
प्रतीकात्मक तस्वीर
खास बातें
- कोर्ट ने केंद्र सरकार के कामकाज में दखल देने से इनकार कर दिया
- CJI एस ए बोबडे ने कहा कि हम विशेषज्ञ नहीं हैं
- कहा कि कोर्ट सरकार के विवेक को दबाना नहीं चाहता है
सुप्रीम कोर्ट में कोरोनावायरस के मद्देनजर देश में लगे लॉकडाउन के दौरान मजदूर और रेहडी पटरी लगाने वालों को न्यूनतम वेतन दिए जाने की मांग वाली याचिका दायर की गई है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल केंद्र सरकार के कामकाज में दखल देने से इनकार कर दिया है. CJI एस ए बोबडे ने कहा कि हम विशेषज्ञ नहीं हैं जो सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने का इरादा रखते हैं. उन्होंने कहा कि कोर्ट सरकार के विवेक को दबाना नहीं चाहता है. हम स्वास्थ्य या प्रबंधन के विशेषज्ञ नहीं हैं. कोर्ट अगले 15 दिन सरकार के कामकाज में दखल नहीं देना चाहता. इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता को केंद्र सरकार की स्टेटस रिपोर्ट पढने के लिए कहा. इस मामले की अगली सुनवाई 13 अप्रैल को होगी.
पिछली सुनवाई में अदालत ने केन्द्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा था. यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और अंजलि भारद्वाज ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है जिसमें केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों से मजदूरों और रेहडी-पटरी लगाने वाले लोगों को वेतन दिलवाने की मांग की गई है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'हम इस स्तर पर बेहतर नीतिगत निर्णय नहीं ले सकते. हम अगले 10/15 दिनों के लिए सरकार के फैसलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते. हम अपनी बुद्धिमत्ता के साथ सरकार की बुद्धि को दबाने की योजना नहीं बना रहे है. हम स्वास्थ्य या प्रबंधन के विशेषज्ञ नहीं हैं. हम सरकार से शिकायतों के लिए एक हेल्पलाइन बनाने के लिए कहेंगे.'
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वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार ने आश्रयघरों में भोजन उपलब्ध कराने के लिए आदेश जारी किए हैं. दूसरा यह कि मकान मालिकों को किराया नहीं लेना चाहिए. यह आदेश लागू नहीं हो सकता और सोमवार तक कई लोगों की मौत हो जाएगी. वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अस्पष्ट बयानों के अलावा जनहित याचिका में कुछ भी नहीं है. प्रवासी मजदूरों को लेकर हेल्पलाइन चल रही है. खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हालात पर नजर रखे हैं.