
शरद पवार पीवी नरसिंह राव सरकार में रक्षा मंत्री रहे थे.
लद्दाख सीमा पर चीन के साथ जारी गतिरोध पर एनसीपी प्रमुख शरद पवार द्वारा कांग्रेस नेता राहुल गांधी को राजनीति ना करने की सलाह देने से महाराष्ट्र सरकार के मंत्री ने खासा ऐतराज जताया है. महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की सरकार में मंत्री कांग्रेस कोटे से मंत्री नितिन राउत ने मराठा छत्रप पवार पर ही ताना कस दिया. ऊर्जा मंत्री नितिन राउत ने कहा 'शरद पवार राहुल गांधी की जगह इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी को सलाह देनी चाहिए थी ताकि वो इस मुद्दे पर कुछ बोलें.' नितिन राउत यहीं नहीं रुके उन्होंने शरद पवार पर ताना कसते हुए कहा, '1962 में जो गलती हुई, उसे शरद पवार ने तब क्यों नहीं सुधार लिया जब वो रक्षा मंत्री थे.'
दरअसल बीते दिनों शरद पवार ने राहुल गांधी को सलाह दी थी कि चीन से तनाव और गलवान घाटी के मुद्दे का राजनीतिकरण न करें और 1962 की याद दिलाई थी.आपको बता दें कि कांग्रेस पार्टी से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले मराठा नेता शरद पवार कांग्रेस की नरसिंह राव सरकार में 1991 से 1993 तक रक्षा मंत्री रहे थे.
शनिवार (27 जून) को पवार ने कहा था, 'यह पूरा प्रकरण ‘‘संवेदनशील'' प्रकृति का है. भारत संचार उद्देश्यों के लिए अपने क्षेत्र के भीतर गलवान घाटी में एक सड़क बना रहा था. उन्होंने (चीनी सैनिकों ने) हमारी सड़क पर अतिक्रमण करने की कोशिश की और धक्कामुक्की की. यह किसी की नाकामी नहीं है. अगर गश्त करने के दौरान कोई (आपके क्षेत्र में) आता है, तो वे किसी भी समय आ सकते हैं. हम यह नहीं कह सकते कि यह दिल्ली में बैठे रक्षा मंत्री की नाकामी है.''
उन्होंने कहा था, ‘‘वहां गश्त चल रही थी. झड़प हुई इसका मतलब है कि आप चौकन्ना थे. अगर आप वहां नहीं होते तो आपको पता भी नहीं चलता कि कब वे (चीनी सैनिक) आए और गए. इसलिए मुझे नहीं लगता कि इस समय ऐसा आरोप लगाना सही है.''
राहुल गांधी द्वारा लगाए एक आरोप पर जवाब देते हुए पवार ने कहा था कि यह कोई नहीं भूल सकता कि दोनों देशों के बीच 1962 के युद्ध के बाद चीन ने भारत की करीब 45,000 वर्ग किलोमीटर की जमीन पर कब्जा कर लिया था. उन्होंने कहा, ‘‘यह जमीन अब भी चीन के पास है. मुझे नहीं मालूम कि क्या उन्होंने (चीन) अब फिर से कुछ क्षेत्र पर अतिक्रमण कर लिया. लेकिन जब मैं आरोप लगाता हूं तो मुझे यह भी देखना चाहिए कि जब मैं सत्ता में था तो क्या हुआ था. अगर इतनी बड़ी जमीन अधिग्रहीत की जाती है तो इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है और मुझे लगता है कि इसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए.''
(इनपुट एजेंसी भाषा से भी)