
क्या दल-बदल कानून के दायरे में आ रहे हैं सचिन पायलट
दल-बदल कानून सिर्फ 7 प्वाइंट में
भारतीय राजनीति में विधायकों- सांसदों की खरीद-फरोख्त की खबरें और आरोप लगते रहते हैं. वहीं अपने फायदे के हिसाब से विधायक और सांसद पार्टी बदलते रहे हैं. यह राजनीति में भ्रष्टाचार की जड़ बन गया. इसको रोकने के लिए दल-बदल कानून 1985 में लाया गया. संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई. ये संविधान में 52वें संशोधन था.
यहां जानकर भी हैरान होंगे कि हरियाणा में एक विधायक ने साल 1967 में एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदल ली थी. जिसके बाद भारतीय राजनीति में आया राम गया राम का जुमला खूब चला.
नियम के मुताबिक यदि कोई सांसद या विधायक अपनी इच्छा से अपनी पार्टी को छोड़ देता है तो सदन से उसकी सदस्यता चली जाएगी..
यदि कोई सांसद या विधायक अपनी पार्टी छोड़कर किसी दूसरे दल में शामिल हो जाता है.
पार्टी के व्हिप का उल्लंघन करते हुए कोई सांसद या विधायक सदन में खिलाफ वोट करता है. सचिन पायलट को सीएम गहलोत इसी के दायरे में ला सकते हैं.
कोई सदस्य पार्टी को बिना सूचना दिए सदन में वोटिंग के दौरान गैर-हाजिर रहता है.
यदि कोई मनोनीति सदस्य 6 महीने के अंदर पार्टी बदल लेता है.