
जयपुर: नौ ग्रहों में शामिल राहु का नाम सुनते ही हम भयभीत हो जाते हैं। एक अजीब सा भय मन में आने लगता है। ऐसे में कोई कहें कि राहुकाल चल रहा है तो दिमाग में पहला सवाल होता है क्या है इसका महत्त्व है। इसका प्रभाव। क्यों हम लोग राहु काल में शुभ कार्य नहीं करते ?
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ज्योतिषानुसार समुद्र मंथन के समय जो अमृत निकला था। उसे पीने के लिए दैत्यों का सेनापति राहू देवताओं कि पंक्ति में बैठ गया और जैसे ही उसने अमृत पान किया। वैसे ही सूर्य और चन्द्र के पहचाने जाने के कारण भगवान् विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से राहू गर्दन काट दिए । इसलिए राहू की गर्दन के काटने के समय को राहू काल कहा जाता है। जो अशुभ माना जाता है।
इस काल में आरम्भ किये गए कार्य-व्यापार में परेशानियों के बाद कामयाबी मिलती है, इसलिए इस काल में कोई भी नया कार्य आरम्भ करने से बचना चाहिए। राहु का सिर कटने की घटना सायंकाल की है, जिसे पूरे दिन के घंटा, मिनट का आठवां भाग माना गया।
कालगणना के अनुसार किसी भी जगह के सूर्योदय के समय से सप्ताह के पहले दिन सोमवार को दिनमान के आठवें भाग में से दूसरा भाग, शनिवार को दिनमान के आठवें भाग में से तीसरा भाग, शुक्रवार को आठवें भाग में से चौथा भाग, बुधवार को पांचवां भाग, गुरुवार को छठा भाग, मंगलवार को सातवां तथा रविवार को दिनमान का आठवां भाग राहुकाल होता है ।
ऐसे निकालते है राहुकाल
किसी बड़े तथा शुभ कार्य के आरम्भ के समय उस दिन के दिनमान का पूरा मान घंटा, मिनट में निकालें, उसे आठ बराबर भागों में बांट कर स्थानीय सूर्योदय में जोड़ दें, आपको शुद्ध राहुकाल ज्ञात हो जाएगा। जो भी दिन होगा, उस भाग को उस दिन का राहुकाल मानें।
क्या है राहु-काल का महत्व
राहु-काल इंगित करता है की यह समय अच्छा नहीं है राहू काल में कार्यो के निष्फल होने की संभावना होती है। राहुकाल में प्रारम्भ किये गये कार्यो में सफलता के लिये अत्यधिक प्रयास करने पड़ते हैं, कार्यों में बेवजह की दिक्कत आती हैं, या कार्य अधूरे ही रह जाते हैं।
कुछ लोगों का मानना हैं कि राहुकाल के समय में किये गये कार्य विपरीत व अनिष्ट प्रद फल प्रदान करते हैं। राहु काल में किसी यात्रा का प्रारम्भ करना निषेध हैं। इसलिये, इस समय में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाना चाहिए। राहुकाल के दौरान अग्नि, यात्रा, किसी वस्तु का क्रय विक्रय, लिखा पढी व बहीखातों का काम नही करना चाहिये।
राहु काल को दक्षिण भारत में विशेष रूप से देखा जाता है। ये सोमवार से लेकर रविवार तक प्रतिदिन निश्चित समय पर लगभग डेढ़ घंटे तक रहता है। इसे अशुभ समय के रुप मे देखा जाता है। इसी कारण राहु काल की अवधि में शुभ कर्मो को यथा संभव टालने की सलाह दी जाती है। राहु काल अलग-अलग स्थानों के लिए अलग-2 होता है। क्योंकि सूर्य के उदय होने का समय विभिन्न स्थानों के अनुसार अलग होता है। राहु काल को राहु-कालम् नाम से भी जाना जाता है।
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संक्षेप में यह इस प्रकार है:-
सोमवार : सुबह 7:30 बजे से लेकर प्रात: 9.00 बजे तक ।
मंगलवार : दोपहर 3:00 बजे से लेकर दोपहर बाद 04:30 बजे तक।
बुधवार : राहु काल दोपहर 12:00 बजे से लेकर 01:30 बजे दोपहर तक ।
गुरुवार : राहु काल दोपहर 01:30 बजे से लेकर 03:00 बजे दोपहर तक।
शुक्रवार : राहु काल प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक।
शनिवार : राहु काल प्रात: 09:00 से 10:30 बजे तक।
रविवार : राहु काल सायं काल में 04:30 बजे से 06:00 बजे तक
राहुकाल के समय में किसी नये काम को शुरू नहीं किया जाता है परन्तु जो काम इस समय से पहले शुरू हो चुका है उसे राहु-काल के समय में बीच में नहीं छोडा जाता है। कोई व्यक्ति अगर किसी शुभ काम को इस समय में करता है तो यह माना जाता है की उस व्यक्ति को किये गये काम का शुभ फल नहीं मिलता है। उस व्यक्ति की मनोकामना पूरी नहीं होगी।
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