिनमें एलजीबीटीक्यूआईए+ जैसे समुदाय भी शामिल हों. मुझे पता है कि बदलाव की बयार बह रही है. मेरी इच्छा है कि इस गति को तेज किया जाए. जैसे कि मैंने अभी ‘सुपर डीलक्स' देखी और मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि मैं क्या कमाल देख रही थी. आज इतना अद्भुत काम हो रहा है और खुद को लकी मानती हूं कि मैं इसी दौर में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा बनी हुई हूं."