
नई दिल्ली। पूरी दुनिया कोरोना वायरस महामारी से जूझ रही है। यूरोप के देशों और अमेरिका में इस आपदा से निपटने की बेबसी है और साथ ही चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति आक्रोश भी। यही वजह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने खुले तौर पर डब्लूएचओ की कड़ी निंदा करते हुये उसको मिलने वाली अमेरिकी फंडिंग रोकने की बात कही है। ट्रम्प ने कहा है कि डब्ल्यूएचओ वायरस के बारे में वैश्विक समुदाय को पर्याप्त रूप से चेतावनी देने में विफल रहा। वुहान में इतना कुछ हो रहा था और विश्व स्वास्थ्य संगठन अपनी आँखें बंद किए हुये था। जापान के उपप्रधानमंत्री तारो आसो ने भी डब्लूएचओ की सख्त निंदा करते हुये इसे ‘चाइनीज़ हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन’ करार दिया है।
ट्रम्प ने डब्लूएचओ को दी अमेरिकी फंडिंग रोकने की चेतावनीः
इस वायरस के बारे में भले ही बहुत कुछ न पता ही लेकिन दो तथ्य बिलकुल निश्चित लगते हैं। सबसे पहले, चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने चीन में इस महामारी की उत्पत्ति और फैलाव के साथ साथ मरने वालों की संख्या के बारे में झूठ बोला, तथ्यों को छुपाया और गुमराह किया। दूसरा, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हर कदम पर चीन के सहयोगी के रूप में काम किया है। सच्चाई तो यही है कि आर्थिक आंकड़ों से लेकर वायु प्रदूषण के आंकड़ों तक सभी चीजें कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा खुद को बचाने असलियत छुपाने की पोल खोलते हैं।
-स्वतंत्र चीनी पत्रकारों ने वुहान कवर-अप का बयान किया है। इन पत्रकारों ने अलग-अलग रिपोर्ट दीं कि एक चीनी प्रयोगशाला ने पिछले दिसंबर में एक नए वायरस की पहचान की थी लेकिन अधिकारियों ने वायरस पर काम को रोकने, अपने नमूनों से छुटकारा पाने और चुप रहने का आदेश दिया। सरकार को यह स्वीकार करने में लगभग एक महीने का समय लगा कि मानव-संपर्क द्वारा कोरोना वायरस हुबेई प्रांत में विस्फोटक रूप से फैल रहा था।
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-चीन के एक नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. ली वेनलियानग ने कोरोना वायरस के बारे में जनता को आगाह करने की कोशिश की, तो उन्हें हिरासत में लिया गया, उन पर “झूठी अफवाह फैलाने” और “गंभीर रूप से सामाजिक व्यवस्था को बाधित करने” का आरोप लगाया गया। इस डाक्टर ने जो कुछ भी ऑनलाइन लिखा वह सब सेंसर कर दिया गया। बाद में इस डाक्टर की मौत भी हो गई।
-प्रोपोगैंडा में माहिर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने ऐसे ट्वीट किए जिनमें फेक न्यूज़ का सहारा लिया गया था। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्वीट किया कि कोरोना वायरस वास्तव में अमेरिकी सेना द्वारा वुहान में लाया गया! इस जानकारी का स्रोत एक जापानी अखबार को बताया गया जबकि ऐसा कोई अखबार है ही नहीं। चीनी विदेश मंत्रालय के ट्वीट को इस तरह वाइरल किया गया कि उसे 16 करोड़ बार देखा गया।
भूमिका डब्लूएचओ की
चीन ने कोरोना वायरस फैलने की बात दो महीने तक छुपाए रखी। इस वायरस के प्रकोप के बावजूद दस लाख लोग चीन से अन्य देशों में आये-गए। 5 लाख लोग तो सिर्फ अमेरिका गए। चीन ने किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं लगाया और दुनिया को अंधेरे में रखा। यहीं पर डब्लूएचओ की भूमिका आती है।
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चीन से खुलेपन और पारदर्शिता पर जोर देने के बजाय, डब्ल्यूएचओ नेतृत्व ने चीनी नेतृत्व का ही अनुसरण किया। जबकि महामारी को रोकने में मदद करने के लिए डब्ल्यूएचओ को चीन को सच्चाई बताने के लिए मजबूर करना चाहिए था। चीन ने कई हफ्तों तक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य अधिकारियों को देश में आने से रोक दिया था। लेकिन इसके विपरीत डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम घेबियस ने संकट में “पारदर्शिता” के लिए चीनी शासन की प्रशंसा की। इत्तेफाक की बात है कि टेड्रोस जब डब्लूएचओ प्रमुख के लिए उम्मीदवार थे तब चीन ने ही उनका समर्थन किया था। इस तरह संयुक्त राष्ट्र में उनकी नौकरी के लिए चीन के अभियान को श्रेय दिया जाता है।
