
लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार- फाइल फोटो
बिहार में अगला विधानसभा चुनाव समय पर होगा और इस चुनाव में मुख्य मुद्दा एनडीए नीतीश कुमार के 15 साल बनाम लालू-राबड़ी के 15 साल को मुद्दा बनाकर नया जनादेश मांगेगी.
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पिछले तीन दिनों से पार्टी कार्यकर्ताओं, बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं से बातचीत के दौरान नीतीश कुमार ने जो अपने संवाद में संदेश दिया हैं उसका मूल मंत्र यही हैं कि हमने पंद्रह सालों में हर क्षेत्र में काफी काम किया है और अगर आप लालू-राबड़ी के 15 सालों से तुलना करेंगे तो जनता को ये बताने की ज़रूरत नहीं होगी कि आखिर एक बार हमें फिर से वोट क्यों दें.
बिहार सीएम नीतीश कुमार ने हर दिन के भाषण में अपने कार्यकर्ताओं को यही बात दोहराते हैं कि वो जनता के बीच चाहे बिजली के क्षेत्र में हो या अल्पसंख्यक कल्याण का मामला हो या सशक्तिकरण सब मामले में आमूल चूल परिवर्तन हुआ हैं, जो ज़मीन पर दिखता हैं. नीतीश कुमार खासकर बिजली के क्षेत्र में 15 साल पूर्व की स्थिति और अब के वर्तमान हालात के बारे में कार्यकर्ताओं को ख़ुद से एक बिंदुओं की जानकारी दी.
उन्होंने कहा कि आप लोगों के बीच में जाकर उनको बताइए कि पिछले 4 सालों के दौरान नीतीश कुमार ने कभी भी अपनी सरकार की वार्षिक रिपोर्ट कार्ड जारी नहीं की है लेकिन अब उन्होंने घोषणा की है कि सालों के कामकाज के बारे में विस्तार से उपलब्धियों का किताब तैयार किया जा रहा हैं जो कार्यकर्ताओं माध्यम से लोगों के बीच पहुंचाया जायेगा.
#बिहार में 2005 में सिर्फ 700 मेगावाट बिजली की खपत होती थी, उसी में एक हिस्सा नेपाल जाता था और एक हिस्सा रेलवे को भी दिया जाता था।
— Sanjay Kumar Jha (@SanjayJhaBihar) June 9, 2020
आज हर घर बिजली पहुंच गई है और 5,000 मेगावाट से अधिक बिजली की खपत हो रही है। अब कृषि के लिए भी बिजली दे रही है सरकार: मुख्यमंत्री श्री @NitishKumarpic.twitter.com/IyKej4HUmm
नीतीश कुमार को इस बात का आभास हैं कि प्रवासी मज़दूरों का मामला चुनाव में एक मुद्दा रहेगा. इसलिए वो अपने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को विस्तार से कोरोना संकट के बारे में जानकारी देते हैं. हालांकि जैसा ज़िला होता हैं वैसा उनका भाषण बदल भी जाता हैं. जैसे सिवान ज़िले के कार्यकर्ताओं को उन्होंने याद दिलाया कि कैसे 15 साल पूर्व अपराधियों और बाहुबलियों की समानांतर सरकार वहां चलती थी. वैसे ही मुस्लिम बाहुल्य जिलो में वो अपने सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण के कार्यक्रम की चर्चा करते हैं.
जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार अगर लालू-राबड़ी युग की याद दिलाकर वोट मांगने की रणनीति पर काम कर रहे हैं तो ये उनके लिए अपने वोटर को गोलबंद करने में सहायक हो सकता हैं. लेकिन ये नीतीश कुमार के अंदर डर भी दिखाता हैं कि उनको अपने खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का अंदाज़ा हैं. ऐसे में ये नयी आक्रामकता दिखाता हैं कि वो डबल इंजन से ज्यादा इस मुद्दे को तूल दे रहे हैं. क्योंकि केंद्र से पिछले तीन वर्षों में किसी भी क्षेत्र में वो कोई बहुत ज़्यादा ऐसी कोई नई परियोजना या वित्तीय सहायता लाने में क़ामयाब नहीं रहे हैं जिसको चुनाव में आधार बनाकर वो जनता को विश्वास दिला सके.