
वाराणसी में शराब की दुकानों के बाहर लाइन में खड़े लोग
बनारस कोरोना के रेड जोन में है. बीते चालीस दिनों से यहां सम्पूर्ण लॉकडाउन है, लिहाजा कोई भी दूकान नहीं खुल रही थी लेकिन लॉकडाउन के तीसरे दौर का पहला दिन कई छूटों को लेकर आया. इन छूटों में एक शराब की दुकान के खुलने की भी छूट थी. लगता है इस छूट ने सबसे ज़्यादा लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाई. ये बात यूं नहीं है. ये इसलिए है क्योंकि सुबह होते ही जीवन की जरूरी चीजों की दुकान पर नहीं बल्कि शराब की देशी से लेकर अंग्रेजी तक की दुकान में लंबी-लंबी लाइन लग गई. आलम ये रहा कि दुकान खोलने के ढाई से तीन घंटे में ही ब्रांडेड माल की शॉर्टेज हो गई. अधिकांश लोग अपनी मनचाहे ब्रांड के लिए इधर-उधर भटकते दिखाई पड़े. कुछ जगहों पर तो दुकान का पूरा माल ही बिक गया. चंद घंटों के अंदर ही शहर की अधिकांश दुकानें आउट ऑफ स्टॉक हो गईं. दोपहर होते-होते दुकानदारों को शटर गिराना पड़ा.
शाम को जब इसकी बिक्री की आधिकारिक सूचना आई तो 4 करोड़ 73 लाख 84 हज़ार 330 रुपये की शराब बिक गई थी. इसमें देशी शराब 60 लाख 25 हज़ार 500 की, अंग्रेजी शराब 3 करोड़ 89 लाख 85 हज़ार 800 रुपये की और बीयर 23 लाख 73 हज़ार 30 रुपये की बिकी. ये शराब लगभग 88 हज़ार लोगों के जरिये खरीदी गई. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में 75 जिले हैं एक जिले में शराब की इस बिक्री से पूरे प्रदेश में शराब बिक्री का अनुमान लगाया जा सकता है कि कितने करोड़ की शराब बिकी. वैसे भी उत्तर प्रदेश के शराब बिक्री के अर्थतंत्र को देखा जाए तो कुछ तथ्य सामने आते हैं.
उत्तर प्रदेश में राजस्व का एक बड़ा स्त्रोत शराब बिक्री को माना जाता है. राज्य का 20 फीसदी राजस्व शराब बिक्री से ही आता है. जानकारी के अनुसार शराब बिक्री से यूपी सरकार को हर साल करीब 20000 करोड़ रुपये का मुनाफ़ा होता है. सरकारी आंकड़े देखें तो 2018-19 के अप्रैल और मई महीने में सरकार को 4,558 करोड़ रुपये का राजस्व शराब बिक्री से मिला था. पिछले साल-अप्रैल में 2,372 करोड़ रुपये की शराब बिकी थी. मई में यह घटकर 2,187 करोड़ हो गई.