सुधीर कुमार
अभी हाल ही में संपन्न दिल्ली चुनाव ने एक बार फिर साबित कर दिया है ,कि जनता मुख्यमंत्री का चेहरा देखकर ही मतदान करती है केजरीवाल का ही जादू था कि विधानसभा चुनाव में आप को पचास प्रतिशत से ज्यादा मत मिला, जबकि रणबांकुरो से लैस भाजपा पूरे चुनाव के दौरान ही मुख्यमंत्री के नाम पर बगले झांक रही थी और अंतोगत्वा उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ा उसे चुनाव में करारी शिकस्त मिली ।
भलेहीं बिहार चुनाव में अभी सात महीने का समय बचा है, लेकिन वहाॅं के चुनाव परिणाम का अंदाजा लगाना मुश्किल नही है । नीतिश कुमार का एक बार फिर चुना जाना तय है, क्योंकि विरोधी खेमें में राजद के अलावा कोई और दूसरी पार्टी नही है जिसका अपना जनाधाार हो, जो
बात वहाॅं पिछले साल हुए लोक सभा चुनाव में साबित हो गया, पिछले विधानसभा
चुनाव में जब नीतिश संग लालू चुनाव लड्रे तो भाजपा रामविलास पासवान की लोजपा और उपेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा कुछ खास नहीं कर पाई ।
गौरतलब है कि जब सन 2014 में नीितिश की जद (यू) लालू प्रसाद यादव की राजद और भाजपा ,अलग अलग चुनाव लड्री तो उस चुनाव में नीतिश कुमार को 17 प्रतिशत वोट मिले थे और लोकसभा की केवल दो सीट पर ही उनकी पार्टी को संताष करना पड़ा, जो ये बताने के लिए काफी है, कि नीतिश कुमार का जनाधाार भलेही भाजपा और राजद से कमतर हो लेकिन अपनी साफ छवि की वजह से ही वो पिछले पन्द्रह साल से बिहार की राजनीति को अपने इर्द – गिर्द घूमने को
मजबूर कर रहे हैॅे जबकि विरोधी खेमा अभी मुख्यमंत्री का चेहरा ही तलाश कर रही है, कभी शरद यादव का नाम सामने आ रहा है जबकि कांग्रेस तमाशबीन बनी हुई है ।
ऐसे में अगर कांग्रेस किसी भी तरह राजद को रघुवंश प्रसाद सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में साझा उम्मीदवार बनाने पर राजी कर ले, तो बिहार विधानसभा चुनाव दिलचस्प बन जाएगा, क्योंकि रघुंवश प्रसाद सिंह की छवि साफ सुथरी है और ग्रामीण विकास मंत्री रहते हुए उनके काम का ही नतीजा था , कि यूपीए की 2009 में वापसी हुई भलेही राजद को उनके काम का बिहार में
फायदा नहीं मिला क्योंकि इस दौरान बिहार में नीतिश अपना पैर जमा चुके थे जबकि लालू प्रसाद यादव से यादव के अलावा दूसरी पीछड्री जातियाॅं पल्ला झाड्र रही थी ।
गौरतलब है कि कभी अति पिछड़ों ,दलित ,मुस्लिम की जनाधार वाली पार्टी राजद का पूरा समीकरण माई यानि मुस्लिम -यादव पर ही टिका है ऐसे में रघुवंश प्रसाद सिंह वो नाम हैं जो ऊंची जाति के वोटरों को न केवल आकर्षित करेगा बल्कि नीतीश की तुलना में एक बेहतर विकल्प भी साबित होगा ।