
Lockdown : सरकार का आदेश स्पष्ट न होने के कारण रविवार को दुकानें नहीं खुल सकीं.
Lockdown: गृह मंत्रालय के कल दिए गए आदेश और बाद में दिल्ली सहित विभिन्न राज्यों द्वारा केंद्र सरकार के आदेश के अनुरूप विभिन्न क्षेत्रों में दुकानें खोलने के आदेशों के बावजूद इन श्रेणियों में आने वाले व्यापारियों को "पड़ोस की दुकानों" कौन सी होती हैं? स्टैंडअलोन दुकानें किसको कहा जाएगा? के बारे में अधिक भ्रम के कारण दुकानें खोलना मुश्किल हुआ. एक पहलू यह भी है कि इन दोनों के बारे में कोई निर्दिष्ट परिभाषा नहीं है इसलिए भी संशय और भ्रम का वातावरण बना है. कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट ) ने अनुमान लगाया है कि केंद्र सरकार के इस आदेश से शहरी क्षेत्रों में लगभग 30 लाख दुकानें और ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 10 लाख दुकानें खुल सकती हैं. अकेले दिल्ली में लगभग 75 हजार दुकानें हैं जो इस आदेश के तहत खोली जा सकती हैं.
कल गृह मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आदेश में ग्रामीण क्षेत्रों में शॉपिंग मॉल में दुकानों को छोड़कर सभी दुकानों को खोलने की अनुमति दी गई है. वहीं शहरी इलाकों में आवासीय परिसरों, पड़ोस की दुकानों और स्टैंडअलोन दुकानों को खोलने की अनुमति दी गई है और ई-कॉमर्स में केवल आवश्यक वस्तुओं के लिए अनुमति दी गई है.
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि पड़ोस की दुकानों और स्टैंडअलोन दुकानें किसको कहा जाएगा, पर भ्रम की स्थिति है जिसके कारण विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा जारी आदेशों के बाद भी व्यापारी अपनी दुकानें नहीं खोल पाए हैं.
इसे एक महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में लेते हुए, कैट ने आज केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला को एक पत्र भेजा, जिसमें व्यापारियों को इस आदेश के अंतर्गत दुकानें खोलने में आ रही कठिनाइयों से अवगत कराया और उनसे पड़ोस की दुकानों और स्टैंडअलोन की दुकानों के बारे में और स्पष्टीकरण जारी करने का आग्रह किया. यह भी स्पष्ट करने का आग्रह किया है कि इस अनुमति के तहत क्या सभी प्रकार की दुकानों की अनुमति है, या किन्ही प्रकार की दुकानें खोलने पर प्रतिबंध है.
गृह सचिव को लिखे अपने पत्र में कैट ने कहा है कि केंद्र सरकार के आदेश और बाद में दिल्ली सहित विभिन्न राज्य सरकारों के आदेश के बावजूद, अभी भी "पड़ोस की दुकानों" और "स्टैंडअलोन दुकानों" को लेकर भ्रम बना हुआ है. प्रशासन, व्यापारी एवं अन्य सम्बन्धित लोग अपने अनुसार कई व्याख्याएं कर रहे हैं. पड़ोस की दुकानों के लिए कोई स्थापित परिभाषा नहीं है जिसके कारण समस्या और जटिल हो गई है.
कैट ने दिल्ली के उदाहरण को उद्धृत करते हुए कहा कि दिल्ली के मामले में दिल्ली सरकार द्वारा गृह मंत्रालय के आदेश में उल्लिखित दुकानों को खोलने की अनुमति दी गई है, लेकिन "पड़ोस की दुकानों" पर स्पष्टता के अभाव में व्यापारियों और लोगों द्वारा सरकार द्वारा दी गई छूट का लाभ नहीं मिल पाया. इसके अलावा यह देखा गया है कि प्रशासन और पुलिसकर्मियों के बीच आम सहमति का अभाव है, जिसके परिणामस्वरूप व्यापारियों को स्थानीय पुलिस द्वारा दुकानें खोलने में रुकावट आई है.
कैट ने गृह मंत्रालय द्वारा वर्गीकृत दुकानों में काम करने वाले दुकानदारों के लिए पास की आवश्यकता के बारे में एक स्पष्टीकरण का भी आग्रह किया है. यदि व्यापारियों को पास लेना है तो उसके लिए आसानी से पास मिल जाए ऐसी व्यवस्था आवश्यक है और इस बारे में राज्यों को निर्देश दिए जाने की ज़रूरत है.