
मौलाना साद और मौलाना जुबेर पर संरक्षित स्मारक के अंदर निर्माण कार्य कराने का आरोप था
Coronavirus Pandemic: निज़ामुद्दीन मरकज़ के मौलाना मोहम्मद साद (Maulana Saad) को लेकर एक और विवाद सामने आया है. दरअसल साल 2008 में भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) ने निज़ामुद्दीन पुलिस थाने में एक केस दर्ज कराया था. यह केस केस मौलाना साद और मौलाना जुबेर के खिलाफ दर्ज हुआ था. एएसआई की शिकायत पर पहले संयुक्त सर्वे किया गया था, जिसमें शिकायत को सही बताया गया था. इसके बाद केस दर्ज हुआ था. निज़ामुद्दीन में एक संरक्षित और ऐतिहासिक स्मारक बराखम्भा से 20 -22 मीटर दूर एक स्मारक लालमहल है. शिकायत थी कि उस स्मारक के अंदर मौलाना साद और मौलाना जुबेर नया निर्माण कार्य करा रहे हैं.
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यह निर्माण कार्य संरक्षित स्मारक नियमावली 1959 और संशोधित नियम 1992 के तहत बिना ASI से अनुमति लिए हुए एक गैरकानूनी कार्रवाई है,पुलिस ने एक नवंबर 2008 को मौलाना साद और मौलाना जुबेर के खिलाफ केस दर्ज किया था, लेकिन दिल्ली ने कभी मौलाना को पूछताछ के लिए नहीं बुलाया और बाद में इस केस को बंद ही कर दिया गया. केस क्यों बंद किया गया था, इसके पीछे की वजह साफ नहीं है. 2016 में भी मरकज़ में 2 गुटों के बीच मारपीट को लेकर क्रॉस केस दर्ज हुए थे. एक ग्रुप ने आरोप लगाया था कि उन्हें मरकज़ में बंधक बनाकर रॉड से पीटा गया. हालांकि मामले में मौलाना साद नामजद नहीं था.
गौरतलब है कि भारत में कोरोना वायरस की महामारी के दौरान निजामुद्दीन मरकज और मौलाना साद का नाम सुर्खियों में आया था.निजामुद्दीन मरकज में तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हुए थे और इसमें से कई लोग पॉजिटिव पाए गए थे. जमात के कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोग बाद में अपने राज्य लौटे थे जहां दूसरे लोगों के संपर्क में आने के कारण वहां भी कोरोना के केसों की संख्या में इजाफा हुआ था. तब्लीगी जमात के कार्यक्रम को देश में कोरोना वायरस के केसों में वृद्धि के लिए काफी हद तक जिम्मेदार माना गया था और इसके लिए मौलाना साद आलोचनाओं के घेरे में थे.