
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की प्रमुख विपक्षी दल आरजेडी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. दो दिन पहले खबर आई कि पार्टी के 8 में से 5 विधान परिषद सदस्यों ने जेडीयू ने इस्तीफा दे दिया है तो शाम तक खबर आई कि लालू प्रसाद के सबसे निकटम सहयोगियों में से रघुवंश प्रसाद ने नाराज होकर पार्टी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. देश में मनरेगा जैसी योजना की शुरुआत करने वाले रघुवंश प्रसाद का इस्तीफा पार्टी अध्यक्ष तेजस्वी के लिए किसी भी झटके से कम नहीं था. हालांकि राष्ट्रीय जनता दल (RJD)अध्यक्ष लालू यादव ने रघुवंश प्रसाद सिंह का इस्तीफ़ा अस्वीकार कर दिया है.
दरअसल रघुवंश प्रसाद ने वैशाली के पूर्व सांसद रामा सिंह को आरजेडी में शामिल कराए जाने की खबरों से नाराज होकर इस्तीफ़ा दिया था. लेकिन अब खबर है कि लालू हों या उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव रघुवंश प्रसाद सिंह को मनाने की कोशिश करेंगे और उनकी हर बात मानी जाएगी.
सवाल ये है कि ये रामा सिंह से रघुवंश प्रसाद को क्या दिक्कत है जिससे उन्हें पार्टी के अहम पद से इस्तीफा देना पड़ा. रामा सिंह का नाम एक समय बिहार के बाहुबलियों में आता था. 90 के दशक में इनकी अपने ज़िले में तूती बोलती थीं और लालू यादव के शासन काल में पुलिस इनके पीछे लगी रहती थी. उनका नाम छत्तीसगढ़ में एक व्यापारी के अपहरण में भी सामने आया था. ख़ुद रमा ने 1995 में निर्दलीय चुनाव में भाग्य आज़माया लेकिन हार गये. लेकिन उनकी राजनीतिक क़िस्मत जनता दल में विभाजन से खुली जब लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल बनाया और शरद यादव और रामविलास पासवान जनता दल में रह गए.
साल 1998 के लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद और राम विलास पासवान एक दूसरे के आमने सामने थे और फ़रार चल रहे रमा सिंह के सहयोग से रामविलास पासवान ने चुनाव जीत लिया. इसके बाद अगले साल फिर लोकसभा चुनाव हुए लेकिन इस बार लालू यादव ने पासवान को हराने में अपनी पूरी ताक़त झोंक दी और रमा सिंह एसटीएफ़ ने चुनाव के बीच में गिरफ़्तार कर लिया.
राम विलास पासवान रामा सिंह के समर्थन में थाने पहुंच गए. उधर रामा सिंह का प्रभाव इतना था कि राम विलास पासवान फिर चुनाव जीत गए. अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव हुए और रामा सिंह निर्दलीय चुनाव जीतने में सफल हुए और अपना समर्थन सात दिनों की नीतीश कुमार की सरकार को दिया. इसके बाद 21 साल तक राम विलास पासवान और रामा सिंह को एक दूसरे के करीबी बने रहे. राम विलास पासवान के केंद्र में बनते ही रामा सिंह की तूती बोलने लगी.
लेकिन रामा सिंह को लोकसभा जाने के लिए साल 2014 तक इंतजार करना पड़ा. उन्होंने इस चुनाव में बतौर एनडीए के प्रत्याशी के रूप में आरजेडी के रघुवंश प्रसाद को हरा दिया. राम विलास पासवान के पार्टी एलजेपी में चिराग पासवान के सक्रिय होते ही रामा सिंह के लिए हालात अनुकूल नहीं रहे गए. अब रामा सिंह ने लालू यादव के दरवाज़े पर राजनीतिक पुनर्वास के लिए दस्तक देना शुरू कर दिया और टिकट का भी जुगाड़ लगाया लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो अब वह विधानसभा चुनाव में आस लगाए हैं. लालू यादव और तेजस्वी यादव दोनों कहना है कि रामा सिंह ने पार्टी में शामिल होने की अर्ज़ी दी है. ये खबर आते ही पटना एम्स में कोरोना संक्रमण का इलाज रह रहे रघुवंश प्रसाद सिंह नाराज हो गए और पार्टी के उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया.
लेकिन रामा सिंह के राजनीतिक सफ़र को आप देखेंगे तो उससे एक बार साफ़ होती हैं कि बिहार में बाहुबली या विवादास्पद छवि के लोगों से न लालू, नीतीश. पासवान और न बीजेपी को को परहेज़ है.