
आखिर Nitish Kumar ने मीडिया से इतनी दूरी क्यों बनाई है
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने कोरोना संकट (Corona Crisis) के सौ दिन बाद भी एक बार भी न ही मीडिया से बात की और ना ही अपने राज्य के लोगों को संबोधित किया. इससे पहले वह लगातार विपक्ष के निशाने पर घर से तीन महीने तक ना निकलने के कारण आलोचना झेलते रहे हैं. हालांकि अब घर से निकल कर योजनाओं की समीक्षा तो कर ही रहे हैं लेकिन अपनी किसी भी प्रतिक्रिया को नीतीश कुमार (N itish Kumar) ने सरकारी विज्ञप्ति तक ही सीमित कर रखा है. आलम यह है कि वज्रपात गिरने से राज्य में एक दिन में 85 से अधिक लोगों की मौत हो जाती हैं, रात तक पीएम मोदी और अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों की प्रतिक्रिया आ जाती है लेकिन नीतीश कुमार(Nitish Kumar) सिर्फ विज्ञप्ति जारी कर अपने दायित्व का निर्हवन कर लेते हैं.
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गुरुवार को टीवी चैनल के संपादकों ने उस समय अपना माथा पीट लिया जब एक दिन में इतनी बड़ी संख्या में राज्य के किसानो और ग़रीबों की मौत पर मात्र विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव की बाइट चल रही थी. इतनी बड़ी घटना हो जाने के बाद न तो नीतीश औ न ही उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने शोक प्रकट करते हुए कोई वीडियो जारी किया. इसके पहले बिहार रेजिमेंट के शहीद सैनिकों का पार्थिव शरीर जब पटना पहुंचा तो नीतीश कुमार श्रद्धांजलि देने के लिए एयरपोर्ट तो आए लेकिन मीडिया के सामने दो शब्द बोलने के बजाय वह गाड़ी में बैठकर निकल गए. इस बात से शहीद के परिवार वाले व सेना के अधिकाी खासे मायूस नजर आए.
ऐसे में सवाल उठता है की नीतीश कुमार ने मीडिया से इतनी दूरी क्यों बनाई है. जबकि कोरोना काल में कई राज्य के मुख्यमंत्रियों ने मीडिया के जरिए जनता से संवाद बनाए रखा. केरल जैसे राज्य के मुख्यमंभी अपने विपक्ष के नेता के साथ बैठकर हर दिन संवादाता सम्मेलन करते थे इस वजह से वह चर्चा में बने रहे. वैसे ही राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश या झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जैसे मुख्यमंत्रियों ने लोगों के बीच अपने काम करने के स्टाइल और मीडिया के सवालों के जवाब देने के लिए हमेशा चर्चा में रहे. दरअसल नीतीश कुमार के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह लोगों और मीडिया, दोनों से दूरी बनाए रखना चाहते हैं, उनके ईर्द-गिर्द कुछ अधिकारी रहते हैं जिनसे उन्हें संतुष्टि मिलती है. हालांकि पिछले कुछ दिनों में वह वर्चुअल माध्यम का इस्तेमाल करते हुए जरूर दिखाई दिए, इस माध्यम से उन्होंने अपनी पार्टी और कार्यकर्ताओं से 6 दिनों तक लगातार संवाद किया.