“यात्रा प्रतिबंधों की जरूरत नहीं”
जनवरी के अंत में जब डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन और अन्य कोरोना वायरस पीड़ित देशों से अमेरिका में प्रवेश के खिलाफ यात्रा प्रतिबंध का आदेश दिया था तब डब्लूएचओ अध्यक्ष टेड्रोस ने इस फैसले की आलोचना करते हुये कहा था कि यात्रा प्रतिबंधों से ‘लोगों में पैनिक फैलेगा।“ जब बेशकीमती समय हाथ से निकल गया तब जा कर 12 मार्च को डब्लूएचओ ने कोरोना वायरस को एक महामारी का प्रकोप घोषित किया। यही नहीं, टेड्रोस पहले यही कहते रहे कि कोरोना वायरस संक्रामण इनसानों से इनसानों में नहीं फैलता है।
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जिंपिंग से मुलाक़ात
ध्यान देने वाली बात है कि डब्लूएचओ के अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को चीन में तब तक प्रवेश नहीं मिला जब तक कि जनवरी के अंत में डब्लूएचओ महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात नहीं हो गई। टेड्रोस बीजिंग गए और वहाँ जिंपिंग ने उनका शाही स्वागत किया। बीजिंग की यात्रा के बाद डब्ल्यूएचओ ने एक बयान में कहा कि उसने “विशेष रूप से चीनी शीर्ष नेतृत्व की प्रतिबद्धता और उनके द्वारा प्रदर्शित पारदर्शिता की सराहना की है।”
टेड्रोस और जिंपिंग की बैठक के बाद ही 30 जनवरी को ऐलान किया गया कि कोरोना वायरस “अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय है” और ये एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल है। चीन द्वारा प्रतिदिन चंद नए मामलों की सूचना दिए जाने के बाद डब्लूएचओ ने 11 मार्च को कोरोना वायरस को महामारी घोषित कर दिया। लेकिन इसके हफ्ता भर पहले ही ये वायरस विश्व स्तर पर फैल चुका था। और यूरोप में ही एक हजार लोग मर चुके थे।
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चीन की तारीफ
टेड्रोस-जिनपिंग मुलाक़ात के बाद डब्लूएचओ के एस्पर्ट्स की टीम फरवरी में चीन गई। इस टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा – “एक अज्ञात वायरस के सामने चीन ने शायद इतिहास में सबसे महत्वाकांक्षी, फुर्तीली और आक्रामक स्वास्थ्य क्षमता को प्रदर्शित किया है।“ ये भी कहा गया कि – “चीन ने अपनी कार्रवाई से सैकड़ों हजारों मामलों को रोका है, वह वैश्विक समुदाय की रक्षा कर रहा है और अंतरराष्ट्रीय प्रसार के खिलाफ रक्षा की एक मजबूत पहली पंक्ति बना रहा है।” असलियत ये रही कि चीन ने अंतर्राष्ट्रीय प्रसार के खिलाफ कोई चेतावनी कभी दी ही नहीं।
डब्लूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया कि चीन द्वारा ” गैर-फार्मास्युटिकल उपायों का अप्रमाणित और कठोर उपयोग” वैश्विक प्रतिक्रिया के लिए महत्वपूर्ण सबक प्रदान करता है। बीजिंग की रणनीति दर्शाती है कि एक विस्तृत कार्यप्रणाली से रोकथाम को सफलतापूर्वक संचालित किया जा सकता है।”
कौन हैं टेड्रोस
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम को मई 2017 के चुनाव में चीन के समर्थन के बाद इस पद के लिए चुना गया था। उन्होंने अमेरिका समर्थित डॉ डेविड नाबरो को हराया था, जो यूके के उम्मीदवार थे। टेड्रोस इथिओपियाई मूल के हैं और आरोप है कि अपने देश के स्वास्थ्य मंत्री रहते हुये उन्होने हैजा महामारी के प्रकोपों को छुपाए रखा था।
फिलासफ़ी में पीएचडी टेड्रोस ज़िम्बाब्वे के तानाशाह राबर्ट मुगाबे की प्रशंसक रहे हैं। ट्रेडोस ने मुगबे को डब्लूएचओ का गुडविल एम्बेसेडर बनाने की कोशिश की थी।डब्लूएचओ का सालना बजट दो अरब डालर का है जिसमें 25 फीसदी फंडिंग अमेरिका और ब्रिटेन करते हैं। चीन ने पिछले साल इसे 4.43 मिलियन डालर दिये थे।
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