इमरजेंसी के बहाने PM मोदी का कांग्रेस पर हमला, कहा- 25 जून के पाप के दाग कभी नहीं मिटेंगे

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज के सामान्य वातावरण में, भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में सबके लिए गौरव करने की बात है कि हमारा मतदाता कितना जागरूक है। अपने से ज्यादा वो अपने देश से कैसे प्यार करता है, ये इस चुनाव में देखने को मिला है। इस बात के लिए देश का मतदाता अभिनंदन का पात्र है।

नई दिल्ली: लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब दे रहे हैं। लोकसभा में पीएम मोदी का संबोधन शुरू होते ही सदन में मोदी-मोदी के नारे लगे। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि राष्ट्रपति जी का अभिभाषण, देश के नागरिकों ने जिस आशा-आकांक्षाओं के साथ हमें इस सदन में भेजा है, उसकी एक तरह से प्रतिध्वनि है।

उन्होंने कहा कि मैं इस चर्चा को सार्थक बनाने के लिए इसमें भाग लेने वाले सभी सांसदों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। कई दशकों के बाद देश ने एक मजबूत जनादेश दिया है। एक सरकार को फिर से लाए हैं और पहले से ज्यादा शक्ति देकर लाए हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज के सामान्य वातावरण में, भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में सबके लिए गौरव करने की बात है कि हमारा मतदाता कितना जागरूक है। अपने से ज्यादा वो अपने देश से कैसे प्यार करता है, ये इस चुनाव में देखने को मिला है। इस बात के लिए देश का मतदाता अभिनंदन का पात्र है। उन्होंने कहा कि 2019 का जनादेश पूरी तरह कसौटी पर कसने के बाद, हर तराजू पर तौलने के बाद, पल पल को जनता ने जांचा और परखा है और उसके आधार पर समझा है और तब जाकर फिर से हमें चुना है।

पीएम मोदी ने कहा कि ये कोई जीत या हार का प्रश्न नहीं है। ये जीवन की उस आस्था का विषय है, जहां कमिटमेंट क्या होता, डेडिकेशन क्या है, जनता के लिए जीना-जूझना-खपना क्या होता है। और जब पांच साल की अविरत तपस्या का संतोष मिलता है तो वो एक अध्यात्म की अनुभूति करता है।

उन्होंने कहा कि चर्चा के प्रारम्भ में पहली बार सदन में आए डॉ प्रताप सारंगी जी और आदिवासी समाज से आयी हमारी बहन हिना गावित जी ने जिस प्रकार से विषय को प्रस्तुत किया और जिस बारीकी से बातों को रखा, तो मैं समझता हूं कि मैं कुछ भी न बोलूं तो भी चलेगा।

पीएम ने कहा कि मैं संतोष के साथ कह सकता हूं कि 70 साल से चली आ रही बीमारियों को दूर करने के लिए हमने सही दिशा पकड़ी और काफी कठिनाइयों के बाद भी उसी दिशा में चलते रहे। हम उस मकसद पर चलते रहे और ये देश दूध का दूध पानी का पानी कर सकता है ये सबने देखा।

उन्होंने कहा कि हमने देश आजाद होने के बाद जाने-अनजाने में एक ऐसा कल्चर स्वीकार कर लिया था, जिसमें देश के सामान्य मानवी को हक के लिए जूझना पड़ता है। क्या सामान्य मानवी के हक की चीजें सहज रूप से उसे मिलनी चाहिए या नहीं। हमने मान लिया था कि ये तो ऐसे ही चलता है। आज मैं संतोष के साथ कह सकता हूं कि कठिनाईयों के बावजूद हमने सही दिशा को छोड़ा नहीं।