वहीं इस मामले पर उनकी पार्टी के प्रवक्ता और बिहार के सूचना मंत्री नीरज कुमार कहते हैं कि आप दिखा दें, किस राज्य के मुख्यमंत्री ने अपने राज्य के हर वर्ग के व्यक्ति के ख़ातिर उनके खाते में 86 सौ करोड़ से ज़्यादा राशि इस कोरोना काल में पहुंचाई हैं. एक दिन का भी रिकॉर्ड उठाकर दिखा दें जिसमें नीतीश कुमार ने हर चीज़ की बारीकी से समीक्षा ना की हो. नीरज कुमार का मानना है कि नीतीश कुमार ज़्यादा प्रचार प्रसार में विश्वास नहीं रखते है. उन्होंने कहा कि यह भी एक सच है कि पूरे बिहार में लोगों ने यह शिकायत नहीं कि उनके पास खाद्यान्न का अभाव है या पैसे के अभाव में मौत हो गई हो या फिर कोई आत्महत्या करने के लिए विवश हुआ हो. क्योंकि नीतीश कुमार ने लोगों की ज़रूरत की सभी चीज़ों का पहले ही प्रबंध कर दिया था. कुमार ने कहा कि शायद बिहार इस देश का पहला राज्य है जहां के मुख्यमंत्री ने बाहर के राज्य में फंसे लोगों को एक-एक हज़ार सीधे उनके खाते में पहुंचाया. इसके बाद अब 20 लाख से ज्यादा लोगों के नए राशन कार्ड इसी दौरान बने हैं, जिसे अब वितरित किया जा रहा है. तो कामकाज के आधार पर आप नीतीश कुमार को विलेन नहीं बना सकते है.
वहीं JDU के कुछ नेताओं का मानना हैं कि नीतीश कुमार का अतिआत्मविश्वास ही उनका सबसे बड़ा दुश्मन हैं. वो हर चीज़ के लिए अधिकारियों पर निर्भर रहते हैं. ये अधिकारी मुख्यमंत्री को सही फीडबैक नहीं देते हैं और मौके का फायदा उठाकर अपनी प्रचार की दुकान चलाते हैं. इन नेताओं का मानना हैं कि कई अच्छे काम करने के बावजूद नीतीश कुमार के खिलाफ बन रहे पर्सेप्शन में पीछे उनका अहंकार ही कारण है. वह मीडिया से जितनी दूरी बनाएंगे उतना ही वह अपने विरोधियों और सहयोगियों को बढ़ने का मौक़ा देंगे. हालांकि इन नेताओं का मानना है कि बहुत चिंता का विषय नहीं है क्योंकि चुनावी अंकगणित फ़िलहाल हमारे पक्ष में हैं.
चुनावी रणनीतिकार और नीतीश कुमार के पार्टी से निलंबित प्रशांत किशोर का कहना हैं कि ये मीडिया के सवालों का जवाब न देना या कन्नी कटाना साबित करता हैं कि नीतीश लोकतांत्रिक नहीं रहे. उनमें अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह एक तरफ़ा संवाद करने की एक नई लोकतंत्र विरोधी आदत लग गई है. किशोर ने कहा कि आप देख लें कि मुज़फ़्फ़रपुर के बाल सुधार का मामला हो या पिछले साल उसी मुज़फ़्फ़रपुर शहर में बच्चों की मौत का मामला हो या पटना का जल जमाव, नीतीश कुमार अब अपने आप को घर में बंद कर प्रेस विज्ञप्ति का सहारा लेते हैं. ये वहीं मुख्य मंत्री हैं जिनके बारे में कोसी त्रासदी के समय उसके हर पहलू का घंटो जवाब देते थे फिर वो चाहे मीडिया हो या विधान सभा का सदन. प्रशांत किशोर के अनुसार जबकि उनकी पहचान देश के उन गिने चुने मुख्यमंत्रियों में थी जो हर सोमवार को देश विदेश के हर मुद्दे पर मीडिया के सवाल का हंस कर मुस्करा कर जवाब देते थे.
पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी हर सभा के बाद उनके एक घंटे वाले संवादाता सम्मेलन पर एक बार अपनी जनसभा में टिप्पणी भी की थी कि एक शख़्स शाम में घंटो प्रवचन देते हैं. प्रशांत किशोर के अनुसार नीतीश कुमार के मीडिया के प्रति हाल का व्यवहार एक झेंपे हुए इंसान की पहचान हैं. जो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर अपने द्वारा स्थापित मापदंड को अब पूरा करना तो दूर उससे विपरीत दिशा में जा रहा हैं. प्रशांत ने कहा कि नीतीश भले ही यह कहकर संतोष कर लें कि वह जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हैं लेकिन उन्हें भी मालूम हैं कि अगर वो कुर्सी पर हैं तो राज्य की राजनीति में विकल्पहीनता है.
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