विधानसभा चुनाव : कोरोना के बाद बिहार में बदले समीकरण, BJP अब इस दांव के बारे में सोच भी नहीं सकती?

कोरोनावायरस के चलते देशभर में लॉकडाउन के पांचवें चरण के साथ अनलॉक करने की प्रक्रिया भी धीमे-धीमे शुरू हो गई है, उसी में से बिहार राज्य में भी आर्थिक गतिविधियों के साथ राजनीतिक गतिविधियां भी तेज हो गई हैं.

विधानसभा चुनाव : कोरोना के बाद बिहार में बदले समीकरण, BJP अब इस दांव के बारे में सोच भी नहीं सकती?

गृहमंत्री अमित शाह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार- फाइल फोटो

पटना:

कोरोनावायरस के चलते देशभर में लॉकडाउन के पांचवें चरण के साथ अनलॉक करने की प्रक्रिया भी धीमे-धीमे शुरू हो गई है, उसी में से बिहार राज्य में भी आर्थिक गतिविधियों के साथ राजनीतिक गतिविधियां भी तेज हो गई हैं. बिहार में इस वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. विधानसभा चुनाव की तिथियों को लेकर भले ही अनिश्चितता का माहौल हो लेकिन भारतीय जनता पार्टी (BJP) व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) की एक डिजिटल रैली नौ जून को करेंगे.

इसकी घोषणा बिहार BJP के अध्यक्ष डॉक्टर संजय जायसवाल ने पटना में सोमवार को की और उन्होंने कहा कि इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की भी इसी महीने वर्चुअल डिजिटल रैली भी आयोजित की जा रही है, लेकिन माना जा रहा है कि अमित शाह 9 तारीख की अपने इस संबोधन में बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर बहुत कुछ स्पष्ट करेंगे.

इनमें दो बातें प्रमुख होंगी, एक भारतीय जनता पार्टी चुनाव के लिए नहीं बल्कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ेगी और बिहार NDA एक झूठ है. हालांकि अमित शाह इससे पहले भी बिहार चुनाव को लेकर यही बात कहते रहे हैं लेकिन लॉकडाउन के दौरान नीतीश कुमार के प्रवासी श्रमिकों को वापस लाने के मुद्दे पर उनके स्टैंड और कोटा से छात्रों की नियमों का हवाला देते हुए लाने की अनुमति ना देने की उनकी ज़िद के कारण बिहार भाजपा के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह लग रहा था उनके खिलाफ काफी नाराजगी है.

बीजेपी की अगर अकेले चुनाव में जाएगी तो अपने बलबूते राज्य में सरकार बना सकती है इसके पीछे एक तर्क अभी दिया गया था कि अप्रैल महीने में जब तब्लीगी जमात के लोगों के कारण कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने की ख़बर आई तो गांव-गांव में इसके कारण काफ़ी ध्रुवीकरण देखा गया और माना गया कि इसका सीधा लाभ केवल BJP ही उठा सकती है लेकिन बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि फ़िलहाल पार्टी ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है.

उसके पीछे ये सीधा फीडबैक है कि भले ही प्रवासी श्रमिकों में नाराजगी हो लेकिन जिस प्रकार से उन्हें वारंटी कैंप में रखा गया और उनके भोजन से लेकर स्वास्थ्य का पूरा इंतज़ाम किया गया. इतना ही नहीं, उनके टिकट से लेकर खाते में पैसा दिए जाने तक से श्रमिकों में नीतीश कुमार के प्रति नाराज़गी कम हुई है. इसके अलावा, गरीबों के खाते में वो चाहे राशन के लिए 1 हजार रूपए डाले या अन्य योजनाओं का पैसा एडवांस में भुगतान करने के कारण नीतीश कुमार के खिलाफ बहुत ज़्यादा आक्रोश नहीं बचा है. ऐसे में उनको छोड़ने का राजनीतिक जोखिम पार्टी (BJP) नहीं उठाना चाहती है.

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